भारत: उड़ीसा बाजरा मिशन - बदलाव के बीज बोने की मुहिम

संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और ओडिशा सरकार का बाजरा मिशन, खेत से लेकर दुकान तक महिलाओं की आजीविका को मज़बूत करने और जलवायु अनुकूल फ़सलों व पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देकर, छोटे किसानों और महिलाओं की मदद करने की कोशिशें कर रहे हैं.
50 वर्षीय किसान सुबासा मोहन्ता के लिये भूख कोई अजनबी नहीं हैं. उनके व परिवार के तीन सदस्यों (उसके पति सुरेश्वर, एक बेटा और एक बेटी) के जीवन की यह एक स्थाई समस्या है. खेत पर मज़दूरी व निर्माण स्थल पर 16 लम्बे घण्टों तक कमर-तोड़ काम करने के बावजूद उन्हें पता नहीं होता था कि उनका अगली भोजन ख़ुराक कैसे मिलेगी. फिर, 2018 में, बीजों के एक छोटे से बैग - 250 ग्राम बीज - ने सुबासा की खाद्य असुरक्षा दूर करने में मदद की.
ओडिशा सरकार द्वारा, एक ग्रामीण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में दिये गए ‘फिंगर बाजरे’ यानि रागी के बीजों को उन्होंने अपने ईंट-मिट्टी के घर के आसपास की 0.6 हेक्टेयर भूमि में बिखेर दिया. फिर लगभग दो महीने बाद, उन्होंने माँडिया (रागी या बाजरा के लिये उड़िया शब्द) की अपनी पहली फ़सल काटी. सुबासा ने इसका एक हिस्सा यानि लगभग 500 किलोग्राम, 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा, थोड़ा परिवार के लोगों का पेट भरने के लिये रखा, और बाक़ी दोस्तों और परिवार के बीच बाँट दिया. और फिर, दोबारा उन्होंने मयूरभंज ज़िले के जशीपुर प्रखण्ड के गोइली गांव में स्थित अपने खेत में बदलाव के ये बीज बोए.
पिछले तीन वर्षों में, सुबासा की आशा, आत्मविश्वास और सशक्तिकरण की कहानी, ओडिशा सरकार के कृषि और किसान अधिकारिता विभाग के एक प्रमुख कार्यक्रम, ओडिशा मिलेट्स मिशन (ओ एम एम) की उत्पत्ति और विकास के साथ जुड़ी हुई है.
उनके दिन अब अपनी ज़मीन व 3.2 हेक्टेयर की पट्टे पर ली गई भूमि पर खेती करने और मयूरभंज व ओडिशा के अन्य ज़िलों में महिलाओं को बाजरे की खेती की उत्कृष्ट प्रथाओं पर सलाह देने में बीतते हैं. अपनी कड़ी मेहनत और ऐसे समय में एक नई फ़सल उगाने की कोशिशों के लिये वो ‘माँडिया माँ’ के नाम से प्रसिद्ध हैं, जब कोई दूसरा व्यक्ति इस पर काम करने के लिये तैयार नहीं था. वह उन स्थानीय पत्रकारों से मिलती हैं, जो ‘माँडिया माँ’ की एक झलक पाने के लिये क़तार में खड़े रहते हैं.
बाजरे ने केवल मोहन्तों का भाग्य ही नहीं बदला, बल्कि अब वो उनके भोजन का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है. वो अब सुआन (लिटिल मिलेट) और ज्वार जैसी विविध फ़सले उगाने में लगी हैं. माँडिया काकरा पिठा (एक प्रकार का पैनकेक) से लेकर माँडिया माल्ट (सुबह पीने के लिये एक स्वास्थ्य पेय) तक, परिवार का यह पोषण कटोरा, ओएमएम की सफलता की कहानी बयाँ करता है.
2017 में शुरू गया ओडिशा मिलेट्स मिशन - OMM अपनी तरह की पहली कृषि पहल है जो पूर्वी भारतीय प्रदेश में, पोषण से भरपूर बाजरे की खेती को प्रोत्साहन देती है. मिशन का उद्देश्य - ओडिशा की जनजातियों के पारम्परिक भोजन, बाजरे को उनकी थाली में वापस लाना है.
इसका मक़सद, छोटे किसानों को जलवायु-सहनसक्षम फ़सल अपनाने के लिये प्रोत्साहित करके, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) के माध्यम से मांग पैदा करने व इसे वितरित करके आजीविका और खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करना है. उम्मीद की जा रही है कि यह, अन्य प्रयासों के साथ-साथ विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समुदायों के बीच कुपोषण से निपटने का एक औज़ार साबित होगा.
एक समीक्षा से पता चला है कि चावल आधारित आहार की तुलना में बाजरा आधारित आहार, बच्चों के विकास में महत्वपूर्ण सुधार ला सकता है. ओ एम एम, पोषण सुरक्षा प्रदान करने के अलावा, इस तथ्य को भी रेखांकित करता है कि बाजरे के नियमित सेवन से, श्वसन स्वास्थ्य और मांसपेशियों व तंत्रिका तंत्र में सुधार होने से, मधुमेह, हृदय रोग एवं पाचन सम्बन्धी विकारों का ख़तरा कम हो जाता है.
बाजरे के पौधे की सूखा, बाढ़ और गर्मी की उच्च सहनशीलता (64 डिग्री सैल्सियस तक) भी फ़सल को जलवायु परिवर्तन और घटते प्राकृतिक संसाधनों के युग में किसान के लिये एक स्पष्ट विकल्प बनाती है. भारतीय आहार के दो मुख्य पदार्थ, चावल और गेहूँ की तुलना में, उन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है. कम मौसम प्रभावों वाली बाजरा फ़सलें, उर्वरकों के बिना आसानी से उग जाती हैं, जिससे वे उपभोक्ता और मिट्टी दोनों के लिये एक स्वस्थ और सुरक्षित विकल्प बन सकते हैं.
जैसा कि संयुक्त राष्ट्र संस्था - विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की एक रिपोर्ट में कहा गया है, OMM के तहत, “केवल जैविक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, इसलिये जैविक बाजरे का उत्पादन होता है. इससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है." अन्य फ़सलों के साथ बाजरे की इंटरक्रॉपिंग भी मिट्टी की गुणवत्ता के लिये फ़ायदेमन्द होती है. इससे पानी के बहाव को रोकने में मदद मिलती है और कटाव प्रवण क्षेत्रों में मिट्टी के संरक्षण में मदद मिलती है.
ओ एम एम पर ओडिशा सरकार के साथ साझेदारी कर रहे डब्ल्यूएफ़पी के अनुसार, 2019 में, गजपति, कोरापुट और कन्धमाल ज़िलों के प्रशासन ने, ग़रीबों को रियायती भोजन की आपूर्ति करने वाले कार्यक्रम, पीडीएस के तहत, राशन कार्ड रखने वालों को एक किलो बाजरा (साल में एक बार) दिया. अगले वर्ष, राज्य के सात सैम्पल ज़िलों ने राशन-कार्ड धारकों को बाजरा (1-2 किलो प्रति वर्ष) वितरित किया.
मार्च 2021 में ओडिशा सरकार के साथ एक ओ एम एम सम्बन्धित समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले डब्ल्यूएफ़पी ने यह भी बताया कि बाजरे को जल्द ही मध्याह्न भोजन योजना में भी शामिल किया जा सकता है. इसके तहत सुन्दरगढ़ और क्योंझर ज़िलों के स्कूली छात्रों को बाजरा, बिस्कुट और माल्ट प्रदान किया जाएगा.
शुरूआत में, ओ एम एम ने 14 ज़िलों में एक बड़ी जनजातीय आबादी वाले 72 ब्लॉकों को कवर किया. चार वर्षों में, इसकी पहुँच 15 ज़िलों के 84 ब्लॉकों, 1,510 ग्राम पंचायतों, 15 हज़ार 608 गाँवों और एक लाख 10 हज़ार 448 किसानों तक पहुँच गई.
कार्यक्रम शुरू होने के बाद से ओ एम एम, ज़िलों में रागी की खेती का इलाक़ा, 3 हज़ार 116 हेक्टेयर से बढ़कर 43 हज़ार 993 हेक्टेयर हो गया है. साथ ही रागी की पैदावार 2018 में 13.59 क्विण्टल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2020 में 16.42 क्विण्टल प्रति हेक्टेयर हो गई है.
मिशन के लिये एक बड़े प्रोत्साहन के रूप में, 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें 2023 को ‘अन्तरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष’ घोषित किया गया. यह ओ एम एम के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में काम करने के लिये डब्ल्यूएफ़पी और ओडिशा सरकार के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने और एक फ़सल के रूप में बाजरे के आसपास वैश्विक और क्षेत्रीय सम्वाद बनाने के लिये तय किया गया है, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिल सकती है.
बाजरे पर एक राष्ट्रीय नीति के सुझावों में, WFP ने बाजरे के जैविक प्रमाणीकरण की सिफ़ारिश भी की है, ताकि किसानों को बाज़ार से उचित मूल्य प्राप्त हो सके. साथ ही, इसमें सभी प्रकार के बाजरे के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का सार्वभौमिकरण और सम्पूर्ण बाजरा मूल्य श्रृंखला के लिये एक एकीकृत बुनियादी ढाँचा प्रदान करना, और एक ही स्थान पर, बाजरा केन्द्रित औद्योगिक पार्क की स्थापना की सुविधा प्रदान करना, जिसमें व्याक दायरा वाला प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और पैकेजिंग के लिये व्यापक ज़रूरतें पूरी करने वाली औद्योगिक इकाइयाँ शामिल हों.
भारत में डब्ल्यूएफ़पी प्रतिनिधि और देश निदेशक, बिशउ पाराजुली कहते हैं, "डब्ल्यूएफ़पी, भारत में, मुख्यधारा के बाजरे पर उत्कृष्ट प्रथाओं के संग्रह पर साझेदारी करने के लिये उत्साहित है. इससे आने वाले वर्षों में राज्य सरकारों के साथ ज्ञान साझा करने और जुड़ाव द्वारा बाजरा को मुख्यधारा में लाने के लिये प्रेरणा मिलेगी.”
बिशउ पाराजुली कहते हैं, "पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत और एक जलवायु-सहनसक्षम फ़सल होने के अलावा, बाजरा खाद्य प्रणाली में विविधता ला सकता है, लचीलापन निर्माण व अनुकूलन में सहायता कर सकता है और महिलाओं समेत सभी छोटे किसानों के लिये राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर आजीविका बढ़ा सकता है."
ओडिशा में, चार साल पहले स्वयंसेवकों, समुदाय के व्यक्तियों और कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों के बीच पत्रक, लाउडस्पीकर घोषणाओं के साथ, ग्रामीणों के बीच बीज वितरण के साथ शुरू हुए इस कार्यक्रम ने, अब महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा संचालित एक आन्दोलन का रूप ले लिया है.
आमतौर पर, कटाई के बाद के श्रम और बीजों के रखवाले के रूप में देखे जाने वाली महिलाओं ने रागी प्रसंस्करण में अग्रणी भूमिका निभाई है, जैव-आदानों के साथ बाजरा की पैदावार में सुधार किया है, और बाजरा आधारित व्यंजन परोसने वाले कैफ़े व केन्द्र चलाने में मदद की है. ओडिशा में भोजन में बाजरे का सबसे आम रूप - जौ (बिना पॉलिश किए अनाज से बना दलिया) - अब बारा, मालपुआ, खाजा और चाकुली जैसे अन्य पारम्परिक व्यंजनों के बीच स्थान बना चुका है.
क्योंझर सदर क़स्बे के जशीपुर से क़रीब 90 मिनट की दूरी पर कृष्णा स्वयं सहायता समूह की गंगा सिंह, रागी प्रसंस्करण की एक कार्यशाला में रोजाना चार से पाँच घण्टे बिताती हैं. घर का काम ख़त्म करने के बाद अपने ख़ाली समय में, वह व्यंजनों की रेसिपी के बारे में सोचती रहती हैं जिन्हें वो अगली बार ओ एम एम के तहत आयोजित प्रशिक्षण कार्यशाला या मेले में स्टाल लगाकर परोस सकती हैं. अब तक उन्होंने रागी मोमोज़, रागी चिकन पकोड़े और रागी बिरयानी परोसी हैं. उन्हें विश्वास है कि उनकी रागी चाय का स्वाद उतना ही अच्छा है जितना कि एक आम दुकान के किसी भी गर्म पेय का होता है.
शायद यह महिलाओं की नवाचार की ललक और नए विचारों के लिये उनका खुलापन ही है - जिसने ओडिशा सरकार को ओ एम एम और मिशन शक्ति, एस एच जी के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के अपने कार्यक्रम को बाजरा शक्ति कैफ़े के रूप में एक साथ लाने के लिये प्रेरित किया. पहला कैफ़े अक्टूबर 2021 में क्योंझर के कलैक्ट्रेट के परिसर में खोला गया.
स्थानीय एस एच जी द्वारा चलाए जा रहे रागी और बाजरे की मिठाइयों से लेकर आटे के मिश्रण व ब्रेड तक, स्थानीय एस एच जी द्वारा चलाए जा रहे ये कैफ़े, रिफाइन्ड आटे और प्रसंस्कृत चीनी को खाने के मैन्यू से बाहर करने की कोशिश कर रहे हैं. इस प्रक्रिया में, ‘मिलेट शक्ति’ कार्यक्रम, गृहिणी को दिन के कुछ घण्टों के लिये चूल्हा छोड़कर, उसे ऐप्रेन, रसोइये की टोपी और सबसे महत्वपूर्ण, एक आमदनी प्रदान करती है.
फ्राइंग पैन यानि तलने का बर्तन - या कुछ मामलों में बिस्किट कटर - सशक्तिकरण की इस कहानी में बदलाव का एकमात्र प्रतीक नहीं है. मिट्टी के बर्तन, भण्डारण के ड्रम और बोतलें भी मिशन को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं.
जशीपुर ब्लॉक की माँ हिंगुला एसएचजी के 10 सदस्य, हर दिन एक छोटी सी कार्यशाला में नीम और करंजा के पेड़, गाय के गोबर और मूत्र, गुड़ व दीमक की पहाड़ियों से रेत के ढेर लेकर इकट्ठा होते हैं. इस सामग्री से अपना काम पूरा करने के बाद, वो इन जैविक-वस्तुओं से बने पदार्थ (‘जिबामृत’ जिसका अर्थ है जीवन का अमृत, ‘अग्निस्त्र’, आग का हथियार, और ‘हाण्डी खाता’ यानि मिट्टी के बर्तन में बनी खाद जैसे नामों के साथ) बोतलों में भरकर बाज़ार में भेज दिया जाता है. ये मिश्रण पानी और संरचना को बनाए रखते हुए, कृषि की मिट्टी को कीटों से लड़ने में मदद करता है.
परिवर्तन के बीज ने जड़ें जमा ली हैं, लेकिन आगे का रास्ता चुनौती-मुक्त नहीं है.
कृषि अधिकारियों और क्षेत्र के ज़िला समन्वयकों के अनुसार, बाजरे को ग़रीबों और वंचितों का भोजन माना जाता है, इसलिये इसके लिये प्रचार, सोशल मीडिया अभियानों, और संभवतः ब्रैण्ड एम्बेसडर व मशहूर हस्तियों के जागरूकता सन्देशों के माध्यम से इसका प्रचार किये जाने की आवश्यकता है. कुछ लोग, ओ एम एम को 2023 में, ओडिशा में आयोजित होने वाले एफ़ आई एच हॉकी विश्व कप जैसे प्रतिष्ठित मंच के साथ जोड़ने में काफी सम्भावनाएँ देखते हैं.
वहीं O M M की कार्यान्वयन एजेंसी, वाटरशेड सपोर्ट सर्विसेज एण्ड एक्टिविटीज नेटवर्क (WASSAN) के प्रतिनिधि सहित कुछ अन्य लोग मानते है कि हितधारकों को उपकरणों के आधुनिकीकरण और निजी उद्योगों को फ़सल व उसके उत्पादों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहन देकर, राज्य में बाजरे की पैदावार बढ़ाने पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. इसके अलावा, माँडिया से आगे बढ़ने की भी ज़रूरत है, जो भारत में उपलब्ध नौ क़िस्मों में से सिर्फ एक ही है.
ओडिशा सरकार के कृषि और किसान अधिकारिता विभाग के आयुक्त-सह-सचिव, सुरेश कुमार वशिष्ठ को उम्मीद है कि ओ एम एम चुनौतियों से ऊपर उठकर देश के अन्य राज्यों के लिये एक उदाहरण बनेगा. वो कहते हैं, “मिशन की शुरुआत उत्पादन नहीं बल्कि खपत बढ़ाने के विचार से की गई थी. हम जानते ते अगर हम घरेलू स्तर पर खपत बढ़ा सकते हैं, तो इससे बाजरे की माग बढ़ेगी और लोग बाजरा उगाएंगे.
सुरेश कुमार वशिष्ठ बताते हैं कि प्रति हेक्टेयर उपज दोगुनी हो गई है. “2017 से पहले जो क्षेत्र सिकुड़ रहा था, वह भी बढ़ने लगा है. किसान की आय में भी वृद्धि हुई है.”
उन्होंने आगे कहा, दुकानों में अपनी सही जगह हासिल करने के लिये, ओ एम एम को शहरी उपभोक्ता के समर्थन की आवश्यकता है.
हालाँकि इस बदलाव का वांछित असर दिखने में अभी कुछ समय लग सकता है, लेकिन ओडिशा के गाँवों और छोटे शहरों में महिलाएँ बाजरे के काम में पूरी लगन से जुटी हैं. और इससे जीवन बदल रहा है, दाने-दाने से.