जलवायु: तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिये 'अभी या कभी नहीं' कार्रवाई का समय

संयुक्त राष्ट्र की सोमवार को जारी एक महत्वपूर्ण जलवायु रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि वर्ष 2010-2019 के दौरान हानिकारक कार्बन उत्सर्जन का स्तर मानव इतिहास में सबसे उच्च रहा है और ये इस बात का सबूत है कि दुनिया विनाश की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रही है, ऐसे में यूएन महासचिव ने आगाह किया है कि जैसाकि वैज्ञानिकों का भी तर्क है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये ये समय, ‘अभी या कभी नहीं’ कार्रवाई करने का है.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने जलवायु परिवर्तन पर अन्तरसरकारी पैनल (IPCC) की नवीनतम रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ज़ोर दिया कि अगर तमाम देशों की सरकारें अपनी ऊर्जा नीतियों का पुनः आकलन नहीं करेंगी, दुनिया ‘ग़ैर आबाद’ बन जाएगी, यानि मनुष्यों के रहने योग्य नहीं रह जाएगी.
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यूएन महासचिव की टिप्पणी में पैनल का ये रेखांकन नज़र आता है कि सभी देशों को अपने जीवाश्म ईंधन प्रयोग में बड़े पैमाने पर कमी करनी होगी, बिजली का प्रयोग बढ़ाना होगा, ऊर्जा कुशलता बेहतर बनानी होगी और हाइड्रोडन जैसे वैकल्पिक ईंधनों का प्रयोग बढ़ाना होगा.
एंतोनियो गुटेरेश ने एक वीडियो सन्देश में कहा कि अगर जल्द ही कार्रवाई नहीं की जाती है तो कुछ प्रमुख शहरों में पानी भर जाएगा. साथ ही अभूतपूर्व गर्म हवाएँ चलने, भीषण तूफ़ान, व्यापक जल क़िल्लत और पेड़-पौधों व पशुओं की कई लाख प्रजातियों के लुप्त होने के ख़तरों के बारे में भी आगाह किया गया है.
यूएन प्रमुख का कहना है कि ये कोई काल्पनिक कथा या अतिश्योक्ति नहीं है. विज्ञान हमें बताता है कि ये वो वास्तविकता है जो मौजूदा ऊर्जा नीतियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होगी. हम पेरिस जलवायु समझौते में सहमतु हुए - 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी के लक्ष्य से दो गुना वैश्विक तापमान वृद्धि के विनाशकारी रास्ते पर हैं.
आईपीसीसी रिपोर्ट में इस भयावह आकलन के समर्थन में सबूत भी पेश किये गए हैं.
दुनिया के सैकड़ों अग्रणी वैज्ञानिकों द्वारा तैयार और 195 देशों द्वारा इस रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि मानव गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में, वर्ष 2010 के बाद से दुनिया भर के तमाम प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ोत्तरी हुई है.
रिपोर्ट के लेखकों ने ध्यान दिलाया है कि कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि के लिये क़स्बों और शहरों को काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. पिछले लगभग एक दशक के दौरान कार्बन उत्सर्जन में कटौती, इसी अवधि में कार्बन बढ़ोत्तरी से कम रही है और ऐसा, उद्योगों, ऊर्जा आपूर्ति, परिवहन, कृषि व इमारतों में वैश्विक गतिविधियों में बढ़ोत्तरी के कारण हुआ है.
आईपीसीसी ने एक सकारात्मक बिन्दु पर ज़ोर देते हुए ये भी कहा कि वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में कम से आधी कटौती अब भी सम्भव है – पैनल ने साथ ही तमाम देशों की सरकारों से, कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये कार्रवाई बढ़ाने का भी आग्रह किया.
इस यूएन जलवायु संस्था ने वर्ष 2010 के बाद से, अक्षय ऊर्जा (Renewable energy) की लागत में आई महत्वपूर्ण कमी का भी स्वागत किया जोकि सौर और वायु ऊर्जा व बैटरियों में लगभग 85 तक देखी गई है.
आईपीसी के चेयरपर्सन होसुंग ली का कहना है, “हम एक चौराहे पर खड़े हैं. हम आज जो निर्णय लेंगे, उनसे रहने योग्य भविष्य सुरक्षित किया जा सकेगा.”
“मैं अनेक देशों में की गई जलवायु कार्रवाई पर उत्साहित हूँ. ऐसी अनेक नीतियाँ, नियम और बाज़ार दस्तावेज़ हैं जो प्रभावशाली साबित हो रहे हैं. अगर इनका दायरा बढ़ाया जाता है और इन्हें ज़्यादा व्यापक तरीक़े व समानता के साथ लागू किया जाता है तो कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौतियाँ करने में मदद मिल सकती है और नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकता है.”
आईपीसीसी की रिपोर्ट में ज़ोर दिया गया है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री (2.7F) तक सीमित रखने के लिये, वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जनों में वृद्धि 2025 तक उच्च बिन्दु पर पहुँचना ज़रूरी है ताकि उसके बाद वर्ष 2030 तक 43 प्रतिशत की कमी लाई जा सके.