रिहायशी इलाक़ों में विस्फोटक हथियारों का इस्तेमाल, आमजन की रक्षा पर बल

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने शहरों व नगरों में आबादी वाले इलाक़ों में विस्फोटक हथियारों के इस्तेमाल से आमजन की रक्षा के इरादे से, एक राजनैतिक घोषणापत्र तैयार करने की दिशा में हो रहे प्रयासों का स्वागत किया है. स्विट्ज़रलैण्ड के जिनीवा शहर में अगले सप्ताह इस विषय पर 6 से 8 अप्रैल तक बैठक आयोजित की जाएगी.
सीरिया से यूक्रेन तक, और इथियोपिया से म्याँमार तक, आबादी वाले इलाक़ों में विस्फोटक हथियारों के इस्तेमाल (Explosive Weapons In Populated Areas/EWIPA) से जान-माल की भीषण हानि हुई है.
यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर पिछले एक दशक से भी लम्बे समय से चिन्ताएँ व्यक्त की जा रही हैं, और युद्धरत पक्षों से इनके इस्तेमाल से बचने की अपीलें की गई हैं.
When used in populated areas, #explosiveweapons destroy towns & cities, ruining lives and livelihoods – even after fighting has stopped.@UN Secretary-General @antonioguterres encourages States to commit to avoiding the use of #EWIPA 👉 https://t.co/OtATfwmpJE pic.twitter.com/qiiX1g37PS
UN_Disarmament
सऊदी अरब और यमन में हाल के दिनों में नागरिक प्रतिष्ठानों पर हवाई कार्रवाई, और यूक्रेन में रूसी सैन्य बलों के हमलों से लाखों लोग भय के साये में जी रहे हैं.
यूएन प्रमुख की ओर से जारी बयान में आगाह किया गया है कि, “जब विस्फोटक हथियारों को आबादी वाले इलाक़ों में इस्तेमाल में लाया जाता है, तो 90 फ़ीसदी हताहत आमजन होते हैं.”
उन्होंने कहा कि इसका नतीजा लाखों लड़कियों, लड़कों, महिलाओं व पुरुषों के लिये दीर्घकालीन सदमे के रूप में नज़र आता है.
EWIPA सन्धि पर अनौपचारिक वार्ताएँ, जिनीवा में 6 से 8 अप्रैल तक आयोजित होने का कार्यक्रम है.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने आगाह किया कि आबादी वाले इलाक़ों में विस्फोटक हथियारों के इस्तेमाल से आम लोगों को नुक़सान पहुँचता है, ज़िन्दगियाँ व आजीविकाएँ तबाह हो जाती हैं, और स्वास्थ्य केंद्रों समेत अहम बुनियादी ढ़ाँचों को क्षति पहुँचती है.
बताया गया है कि हर 10 में से 9 हताहत आम लोग होते हैं.
“हर क्षेत्र में आबादी वाले इलाकों को विस्फोटक हथियारों की बौछार से विनाशकारी पीड़ा को सहन करना पड़ा है, जिसके व्यापक क्षेत्र पर असर होते हैं.”
वक्तव्य में ध्यान दिलाया गया है कि कुछ प्रकार के भारी हथियारों को असल में पारम्परिक, खुले रणक्षेत्रों में इस्तेमाल के लिये तैयार किया गया था.
मगर, इन्हें जब रिहायशी इलाक़ों में इस्तेमाल में लाया जाता है तो इनसे व्यापक और अक्सर अंधाधुंध तबाही होती है, जिसकी जद में आमजन व नागरिक प्रतिष्ठान आते हैं.
इनमें स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, जल व साफ़-सफ़ाई केंद्र, ऊर्जा व अन्य अहम बुनियादी ढाँचे और पर्यावरण है.
महासचिव ने सचेत किया कि नागरिक प्रतिष्ठानों और अति-महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को पहुँचने वाली क्षति व बर्बादी को लम्बे समय तक, लड़ाई रुकने के बाद भी महसूस किया जा सकता है.
इसके विनाशकारी प्रभावों में लम्बे समय तक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, जल, संचार व आजीविका की सुलभता पर पड़ने वाला असर भी है, जिससे प्रभावित आबादी के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार प्रभावित होते हैं.
इन व्यवधानकारी प्रभावों के कारण देशों की सीमाओं के भीतर और बाहर सामूहिक विस्थापन हो सकता है, जिससे विस्थापित आबादी की स्वैच्छिक, सुरक्षित व गरिमामय ढँग से अपने मूल स्थानों पर वापसी में बाधाएँ आ सकती हैं.
वक्तव्य में सचेत किया गया है कि अक्सर युद्धक सामग्री के उच्च स्तरों के परिणामस्वरूप दूषक तत्वों के फैलने से, लड़ाई रूकने के लम्बे समय बाद भी स्थिरता व पुनर्निर्माण प्रयास प्रभावित होते हैं.
उदाहरणस्वरूप, बारूदी सुंरग को हटाने के लिये गतिविधियाँ जटिल, ख़र्चीली और ख़तरनाक होती हैं.
यूएन प्रमुख ने राजनैतिक घोषणापत्र का मसौदा तैयार करने के लिये अब तक हुए प्रयासों का स्वागत किया गया है, जिनसे मानवीय व मानवाधिकार प्रभावों को दूर करने में मदद मिल सकती है.
मगर, उन्होंने प्रस्ताव के मसौदे को मज़बूत बनाने और उसमें एक ऐसे संकल्प को व्यक्त करने की अपील की है, जिससे आबादी वाले क्षेत्रों में विशाल इलाक़ों पर असर डालने वाले विस्फोटक हथियारों से बचने की बात कही गई हो.
यूएन महासचिव ने अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के अन्तर्गत मौजूदा आवश्यकताओं के अनुरूप राजनैतिक घोषणापत्र, उपयुक्त सीमितताएं, साझा मानक व कामकाज सम्बन्धी नीतियों को विकसित किये जाने का समर्थन किया है.