टिकाऊ भविष्य के लिये महिलाओं को अग्रणी भूमिका निभानी होगी, यूएन प्रमुख

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सोमवार को ‘महिलाओं के दर्जे पर आयोग’ के 66वें सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा है कि विश्व के टिकाऊ भविष्य के लिये यह ज़रूरी है कि मार्गदर्शक के तौर पर महिलाओं व लड़कियों को कार्रवाई के केन्द्र में रखा जाए.
यूएन प्रमुख ने जलवायु व पर्यावरणीय संकटों, और कोविड-19 महामारी से उपजे आर्थिक व सामाजिक प्रभावों को मौजूदा दौर के निर्धारक मुद्दे क़रार दिये.
The UN's largest annual gathering of gender equality champions kicks off on Monday. Follow @UN_CSW for more on this year's Commission on the Status of Women. https://t.co/i9CFVCi5gi #CSW66 pic.twitter.com/lphR123GVG
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उन्होंने ध्यान दिलाया कि इन चुनौतियों पर हमारी सामूहिक कार्रवाई ही, आने वाले दशकों में दुनिया की दिशा तय करेगी.
महिलाओं के दर्जे पर आयोग (Commission on the Status of Women) का 66वाँ सत्र सोमवार, 14 मार्च को शुरू हुआ है और यह 25 मार्च तक चलेगा. कोविड-19 के मद्देनज़र, यह हाइब्रिड रूप से आयोजित होगा, जिसमें प्रतिनिधि व्यक्तिगत व वर्चुअल तौर पर शिरकत करेंगे.
महासचिव ने कहा, “हर जगह, महिलाओं व लड़कियों को विशालतम ख़तरे और सबसे गहरे नुक़सान झेलने पड़ रहे हैं.”
उन्होंने बताया कि जलवायु व पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिये वे कार्रवाई कर रही हैं, मगर उन कक्षों में वे उपस्थित नहीं है जहाँ निर्णय-निर्णारण होते हैं.
लघु द्वीपीय, सबसे कम विकसित और हिंसा प्रभावित देशों में रहने वाली महिलाओं व लड़कियों के लिये सबसे कठिन हालात हैं.
चरम जलवायु के कारण उनके पोषण व आजीविका पर ग़ैर-आनुपातिक असर हुआ है और स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ने का ख़ामियाज़ा भी उन्हें ही भुगतना पड़ता है.
जलवायु व्यवधानों की संख्या बढ़ने की पृष्ठभूमि में, बाल विवाह और शोषण के मामलों में भी वृद्धि हो रही है.
यूएन प्रमुख ने मानवाधिकार व पर्यावरण की रक्षा के लिये प्रयासरत महिला कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हिंसा और पनपते ख़तरों पर गहरी चिन्ता जताई है.
उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन पर यूएन संस्था (UNFCCC), क्योटो प्रोटोकॉल और पैरिस जलवायु समझौते के अन्तर्गत, केवल एक-तिहाई निर्णय-निर्धारण भूमिकाएँ महिलाओं के पास हैं, जबकि 15 प्रतिशत महिलाएँ पर्यावरण मंत्री हैं.
यूएन प्रमुख के मुताबिक़, 192 राष्ट्रीय ऊर्जा ढाँचों में से केवल एक-तिहाई में लैंगिक परिप्रेक्ष्य का ध्यान रखा गया है, और जलवायु वित्त पोषण में भी उन पर विचार नहीं किया जाता है.
“हम अपना कोई भी उद्देश्य, सर्वजन के योगदान के बिना साकार नहीं कर सकते हैं...पुरुषों और लड़कों समेत...महिला अधिकारों और लैंगिक समानता के लिये काम करते हुए.”
यूएन महासचिव ने कहा कि पेरिस जलवायु समझौते में लुप्त होती जैवविविधता, भूमि क्षरण और प्रदूषण से निपटने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जोकि एक स्वस्थ ग्रह और गरिमामय जीवन के लिये बेहद ज़रूरी है.
महिलाएँ और लड़कियाँ नेतृत्वकर्ता, किसान, नीतिनिर्धारक, अर्थशास्त्री, वकील और जलवायु कार्यकर्ता, टिकाऊ अर्थव्यवस्थाओं और सहनसक्षम समाजों के निर्णाय के लिये अति महत्वपूर्ण बताए गए हैं.
मगर, पिछले दो दशकों में कोविड-19 महामारी के कारण लैंगिक विषमताएँ व अन्याय और भी गहरे हुए हैं.
लाखों महिलाएँ कामकाजी दुनिया से बाहर हो गई है, उन्हें आय अर्जन और अवैतनिक देखभाल की ज़िम्मेदारी के बीच के विकल्प को चुनना पड़ रहा है और बड़ी संख्या में लड़कियाँ फिर शायद स्कूल नहीं लौट पाएंगी.
इन हालात के मद्देनज़र, यूएन प्रमुख ने लैंगिक समानता व महिला अधिकारों को, एक नए सिरे से तैयार किये गए 'सामाजिक अनुबन्ध' के केन्द्र में रखने का आहवान किया है.
यूएन प्रमुख ने अपनी ‘हमारा साझा एजेण्डा’ रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें एक नए वैश्विक समझौते के ज़रिये शक्ति को फिर से सन्तुलित करने और सभी प्रकार की हिंसा रोकने के लिये एक शान्ति एजेण्डा पेश किया गया है.
इसमें लिंग-आधारित हिंसा भी है, साथ ही महिलाओं व लड़कियों को सुरक्षा नीतियों के केन्द्र में रखा जाना होगा.
उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र, शान्तिनिर्माण व उसे बनाए रखने के हर चरण में महिलाओं की भागीदारी व नेतृत्व के लिये प्रयासों में जुटा है.
इस सिलसिले में, विशेष दूत व महिला प्रतिनिधि भी नियुक्ति किये गये हैं, जोकि पहले से अधिक समावेशी शान्ति प्रक्रियाओं के लिये समर्थन प्रदान कर रहे हैं.
महासचिव गुटेरेश ने यूएन के विशेष राजनैतिक मिशनों में, लैंगिक मुद्दों पर परामर्शदाताओं का भी ज़िक्र किया, जोकि महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दे रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने ध्यान दिलाया कि यूएन के 76 वर्षों के इतिहास में, केवल चार बार, महिलाएँ महासभा प्रमुख के तौर पर चुनी गई हैं, जबकि कोई भी महिला, अब तक महासचिव नहीं रही है.
“इसे सही किये जाने की ज़रूरत है. यूएन दुनिया भर में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के स्वर्ण मानक लागू किये जाने का आग्रह कर सकता, जबकि उन्हें यहाँ लागू ना किया जाता हो.”
अब्दुल्ला शाहिद ने कहा कि वह निजी तौर पर अगले महासचिव के पद पर, किसी महिला को नियुक्त किये जाने के प्रयासों की अगुवाई करेंगे.
महिला सशक्तिकरण मामलों के लिये यूएन संस्था – यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने अपने सम्बोधन में वैश्विक संकटों व हिंसक संघर्षों की ओर ध्यान आकृष्ट किया.
उन्होंने कहा कि म्याँमार से अफ़ग़ानिस्तान, सहेल से हेती, सीरिया से सोमालिया, यमन और इथियोपिया, और अब यूक्रेन में भयावह युद्ध तक, इनकी सबसे बड़ी क़ीमत महिलाओं व लड़कियों को ही चुकानी पड़ रही है.
यूएन एजेंसी प्रमुख बहाउस ने क्षोभ जताया कि हर दिन, यूक्रेनी महिलाओं व लड़कियों के जीवन, आशा और भविष्य को बर्बाद किया जा रहा है .
उन्होंने यूक्रेनी नागरिकों के साहस व सहनक्षमता को श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए, युद्ध को हर हाल में रोके जाने व शान्ति स्थापित किये जाने का आग्रह किया.
आयोग की प्रमुख माथु जोयिनी ने युवा महिलाओं को जलवायु कार्रवाई व जागरूकता के लिये बदलाव की वाहक बताया.
“हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि इन क्षेत्रों में उनके नेतृत्व और अर्थपूर्ण योगदानों को निर्णय-निर्धारण प्रक्रियाओं में शामिल किया जाए.”
उन्होंने कहा कि दुनिया भर में महिलाएँ व लड़कियाँ, आयोग को एक ऐसे निकाय के रूप में देखती हैं, जोकि लैंगिक समानता व महिला सशक्तिरण के लिये दिशा-निर्देशित करता है.