वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

यूएन मुख्यालय में डॉक्टर हंसा मेहता स्मृति सम्वाद

भारत की डॉक्टर हंसा मेहता (बाएँ), ग्वाटेमाला के प्रतिनिधि कार्लोस गार्शिया बुएर के साथ नज़र आ रही हैं और ये तस्वीर यूएन मानवाधिकार आयोग की, जून 1949 में न्यूयॉर्क में होने वाली बैठक से पहले की है.
UN Photo/ Marvin Bolotsky
भारत की डॉक्टर हंसा मेहता (बाएँ), ग्वाटेमाला के प्रतिनिधि कार्लोस गार्शिया बुएर के साथ नज़र आ रही हैं और ये तस्वीर यूएन मानवाधिकार आयोग की, जून 1949 में न्यूयॉर्क में होने वाली बैठक से पहले की है.

यूएन मुख्यालय में डॉक्टर हंसा मेहता स्मृति सम्वाद

महिलाएँ

भारत की प्रसिद्ध महिलाधिकार पैरोकार, शिक्षाविद, समाज सुधारक और लेखिका डॉक्टर हंसा मेहता की स्मृति में, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में मंगलवार, 15 मार्च को, भारतीय मिशन के सहयोग से, एक स्मृति सम्वाद आयोजित किया गया.

यूएन महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद और विश्व व्यापार संगठन (WTO) की महानिदेशक भी इस कार्यक्रम में शिरकत की, जिसकी रिकॉर्डिंग यहाँ देखी जा सकती है. 

डॉक्टर हंसा मेहता वही हस्ती हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र के गठन के शुरुआती दिनों में तैयार किये गए – मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र (UDHR) का प्रारूप तैयार करने में महती भूमिका निभाई. 

डॉक्टर हंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई 1897 को भारत की तत्कालीन बड़ोदा रियासत (वर्तमान में गुजरात) में हुआ था जो आगे चलकर महिला अधिकारों की मुखर पैरोकार बनीं. 

डॉक्टर हंसा मेहता, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग में, अमेरिका की ऐलीनॉर रूज़वेल्ट के अलावा एक मात्र अन्य महिला सदस्य थीं.

मानविधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र के अनुच्छेद - 1 में, मूल रूप में – सम्पूर्ण मानवता का प्रतिनिधित्व करने के लिये पुरुषों का नाम दिया गया था, जिसमें लिखा गया था – “तमाम पुरुष स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं.”

डॉक्टर हंसा मेहता ने इस वाक्यांश को बदलकर यह लिखे जाने की पेशकश की – “तमाम इनसान स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं.” 

डॉक्टर हंसा मेहता द्वारा प्रस्तावित इस समावेशी भाषा को ना केवल स्वीकार किया गया, बल्कि इस बदलाव को लैंगिक समानता व महिलाओं के अधिकारों के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है.

समाज सुधारक हंसा मेहता

महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के उप आयोग के सदस्य, न्यूयॉर्क के हण्टर कॉलेज में, 14 मई 1946 को एक प्रेस वार्ता करते हुए. इनमें सबसे दाईं तरफ़ डॉक्टर हंसा मेहता नज़र आ रही हैं.
UN Photo
महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के उप आयोग के सदस्य, न्यूयॉर्क के हण्टर कॉलेज में, 14 मई 1946 को एक प्रेस वार्ता करते हुए. इनमें सबसे दाईं तरफ़ डॉक्टर हंसा मेहता नज़र आ रही हैं.

हंसा मेहता ने, 1946 में, अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) में, भारतीय महिलाओं के अधिकार चार्टर की अगुवाई की. 

इसमें लैंगिक समानता के साथ, भारत में महिलाओं के सिविल अधिकारों व उनके लिये न्याय की मांग की गई थी.

इस महिला अधिकार चार्टर के अनेक प्रावधान, भारतीय संविधान में, अनेक लैंगिक निष्पक्ष प्रावधानों का आधार बने.

डॉक्टर हंसा मेहता भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने वाली कमेटी की भी सदस्या होने के साथ-साथ, मूल अधिकारों पर सलाहकारी कमेटी की भी सदस्या थीं.

डॉक्टर हंसा मेहता स्मृति सम्वाद

संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन के एक वक्तव्य में कहा गया है कि यह स्मृति सम्वाद शुरू करने का मक़सद, वैश्विक समुदाय में लैंगिक समानता के बारे जागरूकता बढ़ाना, महिलाओं का सशक्तिकरण और महिलाओं व लड़कियों के मानवाधिकारों को केन्द्रीय प्राथमिकता पर लाना है. 

भारतीय मिशन के अनुसार इस सम्वाद के ज़रिये यह सन्देश पुष्ट करने की कोशिश की जाती कि मानवाधिकार, शान्ति और सुरक्षा, व टिकाऊ विकास हासिल करने के लिये, लैंगिक समानता और महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों को वास्तविक रूप देना बुनियादी आवश्यकता है.

ऐसे में जबकि दुनिया भर में तमाम समुदाय, वैश्विक महामारी से प्रभावित हुए हैं और असाधारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, महिलाओं को कोविड-19 के नकारात्मक आर्थिक व सामाजिक प्रभावों के असमान दंश झेलना पड़ा है. 

आँकड़ों से मालूम होता है कि महामारी के कारण अत्यन्त गम्भीर निर्धनता के गर्त में धकेली जाने वाली आबादी में लगभग 50 प्रतिशत संख्या महिलाओं व लड़कियों की होगी.

डॉक्टर हंसा मेहता स्मृति सम्वाद में 2022 की थीम है – कोविड-महामारी से समावेशी व लैंगिक सम्वेदनशील पुनर्बहाली पर ध्यान केन्द्रित करना.