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माया अख़्तर, जॉर्डन के परिधान उद्योग में कार्यरत अन्य प्रवासियों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

आपबीती: 'मैं उनके लिये आवाज़ उठाती हूँ, जो अपने अधिकार के लिये नहीं लड़ पाते'

© ILO/ Wael Liddawi
माया अख़्तर, जॉर्डन के परिधान उद्योग में कार्यरत अन्य प्रवासियों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

आपबीती: 'मैं उनके लिये आवाज़ उठाती हूँ, जो अपने अधिकार के लिये नहीं लड़ पाते'

महिलाएँ

जॉर्डन के परिधान उद्योग में कार्यरत बांग्लादेश की माया अख़्तर, अन्य प्रवासी कामगारों का भी प्रतिनिधित्व करती हैं. उन्होंने बताया कि वह किस तरह यूनियन के आन्दोलन में शामिल हुईं, और इससे यूनियन के सदस्यों के जीवन में क्या-क्या सकारात्मक बदलाव आए हैं.

“मैंने छह साल पहले जॉर्डन में एक परिधान फ़ैक्ट्री में कामकाज के लिये बांग्लादेश छोड़ा था. तब मुझे नहीं मालूम था कि भविष्य में क्या होगा. लेकिन मेरे इस अप्रत्याशित क़दम ने मेरी ज़िन्दगी ही बदल दी.

मैं 19 साल की थी. ढाका में, मेरे पिता की फल बेचनवे की एक छोटी सी दुकान थी और मेरी माँ घर पर सिलाई करके कपड़े बेचने का काम करती थीं.

परिवार में हम छह लोग हैं. हमारा गुज़ारा मुश्किल से ही चल पाता था.

मैंने सोचा था कि मैं जॉर्डन में काम करके अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहारा दे सकती हूँ. मुझे यह भी उम्मीद थी कि कुछ धनराशि बचाकर मैं विश्वविद्यालय में भी दाख़िला ले पाऊंगी.

मैंने पहली बार इरबिड की एक फ़ैक्ट्री में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम किया. अनुबन्ध समाप्त होने के बाद, मैं जब घर लौटी, तो मुझे मालूम हुआ कि मेरे पिता को कैंसर है और कि हमारे परिवार की आर्थिक समस्याएँ विकट हो गई हैं.

अपनी मूल भाषा बांग्ला के अलावा, मुझे हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषाओं का भी ज्ञान है. इसलिये, मैं जब जॉर्डन वापिस गई, तो मैंने साहाब में एक कपड़ा फ़ैक्ट्री में एक सम्पर्क अधिकारी के रूप में काम किया, और इस भूमिका में प्रबन्धन व श्रमिकों के बीच बेहतर सम्वाद स्थापित करने की दिशा में काम किया.

माया अख़्तर, प्रवासी श्रमिकों के साथ भोजन करते हुए.
© ILO/ Wael Liddawi
माया अख़्तर, प्रवासी श्रमिकों के साथ भोजन करते हुए.

तालाब से नदी तक

एक दिन, मेरी मुलाक़ात अरशद से हुई, जो कपड़ा, परिधान और वस्त्र उद्योग के 'General Trade Union of Workers' के संगठनकर्ता थे. उन्होंने समझाया कि एक यूनियन के संगठनकर्ता का काम क्या होता है.

मैंने अरशद से कहा कि यह मेरे लिये एक सपने के सच होने जैसा होगा कि मुझे अन्य कार्यकर्ताओं की मदद करने और उन लोगों की ओर से बोलने का अवसर मिले, जो ख़ुद अपनी आवाज़ नहीं उठा सकते.

मुझे आश्चर्य तब हुआ, जब अरशद कुछ महीने बाद मेरे पास आए और मुझसे पूछा कि क्या मुझे इस पद में दिलचस्पी है. मैंने तुरन्त हाँ कर दी. 

मेरे लिये वो पल बहुत मुक्तिदायक था. मेरी हालत उस मछली जैसी थी, जो एक तालाब में रह रही थी और अब एक नदी में चली गई थी. प्रवासी श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करना मेरे लिये बहुत सम्मान की बात थी.

मैं बहुभाषी और अच्छी सम्प्रेषक (communicator) होने के कारण, अनेक ऐसे कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने और उनकी मदद करने में सक्षम हुई, जो केवल अपनी मूल भाषा ही बोलते हैं.

श्रमिकों और प्रबन्धन के बीच सेतु

मैंने नवम्बर 2020 में यूनियन के संयोजक के रूप में काम शुरू किया.

मेरी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक थी, प्रवासी कामगारों की समस्याओं की पहचान करना, और परिधान फ़ैक्ट्री प्रबन्धन के साथ बातचीत के ज़रिये समाधान खोजना.

लम्बे कामकाजी घण्टों के कारण श्रमिकों के साथ बैठकों की व्यवस्था करना, शुरू में एक बड़ी चुनौती थी. कई लोग तो खुलकर बात करने से भी हिचकिचाते थे, यहाँ तक कि बांग्लादेश के प्रतिनिधि से भी.

कुछ अपना रोज़गार खोने से डरते थे और प्रबन्धकों ने उन्हें यूनियन के साथ सहयोग करने से बचने की सलाह दी थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि हम उनके लिये परेशानी पैदा करेंगे.

लेकिन मैंने ठान ली थी कि इन कार्यकर्ताओं की आवाज़ सुनी जाएगी. मैंने उनका नाम गुप्त रखने का वादा करते हुए, कार्यस्थलों के बाहर उनसे मुलाक़ात की, ताकि वो सहजता से अपनी बात कह सकें.

कुछ कर्मचारी अपनी शिकायतें पेश करना भी नहीं जानते थे, और अन्य लोग कामकाज व रोज़गार खोने या सज़ा के डर से अपनी समस्याओं के बारे में बात करने से बचते हैं.

उदाहरण के लिये, कुछ श्रमिकों को उनके नियोक्ताओं (employers) ने अनुबन्ध समाप्त होने के बाद भी काम पर रखा था. इससे उन्होंने घर के लिये हवाई जहाज़ के टिकट, या अनुबन्ध बोनस जैसे अधिकार खो दिये थे.

मेरे पास बहुत से लोग यौन उत्पीड़न के अनुभव भी लेकर आए. कुछ ने अपने वेतन प्राप्ति में देरी या अपने सुपरवाइज़र के साथ हुई बहस के बारे में भी शिकायतें कीं.

माया अख़्तर अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा, नियमित रूप से बांग्लादेश में अपने परिवार की मदद के लिये भेजती है.
© ILO/ Wael Liddawi
माया अख़्तर अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा, नियमित रूप से बांग्लादेश में अपने परिवार की मदद के लिये भेजती है.

बांग्लादेश, श्रीलंका, भारत और अन्य देशों के अधिकतर कामगार, अरबी या अंग्रेज़ी बोल या पढ़ नहीं पाते हैं. जब निर्देश, घोषणाएँ और वित्तीय दस्तावेज़ इन भाषाओं में होते हैं, तो इससे श्रमिकों के लिये समस्याएँ उत्पन्न होती हैं.

मैं, बहुभाषी व एक अच्छी सम्प्रेषक होने के कारण, बहुत से कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने और उनकी मदद करने में सक्षम हुई हूँ. मुझे भाषा सम्बन्धी बाधाएँ दूर करके, उनकी मदद करने में बेहद गर्व महसूस होता है.

मैंने ‘Better Work Jordan’ द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी भाग लिया है, जिसमें कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न, प्रभावी सम्प्रेषण, व्यक्तिगत स्वच्छता, सामूहिक सौदेबाज़ी, कामकाज की स्थिति और श्रम क़ानून जैसे मुद्दे शामिल किये गए हैं.

इन प्रशिक्षणों ने, मुझे महिलाओं व प्रवासी कामगारों की बेहतर हितैषी के रूप में स्थापित किया. प्रवासी कामगारों की मदद करना और उन्हें सशक्त बनाना मेरे जीवन के सबसे सन्तोषप्रद अनुभवों में से एक रहा है.

कोविड-19 प्रतिबन्धों के कारण, मैं श्रमिकों के साथ व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल पाती थी और उनका हाल-चाल जानने के लिये टेलीफोन कॉल पर निर्भर रहना पड़ता था.

तालाबन्दी के दौरान कई श्रमिक अपने देश लौटना चाहते थे लेकिन हवाई अड्डा बन्द होने के कारण यात्रा नहीं कर सके. ऐसे में मैंने, जॉर्डन में फँसे श्रमिकों को कठिन परिस्थितियों से अवगत कराने और उन्हें सलाह देने का काम किया.

भविष्य की राह

प्रवासी कामगारों की मदद और उनका सशक्तिकरण मेरे जीवन के सबसे सन्तोषजनक अनुभवों में से एक रहा है. उनके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने से मुझे एक मक़सद मिला है, जिससे मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है.

मुझे ख़ुशी है कि मैं बांग्लादेश में अपने परिवार को अपनी आय का कुछ हिस्सा भेज पाती हूँ और अन्य बंगाली लोगों का प्रतिनिधित्व करने पर बेहद गौरवान्वित महसूस करती हूँ.

मेरी योजना एक प्रशिक्षक बनने की है, ताकि मैं प्रवासी श्रमिकों की अधिक मदद कर सकूँ. मैं मनोविज्ञान की डिग्री भी हासिल करना चाहती हूँ, जिससे मुझे लोगों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिल सके.

मुझे लगता है कि यूनियन की संगठनकर्ता बनने की मेरी सफलता, जॉर्डन के सभी प्रवासी कामगारों की सफलता है.”

यह कहानी पहले अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई.

परिधान श्रमिकों की स्थिति में सुधार

- विकासशील देशों में छह करोड़ श्रमिक अपनी आजीविका के लिये परिधान उद्योग पर निर्भर हैं. इनमें अधिकतर महिलाएँ हैं.

- ‘Better Work’, अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और अन्तरराष्ट्रीय वित्त निगम (IFC, विश्व बैंक समूह का हिस्सा) के बीच एक साझेदारी के तहत, विभिन्न समूह एक साथ आए हैं. देशों की सरकारें, वैश्विक ब्रैण्ड, फ़ैक्ट्री मालिक, और यूनियन व श्रमिक, मिलकर परिधान उद्योग में कामकाज की स्थिति बेहतर करने और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिये प्रयासत हैं.

- जॉर्डन के परिधान सैक्टर में 65 हज़ार से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से 72 प्रतिशत महिलाएँ हैं. कार्यबल का 76 प्रतिशत हिस्सा प्रवासी श्रमिक हैं, जिनमें से लगभग 80 प्रतिशत बांग्लादेशी हैं. प्रवासी श्रमिकों को भाषा और प्रतिनिधित्व सम्बन्धी अनूठी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.