वनों में आग लगने की घटनाएं बढ़ने की आशंका, ‘तैयार नहीं हैं सरकारें’

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और नॉर्वे में स्थित उसके एक साझीदार संगठन ( GRID-Arendal) की एक रिपोर्ट में जंगलों में आग लगने की घटनाओं की आवृत्ति व गहनता बढ़ने की आशंका जताई गई है. रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक इन घटनाओं में 14 प्रतिशत होने की सम्भावना है, जिसकी एक बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन और भूमि-इस्तेमाल में बदलाव आना है.
रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई है कि 2030 तक वनों में आग फैलने की घटनाओं में 30 फ़ीसदी और इस सदी के अन्त तक 50 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.
अध्ययन में पाया गया है कि आर्कटिक समेत वे अन्य क्षेत्र, जोकि पहले वनों में आग लगने से आमतौर पर प्रभावित नहीं हुए हैं, वहाँ भी ये जोखिम बढ़ रहा है.
Climate change and land-use change are projected to make wildfires more frequent and intense, with a global increase of extreme fires of up to 14% by 2030, 30% by the end of 2050 and 50% by the end of the century.New UNEP-@GRIDArendal report ⤵️ https://t.co/7JHJvcNLkX
UNEP
विशेषज्ञों ने सरकारी स्तर पर जवाबी कार्रवाई में आमूल-चूल परिवर्तन का आग्रह किया है, जिसमें रोकथाम उपायों और पहले से तैयारी किये जाने पर बल दिया गया है.
उनका कहना है कि फ़िलहाल कार्रवाई के लिये धनराशि को सही दिशा में नहीं लगाया जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन ने कहा, “वो आपात सेवाकर्मी और अग्निशमन कर्मचारी, जो अग्रिम मोर्चे पर जंगलों में आग से निपटने के लिये अपना जीवन जोखिम में डाल रहे हैं, उन्हें समर्थन दिये जाने की ज़रूरत है.”
उन्होंने कहा कि जंगलों में चरम स्तर पर आग लगने की घटनाओं के जोखिम को, बेहतर ढँग से तैयारी के ज़रिये कम करने की ज़रूरत है.
इसके लिये आग लगने के जोखिम में कमी लाने के लिये अधिक निवेश, स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करने, और जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में वैश्विक संकल्प को मज़बूती प्रदान करना अहम होगा.
यूएन पर्यावरण एजेंसी की रिपोर्ट, ‘Spreading like Wildfire: The Rising Threat of Extraordinary Landscape Fires’, को केनया के नैरोबी शहर में यूएन पर्यावरण ऐसेम्बली का सत्र शुरू होने से पहले जारी किया गया है.
पर्यावरण ऐसेम्बली का सत्र अगले सप्ताह शुरू हो रहा है, जिसमें 193 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे.
जंगलों में आग लगने की घटनाओं से विश्व के निर्धनतम देश, विषमतापूर्ण ढँग से प्रभावित होते हैं, और आग की लपटों के बुझ जाने के लम्बे समय बाद तक, वे उसके नुक़सान की आँच झेलते हैं.
इससे टिकाऊ विकास की दिशा में प्रगति में अवरोध खड़े होते हैं और सामाजिक विषमता भी गहरा जाती है.
रिपोर्ट के अनुसार, जंगलों में आग लगने से उठने वाले धुएँ से आमजन के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, और उन्हें श्वसन तंत्र या हृदय से जुड़ी समस्याएं पेश आ सकती हैं.
निम्न-आय वाले देशों में पुनर्निर्माण की ऊँची क़ीमत उनके संसाधनों पर और अधिक बोझ डालती है.
वनों में आग फैलने से वन्यजीवन और अन्य प्राकृतिक पर्यावास भी अछूते नहीं रह पाते हैं. जंगलों में आग लगने की घटनाएं, कुछ पशुओं व पौधों की प्रजातियाँ को विलुप्त होने के कगार पर धकेल रही हैं.
बताया गया है ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 2020 में इन घटनाओं ने अरबों की संख्या में घरेलू व जंगली पशुओं की जान ले ली थी.
रिपोर्ट के अनुसार, वनों में आग फैलने और जलवायु परिवर्तन की घटनाएं, एक दूसरे को बढ़ावा देती हैं.
यूएन एजेंसी के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा पड़ने, वायु तापमान बढ़ने, अपेक्षाकृत कम आर्द्रता होने, बिजली कड़कने, और तेज़ हवाएं चलने की घटनाएं होती हैं. इससे ज़्यादा गर्म, ज़्यादा शुष्क परिस्थितियों में अधिक लम्बे समय तक आग फैलने की घटनाएं होती हैं.
“साथ ही, जंगलों में आग लगने की घटनाओं के कारण जलवायु परिवर्तन और भी ख़राब रूप धारण कर रहा है, चूँकि इससे सम्वेनदशील और कार्बन-धनी पारिस्थितिकी तंत्रों जैसेकि वर्षावन और नमभूमि को ख़ासा नुक़सान पहुँचता है.”
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भूपरिदृश्य, बारूद के ढेर समान हो जाते हैं, और बढ़ते तापमानों को रोक पाना कठिन हो जाता है.
रिपोर्ट में वनों में आग फैलने की घटनाओं के प्रति बेहतर समझ विकसित करने और उनका व्यवहार समझने की अहमियत को रेखांकित किया गया है.
रोकथाम उपायों में डेटा और विज्ञान-आधारित निगरानी प्रणाली के सम्मिश्रण और मज़बूत क्षेत्रीय व अन्तरराष्ट्रीय सहयोग पर ज़ोर दिया गया है. इसके साथ-साथ आदिवासी समुदायों के ज्ञान को भी कार्रवाई में समाहित किया जाना होगा.
रोकथाम की दिशा में देशों की सरकारों से एक ऐसे फ़ार्मूले को अपनाने का आग्रह किया गया है, जिसमें दो-तिहाई रक़म को नियोजन, रोकथाम, तैयारी व पुनर्बहाली के लिये आवण्टित करने की बात कही गई है.
शेष एक-तिहाई रक़म को जवाबी कार्रवाई के लिये रखा जाना होगा.
बताया गया है कि फ़िलहाल, जंगलों में आग लगने की घटनाओं से निपटने के लिये, कुल धनराशि में आधी से अधिक रक़म ख़र्च की जाती है.
उपयुक्त योजनाएं तैयार किये जाने और रोकथाम उपायों के लिये एक प्रतिशत से भी कम धन मुहैया कराया जाता है.
विशेषज्ञों ने अग्निशमन दल के कर्मचारियों के लिये बेहतर सुरक्षा व स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के इरादे से अन्तरराष्ट्रीय मानक स्थापित किये जाने का आग्रह किया है.
साथ ही कामकाज के दौरान उनके सामने पेश आने वाले ख़तरों, जैसेकि साँस के धुँआ शरीर में जाने, पर्याप्त पोषण व आराम ना मिल पाने, को कम किया जाना भी अहम होगा.