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किर्गिस्तान की महिलाएँ, घरेलू हिंसा से सुरक्षा की तलाश में इन विशेष केन्द्रों में आती हैं.

किर्गिस्तान में बाल विवाह और 'दुल्हनों के अपहरण' के ख़िलाफ़ अभियान जारी

Sezim social center, Kyrgyzstan
किर्गिस्तान की महिलाएँ, घरेलू हिंसा से सुरक्षा की तलाश में इन विशेष केन्द्रों में आती हैं.

किर्गिस्तान में बाल विवाह और 'दुल्हनों के अपहरण' के ख़िलाफ़ अभियान जारी

महिलाएँ

किर्गिस्तान में हालाँकि बाल विवाह और "दुल्हनों का अपहरण" अवैध है, लेकिन दोनों प्रथाएँ अब भी देश के कुछ हिस्सों में जारी हैं. अन्ततः, एक संयुक्त राष्ट्र समर्थित कार्यक्रम के ज़रिये, दृष्टिकोण में बदलाव और इन हानिकारक प्रथाओं के मामलों में गिरावट सम्भव हो रही है.

आधिकारिक सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, किर्गिस्तान में हर साल सात से नौ हज़ार लड़कियों की छोटी उम्र में शादी हो जाती है, और 13 से 17 साल की लगभग 500 लड़कियाँ माँ बन जाती हैं.

लड़कियाँ अब भी "अला कचू" जैसी प्रथाओं का शिकार हो रही हैं, जिसका किर्गिज़ भाषा में शाब्दिक अर्थ है "उठाकर भाग जाओ." यानि, उनका अपहरण करके जबरन शादी करा दी जाती है.

मनोवैज्ञानिक और 'सेज़िम' (किर्गिज़ भाषा में 'ट्रस्ट') की निदेशक, ब्यूबयुसारा रिस्कुलोवा कहती हैं, "किर्गिस्तान में कम उम्र में विवाह की समस्या बहुत विकट है." 'सेज़िम', 25 साल पहले देश में स्थापित किया गया पहला संकट केन्द्र है, जहाँ जीवन की कठिन परिस्थितियों में महिलाओं और लड़कियों को, अस्थाई आश्रय के साथ-साथ क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान की जाती है.

केन्द्र की स्थापना के 25 वर्षों में, 45 हज़ार से अधिक महिलाओं ने हॉटलाइन का उपयोग किया है, और लगभग 35 हज़ार ने क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक सलाह प्राप्त की है.

ब्यूबयुसारा रिस्कुलोवा के अनुसार, इन प्रथाओं के निरन्तर जारी रहने को आंशिक रूप से, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में धर्म के बढ़ते प्रभाव, बेरोज़गारी और ग़रीबी के परिपेक्ष्य में समझा जा सकता है.

“विवाह की क़ानूनी उम्र 18 वर्ष है, और लड़कियों का अपहरण अपराध है. दुर्भाग्य से, इन क़ानूनों का हमेशा सम्मान नहीं होता. लोग आधिकारिक तरीक़े से विवाह करने की बजाय, अक्सर मस्जिदों में धार्मिक समारोह आयोजित करके विवाह करते हैं, जिसे 'निकाह' कहा जाता है."

“गाँवों के परिवारों में अब सात या आठ बच्चे नहीं होते हैं, लेकिन माता-पिता के लिये चार या पाँच बच्चों की परवरिश करना भी आसान नहीं है. उनमें से अनेक परिवार, अपनी बेटियों को धनी परिवारों में देना चाहते हैं. ज़्यादातर, दोनों पक्ष आपस में सहमति बनाकर, सब कुछ चुपचाप करते हैं."

ब्यूबयुसारा रिस्कुलोवा कहती हैं, "हालाँकि, बाद में जीवन में, जब वे घरेलू हिंसा बर्दाश्त नहीं कर पातीं, तो महिलाएँ मदद के लिये हमारे पास आती हैं. तभी हमें मालूम होता है कि उनकी शादी उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़, चोरी से और गुपचुप तरीक़े से की गई थी."

क़ानूनों की अनदेखी

किर्गिस्तान की महिलाएँ, घरेलू हिंसा से बचने के लिये, सुरक्षा की तलाश में इन विशेष केन्द्रों में आती हैं.
Sezim social center, Kyrgyzstan
किर्गिस्तान की महिलाएँ, घरेलू हिंसा से बचने के लिये, सुरक्षा की तलाश में इन विशेष केन्द्रों में आती हैं.

क़ानून के मुताबिक़, 18 वर्ष की आयु होने के बाद ही मस्जिदों में "निकाह" आयोजित करने की अनुमति होती है, और अगर कम उम्र में निकाह होता है, तो दण्ड के रूप में तीन से पाँच साल के कारावास का प्रावधान है. दुल्हन के अपहरण के सम्बन्ध में, क़ानूनी सज़ा, दस साल की जेल है.

फिर भी, शायद ही कभी इस तरह के "सौदे" में प्रतिभागियों को सज़ा दी जाती है.

ब्यूबयुसारा रिस्कुलोवा कहती हैं, "क़ानून बनाना आसान है, लेकिन इसे लागू किया जाना भी ज़रूरी है. वर्तमान में, हम, युवा लड़कियों के बलात्कार से सम्बन्धित आठ आपराधिक मामलों की निगरानी कर रहे हैं."

अधिकतर मामले, देश के दक्षिण में तीन प्रमुख रूढ़िवादी क्षेत्रों में केन्द्रित हैं: ओश, जलाबाद और बटकेन. ओश में अक झुरोक (प्योर हार्ट) संकट केन्द्र की प्रमुख, दारिका असिलबेकोवा का कहना है कि 2010 के बाद से बाल विवाह की संख्या में वृद्धि हुई है.

उन्होंने बताया, “माता-पिता अपनी बेटियों की शादी नौवीं कक्षा के बाद कर देते हैं. उन्हें डर है कि, स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद, और शहर जाने के बाद, उनकी बेटियाँ "बिगड़" जाएंगी और फिर शादी नहीं कर पाएंगी."

नतीजतन, लड़कियाँ, पारिवारिक जीवन में फँसकर, स्कूल नहीं जा पातीं. घर की जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ पड़ती है, और फिर गर्भावस्था व बच्चों की देखभाल में लग जाती हैं.

शिक्षा या कामकाज पाने का कोई भी अवसर उन्हें नहीं मिल पाता और गृहिणियों के रूप में, वे पूरी तरह से अपने पतियों पर निर्भर रहती हैं.

केवल साल 2022 में, लगभग 1500 युवतियों ने मदद के लिये अके झूरोक की ओर रुख किया. वो न केवल अस्थाई आश्रय के लिये, बल्कि रोज़गार, सम्पत्ति के विभाजन और गुज़ारा भत्ता प्राप्त करने के लिये भी मदद मांगती हैं, क्योंकि, एक नियम के अनुसार, जो लोग अधिकारिक रूप से शादी नहीं करते, उन्हें कुछ पाने का अधिकार नहीं होता.

शर्म और अपराध

किर्गिस्तान की महिलाएँ, घरेलू हिंसा से सुरक्षा की तलाश में इन विशेष केन्द्रों में आती हैं.
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किर्गिस्तान की महिलाएँ, घरेलू हिंसा से सुरक्षा की तलाश में इन विशेष केन्द्रों में आती हैं.

हालाँकि, दक्षिण में भी, दृष्टिकोण बदल रहा है. ग्रामीण इलाक़ों में प्रति हज़ार विवाह पर लगभग 154 तलाक के मामले सामने आते हैं, जबकि शहरों में यह आँकड़ा 2.4 गुना ज़्यादा है.

लोकप्रिय किर्गिज़ ब्लॉग "ए गर्ल्ज़ ड्रीम" की लेखिका, 24 वर्षीय एगेरिम अलमानबेटोवा, किर्गिज़ महिलाओं की उस आधुनिक पीढ़ी से आती हैं, जो उस स्थिति को समझने की कोशिश कर रही हैं जिसमें उनकी कई साथी फँसी हैं.

वो कहती हैं, “मेरी राय में, धर्म के अलावा, कम उम्र में विवाह का एक और कारण पारिवारिक लालन-पालन है. हमारी मानसिकता है कि एक लड़की की जल्द से जल्द शादी कर देनी चाहिये क्योंकि उम्र के हिसाब से वह पहले से ही एक बूढ़ी नौकरानी मानी जाने लगती है. इसलिये, महिलाएँ बचपन से ही मनोवैज्ञानिक दबाव में रहती हैं.

एगेरिम अलमानबेटोवा बताती हैं, "लड़कियों को लगातार कहा जाता है कि उन्हें अपने पति के साथ रहने के लिये जाना होगा, कि उन्हें एक परिवार बनाना होगा, बच्चों को जन्म देना होगा. तो ऐसे में, उनकी शिक्षा पर धन क्यों ख़र्च किया जाए.”

वह आगे कहती हैं कि उन्हें शर्म की सांस्कृतिक धारणा से भी जूझना पड़ता है, जिसके कारण उनमें से अनेक को शोषण करने वाले पतियों के साथ रहना पड़ता है, और वर्षों तक शारीरिक यातना सहनी पड़ती है.

ब्लॉगर के अनुसार, किर्गिज़ समाज में पुरुषों के पालन-पोषण के तरीक़ों में बचपन से ही बदलाव लाने की लम्बे समय से ज़रूरत रही है.

संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई से मामलों में गिरावट आई

हालाँकि, हाल ही में, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों की सहायता से, ग़ैर सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों की निवारक कार्रवाई के कारण, कम उम्र में विवाह के मामलों की संख्या में गिरावट आई है.

यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने, जनवरी 2020 में, किर्गिस्तान की सरकार के साथ साझेदारी में, महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ सभी प्रकार की हिंसा को ख़त्म करने के लिये ‘वैश्विक स्पॉटलाइट पहल’ के हिस्से के रूप में, एक बहु-वर्षीय राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया था.

इस कार्यक्रम में नीति और क़ानून बनाने के क्षेत्र में उपायों की एक श्रृंखला दी गई है: संस्थानों को मज़बूत करना, हिंसा को रोकना, हिंसा के शिकार लोगों को सेवाएँ प्रदान करना, गुणवत्तापूर्ण आँकड़े एकत्र करना और महिला आन्दोलन व नागरिक समाज को सहारा देना.

एगेरिम अलमानबेटोवा जैसी सशक्त महिलाओं के लिये, यही वो सही दिशा है, जिस पर किर्गिस्तान को चलना चाहिये: “मैं एक परिवार शुरू करने के ख़िलाफ़ नहीं हूँ और मैं भविष्य में इस बारे में सपने देखती हूँ. लेकिन यह दृष्टिकोण मुख्यत: ख़ुद लड़की की इच्छा के मुताबिक़ होना चाहिये, न कि उसके माता-पिता की.”

वो कहती हैं, “एक महिला को दूसरे दर्जे की व्यक्ति मानना, अब अतीत की बात हो जानी चाहिये. यह हमारे समाज के विकास के लिये एक गम्भीर अवरोधक बन गया है."