सबसे कम विकसित देशों को निवेश, योजनाओं और कार्रवाइयों में प्राथमिकता मिले
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने गुरुवार को 'सबसे कम विकसित देशों' (Least Developed Countries - LDCs) पर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए, मानवता के इस आठवें हिस्से की आशाओं, सपनों, ज़िन्दगियों व आजीविकाओं को पूरा करने के लिये, ‘दोहा कार्रवाई कार्यक्रम’ (Doha Programme of Action) की अहमियत को रेखांकित किया है.
सबसे कम विकसित देशों (Least Developed Countries) पर पाँचवा सम्मेलन दो हिस्सों में आयोजित किया जा रहा है: 17 मार्च 2022 को न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय में, 'दोहा कार्यक्रम योजना' को पारित करने पर विचार किया जाएगा.
सम्मेलन का दूसरा भाग, दोहा में 5-9 मार्च, 2023 में आयोजित होगा, जिसमें विश्व नेता, नागरिक समाज, निजी सैक्टर, युवजन और अन्य पक्षकार, अगले दशक में दोहा कार्यक्रम योजना को पूरा करने के तहत, नई योजनाओं व साझेदारियों पर चर्चा करेंगे.
Laying out his five lifelines for the Least Developed Countries, @UN Secretary-General @antonioguterres, said the LDCs must be at the heart of all of the work of the international system.Follow live at https://t.co/bpPD0lkPsW pic.twitter.com/wIABDHPa7m
UNOHRLLS
“असमानता. भूख. निर्धनता. कमज़ोर बुनियादी ढाँचा. दरकते संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्धा. असुरक्षा व टकराव.”
यूएन प्रमुख ने महासभा हॉल में आयोजित सम्मेलन के दौरान कहा कि अल्पकालिक पुनर्बहाली के लिये जीवनरक्षक मदद प्रदान की जानी होगी, मध्यम-काल में टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति पर ज़ोर देना होगा और दीर्घकाल में ध्यान, विकास व समृद्धि पर केन्द्रित किया जाना होगा.
उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को उन सैक्टरों में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है जिनसे ग़रीब कम होती हो और सहनक्षमता बढ़े. उदाहरणस्वरूप, रोज़गार सृजन, सामाजिक संरक्षा, खाद्य सुरक्षा, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्तापरक शिक्षा और डिजिटल जुड़ाव.
उन्होंने आगाह किया सबसे कम विकसित देशों के समक्ष एक वैश्विक वित्तीय प्रणाली की चुनौती है, जोकि ‘नैतिक रूप से दीवालिया’ है, और जिसे धनी व शक्तिशाली ने तैयार किया है, जिससे विकास को बढ़ावा मिलने के बजाय, विषमताएँ पनपती हैं.
महासचिव ने ज़ोर देकर कहा कि इसे बदला जाना होगा और सचेत किया कि कुछ मामलों में तत्काल क़र्ज़ राहत, उसमें फेरबदल या फिर रद्द किये जाने की आवश्यकता होगी.
उनका मानना है कि इन देशों को कम दरों पर क़र्ज़, संकट के दौरान सहायता और नक़दी प्राप्त होने की सम्भावना होनी चाहिये.
“और हमें एक निष्पक्ष टैक्स प्रणाली बनाने व ग़ैरक़ानूनी वित्तीय लेनदेन का मुक़ाबला करने की ज़रूरत है, ताकि वैश्विक सम्पदा के विशाल हिस्सों का उन व्यक्तियों व देशों में निवेश किया जा सके, जिन्हें इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है.”
ढाँचागत बदलाव
अधिकतर अल्पतम विकसित देशों में आर्थिक प्रगति प्राकृतिक संसाधनों या फिर ऐसे सैक्टरों से जुड़ी है, जिनमें वस्तु क़ीमतों, बाज़ारी रुझानों और जलवायु परिवर्तन के कारण उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं.
इसके अलावा, वहाँ शिक्षा व कामगारों के लिये प्रशिक्षण अवसरों की व्यवस्था ख़राब है, बुनियादी ढाँचा कमज़ोर है, और उत्पादकता बढ़ाने वाली टैक्नॉलॉजी की सुलभता का अभाव है.
वैश्विक महामारी कोविड-19 ने हालात को और भी जटिल बना दिया है, जिसके मद्देनज़र, ढाँचागत रूपान्तरकारी बदलावों की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है.
इसका अर्थ है: स्वस्थ, शिक्षित व कुशल कार्यबल में निवेश, बुनियादी ढाँचे व परिवहन का आधुनिकीकरण, हरित रोज़गारो का सृजन और मुक्त व निष्पक्ष व्यापार नियमों को बढ़ावा.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने चिन्ता जताई कि ये देश जलवायु संकट के ज़िम्मेदार नहीं हैं, मगर उन्हें इसके दुष्परिणामों के साथ रहना पड़ रहा है.
उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल (IPCC) की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि सबसे निर्बल देशों व क्षेत्रों में, बाढ़, सूखे और तूफ़ान के कारण 15 गुना अधिक मौतें हुई हैं.

कथनी से करनी तक
महासचिव ने स्पष्ट किया कि नवीकरणीय ऊर्जा व हरित रोज़गारों की दिशा में न्यायोचित ढंग से क़दम बढ़ाने के लिये, सबसे कम विकसित देशों को विशाल समर्थन की ज़रूरत है.
इस क्रम में, विकास बैंकों के देशों की सरकारों के साथ मिलकर प्रयास करने पर बल दिया गया है ताकि भरोसेमन्द परियोजनाएँ तैयार की जा सकें.
उन्होंने कहा कि जलवायु वित्त पोषण का 50 फ़ीसदी अनुकूलन मद में व्यय किया जाना होगा, इसके लिये अहर्ता प्रणालियों में सुधार लाने होंगे ताकि निर्बल देश भी उनसे लाभावन्वित हो सकें.
“और विकसित देशों को इस साल, विकासशील देशों के लिये 100 अरब डॉलर के जलवायु वित्त पोषण के संकल्प को पूरा करना होगा.”
“वादों को वास्तविकता में बदला जाना होगा.”
शान्ति व सुरक्षा
महासचिव ने ध्यान दिलाया कि वर्ष 1945 के बाद से दुनिया को सबसे बड़ी संख्या में हिंसक संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है. इन हॉटस्पॉट का एक बड़ा हिस्सा, सबसे कम विकसित देशों में है.
“विकास की अनुपस्थिति में शान्ति व सुरक्षा नहीं पनप सकते हैं. ना ही शान्ति व सुरक्षा की अनुपस्थिति में विकास जगह ले सकता है.”
उन्होंने कहा कि ये उन देशों में भी नहीं हो सकता है, जहाँ ऐतिहासिक अन्यायों, विषमताओं और व्यवस्थागत दमन को बढ़ाया जाता होगा, या फिर जहाँ स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और न्याय जैसी बुनियादी सेवाएँ ना हों.
महासचिव ने कहा कि उनके द्वारा प्रस्तावित ‘शान्ति के लिये नए एजेण्डा’, वैश्विक समुदाय से एकजुट होने की एक पुकार है, ताकि विकास में निवेश के ज़रिये, हिंसक संघर्षों के बुनियादी कारणों से निपटा जा सके.
इसमें एक ‘नया सामाजिक अनुबन्ध’ भी है, जोकि सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, सामाजिक संरक्षा, शिक्षा व प्रशिक्षण, समावेशी संस्थाओं और सर्वजन के लिये सुलभ न्याय प्रणालियों पर आधारित है.