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श्रीलंका: मानवाधिकार हनन के मामलों से निपटने के लिये सुधारों की अपील

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की प्रवक्ता, रवीना शमदासानी
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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की प्रवक्ता, रवीना शमदासानी

श्रीलंका: मानवाधिकार हनन के मामलों से निपटने के लिये सुधारों की अपील

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने श्रीलंका में "लोकतांत्रिक संस्थानों को कमज़ोर करने वाले, अल्पसंख्यकों की परेशानियाँ बढ़ाने वाले, और सुलह में बाधा डालने वाले, सैन्यीकरण एवं जातीय-धार्मिक राष्ट्रवाद की ओर निरन्तर जारी रुझान" को रेखांकित किया है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने शुक्रवार को जिनीवा में एक सम्वाददाता सम्मेलन में कहा कि "यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त, मिशेल बाशेलेट ने सुधार शुरू करने के लिये हाल ही में उठाए गए क़दमों की सराहना की है, लेकिन साथ ही उन्होंने देश में मानवाधिकार हनन के कई मामलों पर गहरी चिन्ता व्यक्त की."

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उन्होंने कहा, "हालाँकि वह जानती हैं कि श्रीलंका सरकार, हमारे कार्यालय के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ने के लिये उत्सुक रहती है, जैसाकि रिपोर्ट तैयार करने के दौरान उनसे प्राप्त सहयोग से स्पष्ट है. उच्चायुक्त ने सरकार से क़ानूनी, संस्थागत और सुरक्षा क्षेत्र के सुधारों को भी आगे ले जाने का आग्रह किया, जो श्रीलंका के अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का पालन करने के लिये आवश्यक हैं.”

प्रवक्ता ने बताया, पिछले एक साल में, यूएन मानवाधिकार कार्यालय को मानवाधिकार उल्लंघनों के पिछले मामलों और पीड़ितों के अधिकारों की मान्यता के लिये जवाबदेही तय करने में असफलता दिखाई दी है.

उन्होंने कहा कि उच्चायुक्त ने विशेष रूप से लापता परिवारों की निरन्तर अनिश्चित स्थिति पर प्रकाश डाला - जिनमें से अधिकतर महिलाएँ हैं.

उन्होंने सरकार से उनकी पीड़ाओं को स्वीकार करने, पीड़ितों के स्थितियों या आश्रय का तत्काल निर्धारण करने, क्षतिपूर्ति करने और अपराधियों को न्याय के कटघरे में पहुँचाने का आग्रह किया.

मानवाधिकार पैरोकारों की निगरानी

रवीना शमदासानी ने बताया, "पिछली रिपोर्ट्स में नागरिक समाज संगठनों, मानवाधिकार पैरोकारों, पत्रकारों और पीड़ितों की, सुरक्षा बलों द्वारा निगरानी और उत्पीड़न भी जारी है, ख़ासतौर पर, देश के उत्तर और पूर्व में."

उन्होंने कहा कि आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पीटीए) संशोधन विधेयक, एक महत्वपूर्ण प्रारम्भिक क़दम है, जिसे 10 फरवरी को संसद में पेश किया गया था. 

उन्होंने कहा कि उच्चायुक्त ने हिरासत-स्थलों का दौरा करने के लिये, मजिस्ट्रेटों की ताक़त में प्रस्तावित वृद्धि, मुक़दमे में तेज़ी लाने और प्रकाशनों पर गम्भीर प्रतिबन्ध लगाने वाली धारा 14 को निरस्त करने का स्वागत किया.

रवीना शमदासानी ने कहा, "हालाँकि, अन्य प्रस्तावित संशोधन श्रीलंका के अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का पूरी तरह से पालन नहीं करते हैं और पीटीए के सबसे समस्याग्रस्त प्रावधान यानि आतंकवाद की रोकथाम अधिनियम को बरक़रार रखते हैं. ये ऐसे प्रावधान हैं जिनकी वजह से कथित मानवाधिकार उल्लंघन सम्भव हुए हैं, जिसमें मनमाने ढंग से हिरासत में लेना और यातना देना शामिल है.”

वहीं उच्चायुक्त ने, जून के बाद से, पीटीए के तहत हिरासत में लिये गए 80 से अधिक संदिग्ध लोगों की रिहाई का स्वागत भी किया, साथ ही, अधिकारियों से इस क़ानून पर रोक लगाने का भी आग्रह किया.

रवीना शमदासानी ने कहा कि श्रीलंका केवल तभी टिकाऊ विकास, शान्ति और स्थाई सुलह हासिल कर पाएगा, जब वह नागरिक स्थान व स्वतन्त्र एवं समावेशी संस्थान सुनिश्चित करेगा और प्रणालीगत दण्ड मुक्ति समाप्त करेगा.