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दुनिया की लगभग पूरी आबादी, वायु प्रदूषण में साँस लेने को विवश

मंगोलिया के उलानबाटर में कोयला-चालित बिजली संयंत्रों में उत्सर्जन से वायु प्रदूषण
ADB/Ariel Javellana
मंगोलिया के उलानबाटर में कोयला-चालित बिजली संयंत्रों में उत्सर्जन से वायु प्रदूषण

दुनिया की लगभग पूरी आबादी, वायु प्रदूषण में साँस लेने को विवश

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र के चिकित्सा वैज्ञानिकों ने सोमवार को कहा है कि दुनिया भर की लगभग 99 प्रतिशत आबादी ऐसी प्रदूषित वायु में साँस ले रही है जो अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृत सीमाओं से ज़्यादा प्रदूषित है. इससे उनके स्वास्थ्य पर गम्भीर नकारात्मक असर पड़ता है.

अब दुनिया भर के 117 देशों में रिकॉर्ड छह हज़ार से ज़्यादा शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है, मगर वहाँ रहने वाले लोगों की साँसों में अब भी अस्वस्थ स्तर के सूक्ष्म पदार्थ कण व नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड दाख़िल हो रहे हैं. निम्न व मध्यम आय वाले देशों में रहने वाले लोगों को ज़्यादा जोखिम है.

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इन नतीजों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने त्वरित कार्रवाई करते हुए जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बन्द करने और वायु प्रदूषण के स्तरों को कम करने के लिये टिकाऊ क़दम उठाने की महत्ता को रेखांकित किया है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि बहुत सी गम्भीर व दीर्घकालीन बीमारियों से सम्बद्ध हानिकारक उत्सर्जनों के लिये जीवाश्म ईंधन ज़िम्मेदार हैं इसलिये उनके प्रयोग को रोकने के लिये ठोस क़दम उठाने होंगे.

संगठन ने और ज़्यादा देशों से इस पर ध्यान देने का भी आग्रह किया है कि एजेंसी ने वायु गुणवत्ता संकेतकों में महत्वपूर्ण बदलाव किये हैं, जिनमें एक विशिष्ट पदार्थ – PM2.5 भी शामिल है जो नाइड्रोजन डाइ ऑक्साइड के साथ-साथ रक्त धारा में दाख़िल हो सकता है.

ख़तरनाक निम्न स्तर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की तकनीकी अधिकारी डॉक्टर सोफ़ी गूमी का कहना है, “ये मालूम हुआ है कि वायु प्रदूषण पहले सोचे गए स्तरों से कहीं निम्न स्तर पर भी स्वास्थ्य को प्रभावित करता है.”

“इसलिये पिछले 15 वर्षों के दौरान सामने आए नए सबूतों से मालूम होता है कि वायु गुणवत्ता के बारे में पहले दिये गए दिशा निर्देशों के अधिकतर मूल्यों में कमी आई है. पीएम के स्तर के लिये इसमें दो बिन्दुयों की कमी हुई है जबकि नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड के स्तर में चार बिन्दुओं की कमी देखी गई है.”

अदृश्य ख़तरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों से पता चलता है कि 42 लाख लोगों की मौत, खुले स्थानों पर वायु प्रदूषण की चपेट में आने से होती है. इसके अतिरिक्त जिन 38 लाख लोगों की मौत घरों से निकलने वाले धुएँ के कारण होती है वो गन्दे स्टोव और ईंधनों के प्रयोग से निकलता है.

कैनेडा के टोरण्टो शहर में कोहरा छाया होने की एक तस्वीर
© Unsplash/Kristen Morith
कैनेडा के टोरण्टो शहर में कोहरा छाया होने की एक तस्वीर

दुनिया के लगभग 80 प्रतिशत शहरी इलाक़ों से एकत्र प्रदूषण सम्बन्धी आँकड़ों से मालूम होता है कि हम से लगभग हर व्यक्ति, हृदय बीमारियाँ, आघात, फेफड़ों की बीमारियाँ कैंसर और न्यूमोनिया के बढ़े हुए ख़तरों की चपेट में है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने इस निराशाजनक और ख़तरनाक स्थिति के मद्देनज़र ये भी कहा है कि पिछले दशक के दौरान हर जगह ही बेहतर वायु गुणवत्ता के लिये मुहिम में तेज़ी आई है.

इसका एक सबूत ये है कि इस समय दुनिया के 117 देशों में छह हज़ार से ज़्यादा शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है जबकि एक दशक पहले ये आँकड़ा 91 देशों में लगभग 1,100 नगरों का था.

स्वच्छ वायु की उपलब्धता, 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) में भी एक लक्ष्य है, और संयुक्त राष्ट्र की अनेक एजेंसियों ने प्रस्ताव पारित करके सदस्य देशों से, प्रदूषण से भरी वायु के स्वास्थ्य प्रभावों पर ध्यान देने का आग्रह किया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशिका डॉक्टर मारिया नीरा ने वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले नगरों की संख्या बढने का स्वागत करते हुए कहा कि ख़ासतौर से नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड पर भी आँकड़े एकत्र किया जाना अहम है.

उनका कहना है कि NO2 यातायात के लिये एक संकेतक है और ये हमें बता रहा है कि शहरों के स्तर पर क्या हो रहा है और ये गैस किस तरह से, दुनिया भर में अनेक शहरों में बढ़ रही है, जबकि हम जानते हैं कि ये गैस कितनी हानिकारक है और साँस सम्बन्धी बीमारियाँ पैदा करती है, जिनमें अस्थमा भी एक है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के पदाधिकारियों का कहना है कि इस प्रगति के बावजूद एक बुरी ख़बर ये है कि अब भी बहुत से शहर, वायु गुणवत्ता सम्बन्धी दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं. वहाँ रहने वाले लोगों को अब भी पीएम और नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड के अस्वस्थ स्तरों को अपनी साँसों में खींचना पड़ रहा है.