मानवाधिकार परिषद: ‘झूठी ख़बरों’ पर लगाम कसने के लिये प्रस्ताव पारित
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में सदस्य देशों ने यूक्रेन के आग्रह पर शुक्रवार को झूठी ख़बरों (fake news) और भ्रामक जानकारी के फैलाव से निपटने के लिये, एक कार्ययोजना को पारित किया है. इस प्रस्ताव को व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ, मगर यह सर्वसम्मति से पारित नहीं हो पाया.
जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद में इस प्रस्ताव के मसौदे को आधिकारिक रूप से यूक्रेन, जापान, लातविया, लिथुएनिया, पोलैण्ड, ब्रिटेन और अमेरिका ने प्रायोजित किया.
इस प्रस्ताव में झूठे दावों और वर्णनों का सामना करने में देशों की सरकारों की प्राथमिक भूमिका पर ज़ोर दिया गया है.
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UNGeneva
प्रस्ताव में चिन्ता जताई गई है कि नुक़सान पहुँचाने, या फिर निजी, राजनैतिक और वित्तीय मुनाफ़े के लिये जानबूझकर झूठी या चालाकी से तैयार की गई जानकारी के ज़रिये लोगों को धोखा देने, उन्हें गुमराह करने की कोशिशें हो रही हैं.
इसका मानवाधिकारों पर होने वाला नकारात्मक असर बढ़ता जा रहा है.
मानवाधिकार परिषद का निर्णय क़ानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, मगर विश्व में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिये प्रयासरत मंच पर इस प्रस्ताव का पारित होना अहम है.
‘साझा शत्रु’
चीन ने दुष्प्रचार को अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का एक साझा शत्रु क़रार दिया, मगर प्रस्ताव के मसौदे को पारित करने से स्वयं को अलग कर लिया.
चीन का मानना है कि प्रस्ताव में झूठी ख़बरों की बुनियादी वजहों और मानवाधिकार तंत्रों की भूमिका पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है.
वेनेज़्वेला ने भी पूर्वाग्रह का हवाला देते हुए मसौदे को ख़ारिज कर दिया, और आरोप लगाया कि प्रस्ताव के प्रायोजक देश ही दुष्प्रचार मुहिम के लिये ज़िम्मेदार हैं.
फ़्राँस ने ज़ोर देकर कहा कि दुष्प्रचार के ज़रिये मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व पत्रकारों पर हमले करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसके मद्देनज़र, देशों में ज़्यादा समन्वय और प्रयासों की आवश्यकता है.
भारत ने इस सन्देश के समर्थन में कहा कि फ़ेक न्यूज़ से निपटने में सोशल मीडिया कम्पनियों की अहम भूमिका है, और समाजों पर इसका असर बढ़ रहा है.
इण्डोनेशिया के मुताबिक़, दुष्प्रचार से निपटना एक शीर्ष प्राथमिकता है, मगर इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय स्तर पर नीतियाँ बनाया जाना सर्वोत्तम उपाय है, ताकि सांस्कृतिक भिन्नताओं का भी ध्यान रखा जा सके.
डिजिटल जगत की चुनौतियां
झूठी, भ्रामक ख़बरों और दुष्प्रचार की चुनौती कोई नई बात नही है, और सोशल मीडिया के दौर में ग़लत सूचनाएँ तेज़ी से फैलती हैं.
अक्सर उन्हें ग़लत साबित करने के लिये सत्यापित जानकारी को सामने आने में समय लग जाता है.
वैश्विक स्तर पर कोविड-19 महामारी के दौर में फ़ेक न्यूज़ पर विशेष रूप से चिन्ता जताई गई थी, जब ऐसे इलाज के दावे किये गए जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था.
वहीं, वैक्सीन का विरोध करने वाले और सन्देह फैलाने वाले लोगों को भी बड़ी संख्या में समर्थन मिला, और झूठी ख़बरों और अफ़वाहों का प्रसार हुआ.