IPCC रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन पर नाकाम वैश्विक नेतृत्व की एक बानगी
संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों ने, पृथ्वी और तमाम दुनिया पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में, सोमवार को एक तीखी चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि पारिस्थितिकी विघटन, प्रजातियों के विलुप्तिकरण, जानलेवा गर्मियाँ और बाढ़ें, ऐसे जलवायु ख़तरे हैं जिनका सामना दुनिया, वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण, अगले दो दशकों तक करेगी.
अन्तरसरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (IPCC) के मुखिया होसंग ली का कहना है, “ये रिपोर्ट कार्रवाई नहीं करने के परिणामों के बारे में एक स्पष्ट व ख़तरनाक चेतावनी है.”
उन्होंने कहा, “रिपोर्ट दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन हमारे रहन-सहन और एक स्वस्थ पृथ्वी के वजूद के लिये एक गम्भीर व लगातार बढ़ता ख़तरा है.”
“हमारी आज की कार्रवाइयों से, ये आकार मिलेगा कि लोग, बढ़ते जलवायु जोखिमों के लिये किस तरह अनुकूलन करते हैं और प्रकृति उनका किस तरह सामना करती है.”
रिपोर्ट के अनुसार, मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन से, प्रकृति में ख़तरनाक और व्यापक बाधा उत्पन्न हो रही है और, जोखिम कम करने के प्रयासों के बावजूद, दुनिया भर में अरबों लोगों की ज़िन्दगी प्रभावित हो रही है और ऐसे लोग व पारिस्थितिकियाँ सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं जो सामना कर पाने में कम समर्थ हैं.
संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों की तरफ़ से जारी होने वाली रिपोर्ट्स की श्रृंखला में यह दूसरी रिपोर्ट है और ग्लासगो जलवायु सम्मेलन - कॉप26 के बाद केवल 100 दिनों में जारी हुई है.
ध्यान रहे कि कॉप26 में, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने और जलवायु परिवर्तन के सबसे ख़तरनाक प्रभावों को रोकने के लिये कार्रवाई तेज़ करने पर सहमति हुई थी.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने अगस्त 2021 में जारी प्रथम रिपोर्ट को, “मानवता के लिये एक रैड कोड” क़रार दिया था और कहा था कि “अगर हम अभी अपनी शक्तियाँ एकजुट कर लें तो, हम जलवायु त्रासदी का रुख़ पलट सकते हैं.”
‘जलवायु परिवर्तन की मार’
इस ताज़ा रिपोर्ट पर भी यूएन प्रमुख का नज़रिया, उतना ही स्पष्ट व कड़ा है: उन्होंने ध्यान दिलाया है कि आईपीसीसी ने जो सबूत दिये हैं, वैसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखे हैं, इन सबूतों को उन्होंने, “मानव तकलीफ़ों की एक ऐटलस और नाकाम जलवायु नेतृत्व की मिलीभगत” क़रार दिया है.
यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, अनुकूलन और नाज़ुक परिस्थितियों पर, अनगिनत सबूतों के साथ, ध्यान केन्द्रित करती है, और बताती है कि किस तरह लोग, और पृथ्वी, जलवायु परिवर्तन की चोटों का सामना कर रहे हैं.
यूएन प्रमुख ने स्पष्ट शब्दों में कहा है, “तमाम इनसानों की लगभग आधी संख्या, इस समय ख़तरनाक क्षेत्रों में रह रही है. बहुत सी पारिस्थितिकी प्रणालियाँ ऐसे मुक़ाम पर पहुँच चुकी हैं जहाँ से अब, नुक़सानों को पलटना असम्भव है. बेलगाम कार्बन प्रदूषण, दुनिया की नाज़ुक हालात में रहने वाली आबादी को धीरे-धीरे विनाश की तरफ़ धकेल रहा है.”
नेतृत्व की आपराधिक लापरवाही
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि दुनिया में सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैलाने वाले, हमारे केवल एक मात्र ग्रह को तबाह करने के दोषी हैं.
इन ख़तरनाक व स्पष्ट सबूतों को देखते हुए, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सैल्सियस तक सीमित किया जाना अनिवार्य है, और विज्ञान दिखाता है कि उसके लिये, दुनिया को वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी लानी होगी व वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना होगा.
यूएन प्रमुख ने कहा, “मगर मौजूदा संकल्पों के अनुसार, मौजूदा दशक में वैश्विक कार्बन में 14 प्रतिशत बढ़ोत्तरी होना तय है. ये स्थिति एक त्रासदी बयान करती है. इस रफ़्तार से 1.5 डिग्री का लक्ष्य हासिल करने की सम्भावनाएँ ध्वस्त जाएंगी.”
यूएन महासचिव ने बताया कि इस रिपोर्ट में उजागर हुई एक प्रमुख सच्चाई ये है कि कोयला और अन्य तरह के जीवाश्म ईंधन, इनसानियत का दम घोंट रहे हैं.
उन्होंने जी20 देशों की सरकारों से, विदेशों में कोयला प्रयोग को धन रोकने के अपनी सहमतियों पर अमल करने आग्रह किया, और साथ ही कहा कि वो अपने यहाँ भी अब कोयला भण्डार तत्काल ख़त्म करें.
उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि विशाल तेल व गैस कम्पनियाँ और उनके नीति-निर्धारक - नोटिस पर हैं. “आप हरित होने का दावा कैसे कर सकते हैं जबकि आपकी योजनाओं और परियोजनाओं से, वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य जोखिम में पड़ता है और ऐसी प्रमुख उत्सर्जन कटौतियों की अनदेखी होती है जो इसी दशक में होनी चाहिये. लोगों को इस धुँधले शीशे में से नज़र आ रहा है.”
उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने की प्रक्रिया को धीमी करने के स्थान पर, ये समय – नवीकरणीय ऊर्जा भविष्य की तरफ़ अपनी गति को तेज़ करने का है.
उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन, हमारे ग्रह, मानवता और अर्थव्यवस्थाओं को घातक मुक़ाम की तरफ़ धकेलते हैं.
उन्होंने विकसित देशों, बहुपक्षीय विकास बैंकों, निजी वित्त पोषकों और अन्य पक्षों से आग्रह किया कि वो प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में कोयला प्रयोग को बन्द करने की ख़ातिर, साझेदारियाँ गठित करें.
अनुकूलन है जीवनरक्षक
आईपीसीसी की इस रिपोर्ट में, दूसरा प्रमुख निष्कर्ष कुछ बेहतर समाचार भी देता है: अनुकूलन कार्य में निवेश.
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने बताया है कि जलवायु प्रभाव तो और ज़्यादा ख़तरनाक होंगे और उनकी रफ़्तार भी बढ़ेगी, मगर ऐसे में अनुकूलन उपायों में संसाधन निवेश वृद्धि, बचाव के लिये अनिवार्य है.
“अनुकूलन व बचाव उपाय भी समान शक्ति व तात्कालिकता के साथ आगे बढ़ाने होंगे. इसलिये, मैं जलवायु वित्त के 50 प्रतिशत हिस्से को अनुकूलन उपायों पर लगाने पर ज़ोर देता रहा हूँ.”
उन्होंने ध्यान दिलाया कि कॉप26 जलवायु सम्मेलन में अनुकूलन के लिये संकल्पित धन, जलवायु संकटों के अग्रिम मोर्चों पर स्थित देशों की चुनौतियों का सामना करने के लिये पर्याप्त नहीं है.
इसलिये वो ऐसी बाधाओं को दूर करने पर ज़ोर दे रहे हैं जो लघु द्वीपीय देशों व कम विकसित देशों को ऐसा वित्त हासिल करने से रोकती हैं जिसकी उन्हें अपनी ज़िन्दगियाँ और अपनी आजीविकाएँ बचाने के लिये बहुत ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “हमें इस नई वास्तविकता का सामना करने के लिये, नई अहर्ता प्रणालियों की आवश्यकता है.”
बढ़ते जोखिम, तत्काल कार्रवाई
आईपीसीसी का कहना है कि बढ़ती गर्म लहरों, सूखे व बाढ़ की स्थितियाँ, पहले ही वनस्पतियों व मवेशियों की सहन सीमा से आगे जा चुकी हैं और उनके कारण पेड़ों और प्रवाल भित्तियों की प्रजातियाँ बड़े पैमाने पर लुप्त हो रही हैं.
चरम मौसम की घटनाएँ हर छोर पर हो रही हैं जिनके कारण इतने बड़े नुक़सान हो रहे हैं जिनका सामना करना लगातार कठिन होता जा रहा है.
इन परिस्थितियों के कारण करोड़ों लोगों के सामने भोजन और पानी की असुरक्षा का ख़तरा उत्पन्न हो गया है, विशेष रूप में, अफ़्रीका, एशिया, मध्य व दक्षिण अमेरिका और आर्कटिक क्षेत्र के लघु द्वीपीय देशों में.
जीवन, जैव-विविधता और बुनियादी ढाँचे को बढ़ते विशाल नुक़सान को रोकने के लिये, जलवायु कार्रवाई के लिये अनुकूलन की ख़ातिर, महत्वाकांक्षी और त्वरित कार्रवाई की दरकार है. और ये ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में त्वरित और विशाल कटौतियों के साथ-साथ ज़रूरी है.
नई रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी तक तो, अनुकूलन पर प्रगति विषम है, और बढ़ते जोखिमों का सामना करने के लिये दरकार स्तर व मौजूदा कार्रवाइयों के बीच व्यापक खाइयाँ हैं. ये खाइयाँ निम्न आय वाली आबादियों में सबसे ज़्यादा हैं.
आईपीसीसी के मुखिया होसंग ली कहते हैं, “ये रिपोर्ट जलवायु, जैव-विविधता और लोगों के बीच, अन्तर-निर्भरता दर्शाती है; और पहले के आकलनों की तुलना में, प्राकृतिक, सामजिक व आर्थिक विज्ञान को कहीं ज़्यादा रूप में आपस में समाहित करती है.”