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पर्यावरण रक्षकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित किये जाने की पुकार

उत्तरी ब्राज़ील के आदिवासी समुदाय में एक युवा पर्यावरण कार्यकर्ता.
© UNICEF/Alécio Cézar
उत्तरी ब्राज़ील के आदिवासी समुदाय में एक युवा पर्यावरण कार्यकर्ता.

पर्यावरण रक्षकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित किये जाने की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने पृथ्वी की रक्षा में जुटे पर्यावरण कार्यकर्ताओं की रक्षा किये जाने की पुकार लगाई है. यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने सचेत किया है कि इन कार्यकर्ताओं को अक्सर आवाज़ बुलन्द करने की क़ीमत अपने प्राणों से चुकानी पड़ती है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने जिनीवा में यूएन मानवाधिकार परिषद के सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि पर्यावरण की रक्षा के लिये यह ज़रूरी है कि उसके बचाव में जुटे कार्यकर्ताओं के अधिकारों की भी रक्षा की जाए.

उन्होंने बताया कि पर्यावरणीय अधिकारों के लिये मुखर होने की एक बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है. अनेक पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई हैं और उन्हें दुर्व्यवहारों, धमकियों व उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.

मिशेल बाशेलेट का मानना है कि वनों की कटाई, सांस्कृतिक विरासत को होने वाले नुक़सान, विशाल स्तर पर कृषि-व्यवसाय और विकास परियोजनाओं के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों को ज़्यादा जोखिम झेलना पड़ता है.

बहुत से पर्यावरणीय मानवाधिकार कार्यकर्ता, आदिवासी समुदाय से आते हैं, या वे स्थानीय समुदायों या अल्पसंख्यक समूहों का हिस्सा हैं, या फिर उनका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

जवाबदेही पर ज़ोर

यूएन एजेंसी प्रमुख के अनुसार, किसी एक व्यक्ति द्वारा आवाज़ उठाये जाने के बाद सम्पूर्ण समुदायों को धमकियों या डराये-धमकाये का सामना करना पड़ सकता है.

उन्होंने सचेत किया कि राज्यसत्ता का यह दायित्व है कि पर्यावरणीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा व उनका सम्मान किया जाए.

साथ ही उन पर होने वाले हमलों की रोकथाम करनी होगी और ऐसी घटनाओं के लिये जवाबदेही तय की जानी ज़रूरी है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त के मुताबिक़, ये सभी उपाय पिछले वर्ष मानवाधिकार परिषद द्वारा पारित उस प्रस्ताव के अनुरूप हैं, जिसमें एक स्वस्थ पर्याणवर के अधिकार को मान्यता दी गई है.

ग्वाटेमाला में महिलाओं का एक समूह ऐटीटलान झील के लिये अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है.
© UNICEF/Patricia Willocq
ग्वाटेमाला में महिलाओं का एक समूह ऐटीटलान झील के लिये अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है.

नियामन का दायित्व

उन्होंने कहा कि यह भी अहम है कि राज्यसत्ता द्वारा कारगर ढँग से व्यवसायों का नियामन किया जाए और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में जवाबदेही तय की जाए.

यूएन एजेंसी की शीर्ष अधिकारी ने स्पष्ट किया कि किसी भी जलवायु परियोजना से पहले, सरकारों और व्यवसायों को मानवाधिकार जोखिम समीक्षाएँ करनी होंगी.

“अगर ऐसी परियोजनाओं से आदिवासी लोगों के लिये जोखिम खड़ा होता है, तो यह महत्वपूर्ण है कि उनकी स्वतंत्र, समय पूर्व और सोचविचार के बाद सहमति ली जाए.”

इसके अतिरिक्त, सूचना, भागीदारी व न्याय के अधिकारों की भी अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के तहत रक्षा की जानी होगी.

उच्चायुक्त बाशेलेट ने कहा कि जब मानवाधिकारों को सर्वोपरि रखा जाता है तो पृथ्वी और उसकी रक्षा करने वाले कार्यकर्ताओं, दोनों की अच्छी से देखरेख हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्र से समर्थन

यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने विश्व भर में अपने कर्मचारियों द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान की.  

उन्होंने कहा कि मानवाधिकार कार्यालय राज्यसत्ताओं, व्यवसायों और पर्यावरणीय मानवाधिकार रक्षकों की हरसम्भव सहायता कर रहा है.  

उदाहरणस्वरूप, प्रशान्त महासागार क्षेत्र में 200 से अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया गया है, ताकि टिकाऊ विकास, व्यवसा और मानवाधिकारों को जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में बढ़ावा दिया जा सके.

दक्षिण पूर्व एशिया में, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय पर्यावरणीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न, गिरफ़्तारी, हत्याओं और गुमशुदगी के मामलों की निगरानी के लिये प्रयासरत है.

साथ ही देशों की सरकारों के साथ मिलकर कार्यकर्ताओं को दण्डित किये जाने के लिये उपायों पर काम हो रहा है.

मेक्सिको और केनया में कर्मचारी, पर्यावरणीय मानवाधिकार रक्षकों और उनके नैटवर्क को समर्थन प्रदान कर रहे हैं.