भारत: पोषण के साथ महिला सशक्तिकरण

भारत में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने महिला सशक्तिकरण के लिये एक अनूठी परिवर्तनकारी पहल शुरू की है, जिसके तहत ‘टेक-होम’ राशन उत्पादन इकाइयों के संचालन में स्थानीय समुदाय की महिलाओं को शामिल किया जा रहा है. इसी पर पहल पर, भारत में विश्व खाद्य कार्यक्रम के संचार प्रमुख, परविन्दर सिंह का ब्लॉग.
भारत के सबसे अधिक आबादी वाले प्रान्त उत्तर प्रदेश में, ग्रामीण परिदृश्य में स्थित एक छोटे से सरकारी सामुदायिक केन्द्र, जागृति महिला प्रेरणा लघु उद्योग की अध्यक्ष, वन्दना देवी कहती हैं, "बच्चों और माताओं के लिये पोषण महत्वपूर्ण है. हम अपने घरों और गाँवों में जो देखते हैं, उससे हमने यही जाना-समझा है. इसकी ज़रूरत, अभी व तुरन्त है.”
देश के लगभग 40 प्रतिशत कुपोषित बच्चे, उत्तर प्रदेश में बसते हैं. लेकिन हाल ही में, कुछ गाँवों में महिला स्वयं सहायता समूहों की सक्रियता के कारण, प्रदेश में उम्मीद और शक्ति की उम्मीद जागी है.
पारम्परिक साड़ियों के साथ नीले रंग की डंगरी या पोशाक पहनकर, सूक्ष्म-उद्यम चलाने वाली इन महिलाओं के इरादे स्पष्ट दिखते हैं. वो छोटे बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और किशोरियों के लिये, पौष्टिक व आयु-उपयुक्त उत्पाद बनाने के लिये, इस इकाई में काम करने जाती हैं.
इस इकाई का संचालन आसपास के गाँवों की महिलाएँ ही करती हैं और फिर इन उत्पादों की आवश्यकतानुसार आपूर्ति की जाती है. वन्दना देवी कहती हैं, “चूँकि हम एक-दूसरे को समझते हैं, इसलिये हम जो कुछ भी बनाते हैं उसकी गुणवत्ता और मूल्य की सराहना सभी करते हैं.”
साथ ही, उन्होंने स्वच्छ पानी के उपयोग और सफ़ाई मानक बनाए रखने के लिये किए जाने वाले अन्य उपायों के बारे में भी जानकारी दी.
तीन बच्चों की माँ वन्दना देवी, पोषण सेवाओं और सशक्तिकरण को जोड़ने वाले स्थानीयता कारक की व्याख्या करते हुए कहती हैं, “इस इकाई से और सबके एक साथ आने से, यहाँ की महिलाओं के परिवारों और निजी जीवन में बदलाव आया है. अब हम आय अर्जित करने वाले सदस्य बन गए हैं, व्यवसाय कर रहे हैं और समुदाय अब पोषण के महत्व के बारे में अधिक जागरूक है.”
वन्दना देवी सूक्ष्म उद्यम की अध्यक्ष हैं, जिसके तहत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 84 मील दूर फतेहपुर ज़िले के गौसपुर गाँव में उत्पादन इकाई चलाई जाती है.
जीवन के पहले 1000 दिन – यानि गर्भाधान और जन्म के बाद बच्चे के दूसरे जन्मदिन के बीच का समय – एक ऐसा समय है जब पूर्ण स्वास्थ्य, विकास और मस्तिष्क के विकास की नींव पड़ती है. भारत में, इस अवधि को एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना के तहत, टेक-होम राशन के माध्यम से प्रभावी ढंग से पूरा किया जा रहा है.
भारत में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की पोषण योजना का नेतृत्व करने वाली, डॉक्टर शारिका यूनुस कहती हैं, “इस इकाई में काम करने वाली महिलाएँ यह अच्छी तरह समझती हैं कि यदि उनकी तैयार की हुई घर की खाद्य सामग्री पौष्टिक है, तो यह बच्चों में कुपोषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इसलिये, उनके उत्पाद, स्किम्ड मिल्क पाउडर के रूप में अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन, विटामिन वाले तेल, और खनिजों से भरपूर होते हैं.”
भारत में पिछले कुछ समय के दौरान, सहनसक्षम और टिकाऊ आजीविका हेतु आशाजनक मॉडल शुरू करने और खाद्य सुरक्षा नैटवर्क के माध्यम से समावेशी खाद्य उत्पादन करने के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की गई है. फिर भी, देश में कुपोषण उच्च स्तर पर बना हुआ है.
पाँच वर्ष से कम आयु के साढ़े 35 प्रतिशत बच्चे उम्र के हिसाब से कम क़द यानि बौनेपन का शिकार हैं; 19.3 प्रतिशत बच्चे ऊँचाई के हिसाब से कम वज़न के हैं, और 32.1 प्रतिशत बच्चों का वज़न बहुत कम है, जिनमें एनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के विकारों का उच्च स्तर शामिल है.
जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (2015-16) और एनएफ़एचएस-5 (2019-21) के दो चरणों के बीच, कुपोषण के संकेतकों में कमी दिखी है, लेकिन सभी आयु समूहों में एनीमिया और मोटापे या अधिक वज़न के फैलाव में वृद्धि हुई है.
इकाई में शामिल होने वाली सबसे नई सदस्य, मधु देवी ने बताया, “यूनिट में काम करने से, मेरे परिवार का मेरी तरफ़ नज़रिया बिल्कुल बदल गया है. वे मुझे अब एक कामकाजी महिला के रूप में देखते हैं. मुझे ख़ुशी इस बात की है कि मेरे काम से बच्चों और माताओं को मदद मिलेगी.”
उनके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान रहती है. यहाँ तक कि प्रसंस्करण इकाई में अनाज से भरी गाड़ियों को धक्का देते हुए भी उनका चेहरा ख़ुशी से खिला हुआ दिखता है.
‘टेक-होम’ राशन उत्पादन इकाइयों को चलाने के लिये, स्थानीय समुदाय की महिलाओं को शामिल करना एक अनूठी लिंग-परिवर्तनकारी पहल है, जो न केवल स्थानीय महिलाओं को आजीविका के अवसर प्रदान करती है बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाती है. यह पहल शुरू होने के कुछ महीनों के भीतर ही, महिलाओं की ज़िन्दगियों में आए सकारात्मक बदलावों को देखकर एक उम्मीद जागती हैं.
पोषण-केन्द्रित पहल के सशक्तिकरण घटक पर बारीक़ी से काम कर रहीं - WFP की लैंगिक मामलों की प्रभारी, आराधना श्रीवास्तव का कहना है, “महिलाएँ अपने रोज़गार और आमदनी को बड़ी उपलब्धि मानती हैं. अपने परिवार के हस्तक्षेप के बिना, स्वतन्त्र रूप से, अपने घर के बाहर लोगों और मसलों से निपटने के लिये उन्हें जो अवसर मिला है, उससे न केवल उनका आत्म विश्वास बढ़ा है, बल्कि उनमें ताक़त का अहसास भी जागा है. उनकी आय ने परिवार और समुदाय में भी उनकी स्थिति सुधारने में मदद की है, जिससे दोनों स्तरों पर निर्णय लेने में उनकी भागीदारी बढ़ी है. यह सब नया है, सशक्त है, और महिलाएँ इससे बहुत आनन्दित हैं.”
वन्दना देवी उन महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने जुलाई 2021 में, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये, राज्य के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ के साथ बातचीत की थी. परियोजना के प्रति प्रदेश की प्रतिबद्धता के रूप में इस उत्पादन इकाई को सरकारी निवेश मिला था.
वो बताती हैं, “एक रात पहले, मैं घबराई हुई थी, क्योंकि मैं उन सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही थी जो पोषण उत्पादन इकाई में काम करती हैं. लेकिन साथ ही, इसके लिये पूरी तरह तैयार थी और ख़ुश थी कि हमें सरकार से धन मिला.” वो कहती हैं, “अब सभी इसे गम्भीरता से लेते हैं.”
भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने दिसम्बर 2021 में, उत्तर प्रदेश के 43 ज़िलों के लिये, 202 विकेन्द्रीकृत ‘टेक-होम’ राशन (टीएचआर) उत्पादन इकाइयों की आधारशिला रखी थी.
यह उत्पादन इकाई, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच एक साझेदारी का हिस्सा है. उत्पादन इकाइयों का पायलट बड़े नीतिगत बदलाव का प्रतीक बन गया है. अब इन इकाइयों को, दो ज़िलों से बढ़ाकर पूरे प्रदेश में अपनाया जा रहा है.
एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) के हिस्से के रूप में आंगनवाड़ी केन्द्र, विशेष रूप से निम्न-आय वाले परिवारों को, बच्चों की देखभाल, स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, पूरक पोषण, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच एवं परामर्श सेवाएँ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
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