प्रकृति के साथ ज़्यादा विचारशील व सतत सम्बन्धों की दरकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने गुरूवार, 3 मार्च को विश्व वन्यजीवन दिवस पर अपने सन्देश में कहा है कि हर एक मानव को पृथ्वी पर मौजूद बहुमूल्य और बेबदल वन्यजीवन को सहेजने के लिये समर्पित होना चाहिये.
उन्होंने कहा, “हर वर्ष... हम अपने पृथ्वी ग्रह पर मौजूद वन्य पेड़-पौधों और पशुओं की सुन्दरता व उनके अनोखे वजूद का जश्न मनाते हैं.”
उन्होंने विश्व वन्यजीवन दिवस को, तमाम तरह के वन्य जीवों और वनस्पतियों की ख़ूबसूरती व उनके फ़ायदों के बारे में जाकरूकता बढ़ाने का एक अच्छा अवसर क़रार दिया.
यूएन प्रमुख ने याद दिलाते हुए कहा कि पृथ्वी को क़ायम रखने के हमारे नैतिक कर्तव्य से परे, “मानवता, प्रकृति द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले उत्पादों और सेवाओं पर निर्भर है, जिनमें भोजन से लेकर ताज़ा पानी और प्रदूषण नियंत्रण से लेकर कार्बन सोख़ना तक शामिल हैं.”
उन्होंने कहा, “प्राकृतिक दुनिया को नुक़सान पहुँचाकर, हम दरअसल अपने ख़ुद के रहन-सहन को ही जोखिम में डालते हैं.”
आज तमाम दुनिया में वन्यजीवन ख़तरे में है. तमाम प्रजातियों का लगभग एक चौथाई हिस्सा लुप्त हो जाने के कगार पर है, क्योंकि हमने उन पारिस्थितिकियों का लगभग आधा हिस्सा तबाह कर दिया है जहाँ वो बसते हैं.
यूएन प्रमुख ने कहा, “हमें इस चलन का रुख़ पलटने के लिये, अभी कार्रवाई करनी होगी.”
वन्य जगत में मौजूद पशुओं व वनस्तपियों की अनोखी महत्ता है जिनसे मानव रहन-सहन के पारिस्थितिकी, अनुवंशिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, मनोरंजक और सौन्दर्य पहलुओं के साथ-साथ, टिकाऊ विकास में भी योगदान होता है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि हर एक मानव को, वन्यजीवन अपराध और प्रजातियों के विलुप्तिकरण में इनसानों की भूमिका के ख़िलाफ़ लड़ाई को तेज़ करने की ज़रूरत को पहचानना होगा.
एंतोनियो गुटेरेश ने वन्यजीवन के व्यापक दायरे वाले आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को रेखांकित करते हुए, टिकाऊ विकास लक्ष्य-15 की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया, जो जैव-विविधता के नुक़सान को रोकने पर केन्द्रित है.
उन्होंने कहा, “आइये, हम पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता को सहेजने और उसके सतत प्रयोग के अपने कर्तव्य को फिर से याद करें. आइये, हम, प्रकृति के साथ सहानुभूतिपूर्ण, विचारशील व सतत नाते को आगे बढ़ाएँ.”
इस वर्ष के इस दिवस के मौक़े पर, पारिस्थितिकी पनर्बहाली पर संयुक्त राष्ट्र के दशक की महत्ता को भी रेखांकित किया गया है, जो 2021 में शुरू हुआ था और 2030 तक चलेगा.
पारिस्थितिकायाँ तभी स्वस्थ होती हैं जब उनमें मौजूद प्रजातियाँ फलते-फूलते हैं.