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कोविड-19: शिक्षा में व्यवधान की भरपाई के लिये वैकल्पिक कार्यक्रम

पढ़ाई भूल चुके बच्चों को स्कूलों में वापस लाने के प्रयास किए जा रहे हैं.
© UNICEF/Kaur
पढ़ाई भूल चुके बच्चों को स्कूलों में वापस लाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

कोविड-19: शिक्षा में व्यवधान की भरपाई के लिये वैकल्पिक कार्यक्रम

संस्कृति और शिक्षा

भारत में कोविड-19 के कारण स्कूल बन्द होने से छात्रों के खोये समय की भरपाई करने में मदद के इरादे से, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) अपने साझीदार संगठनों के साथ मिलकर, एक वैकल्पिक शिक्षा कार्यक्रम संचालित कर रहा है. इस कार्यक्रम के ज़रिये, पढ़ाई से दूर हो गए बच्चों में दिलचस्प तरीक़ों से शिक्षा में फिर से रुचि जगाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

भारत के ओडिशा राज्य के एक ग्रामीण इलाक़े, कालाहाण्डी के एक शिक्षक जगदीश बताते हैं, "बच्चॆ ने दो साल पहले जो कुछ सीखा था, वो उसे पूरी तरह भूल गए हैं. यह देखकर दुख होता है कि वो अब मेरे केन्द्र पर आने से डरते हैं."

वर्ष 2021 में कोविड-19 की दूसरी विनाशकारी लहर ने पूरे भारत में स्कूलों को बन्द करने के लिये मजबूर कर दिया, जिससे 28 करोड़ से अधिक बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई.

कुछ स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा मुहैया करवाई, लेकिन जिन छात्रों के लिये इण्टरनैट सुलभ नहीं था, वे शिक्षा से पूरी तरह से कट गए.

आंगनवाड़ी, ग्रामीण क्षेत्रों के आरम्भिक बचपन विकास केन्द्र भी बन्द हो गए, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों बच्चे प्रारम्भिक शिक्षा से भी दूर हो गए.

कोविड-19 के कारण स्कूल बन्द न होने के कारण कुछ स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा मुहैया करवाई, लेकिन इण्टरनेट तक पहुँच न होने वाले छात्र शिक्षा से पूरी तरह कट गए.
© UNICEF/Kaur
कोविड-19 के कारण स्कूल बन्द न होने के कारण कुछ स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा मुहैया करवाई, लेकिन इण्टरनेट तक पहुँच न होने वाले छात्र शिक्षा से पूरी तरह कट गए.

जैसे-जैसे कोविड-19 संक्रमण मामलों में कमी आई है, स्कूल फिर से खुलने लगे हैं, लेकिन इतने लम्बे समय तक कक्षाओं से बाहर रहने से बच्चों पर हुआ प्रभाव, अब एक चुनौती बन गया है.

तीसरी लहर आने का डर भी बच्चों को फिर से सिखाने के प्रयासों को जटिल बना रही है.

जगदीश कहते हैं, "बच्चों को फिर से प्रेरित करना मुश्किल लग रहा है. ऐसा लग रहा है जैसेकि उनकी रुचि ही खो गई है.”

ओडिशा में डिजिटल माध्यमों और पढ़ाई-लिखाई के बीच की खाई को पाटने में मदद करने के लिये तीन महीने की इन्टर्नशिप शुरू की गई है.

जगदीश, भी इस वैकल्पिक इन्टर्नशिप कार्यक्रम का हिस्सा हैं, जिसमें पिछले साल अक्टूबर के पहले सप्ताह तक, लगभग 9 हज़ार शिक्षक शामिल हुए और इसका लाभ 75 हज़ार से अधिक छात्रों तक पहुँचा है.

वर्तमान में, जगदीश तीन समूहों में 40 बच्चों को पढ़ाते हैं, जिसमें बच्चों को इतनी लम्बी अनुपस्थिति के बाद, कक्षा में रुचि जगाने के लिये खेल, गायन, जैसे गतिविधि-आधारित शिक्षण पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है.

वो कहते हैं, "हम उन्हें सीखने के लिये प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं. उम्मीद है कि इससे स्कूल जाने के उनके डर को कम करने में मदद मिलेगी."

सुरक्षा प्राथमिकता

इन केन्द्रों में शारीरिक दूरी बरतने, नियमित रूप से हाथ धोने और फ़ेस मास्क का उपयोग जैसे सभी कोविड-19 सुरक्षा नियमों का पालन किया जाता है.
© UNICEF/Kaur
इन केन्द्रों में शारीरिक दूरी बरतने, नियमित रूप से हाथ धोने और फ़ेस मास्क का उपयोग जैसे सभी कोविड-19 सुरक्षा नियमों का पालन किया जाता है.

जगदीश ने बच्चों को सीखने में मदद करने के लिये घर-घर जाकर, अभिभावकों को अपने बच्चों को इन शिक्षण केन्द्रों में भेजने के लिये प्रोत्साहित किया है.

इन केन्द्रों में बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है, साथ ही, शारीरिक दूरी बरतने, नियमित रूप से हाथ धोने और फ़ेस मास्क के उपयोग जैसे सभी कोविड-19 ऐहतियाती नियमों का भी पालन किया जाता है.

जगदीश ने बताया कि, “शारीरिक दूरी, शिक्षक और बच्चों के बीच सम्पर्क को सीमित करती है. लेकिन हम इसके इर्द-गिर्द अपना रास्ता तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं. जो बच्चे इतने लम्बे समय से स्कूल से दूर हैं, उनका विश्वास हासिल करना एक वास्तविक चुनौती है.”

ऐसा प्रतीत होता है कि जगदीश की कक्षाओं में आने वाली एक लड़की, नेहा के लिये ये प्रयास रंग ला रहे हैं.

नेहा बताती हैं, “मैं बहुत दुखी थी क्योंकि स्कूल बहुत लम्बे समय से बन्द था. अब मैं इतने सारे खेलों और गायन व नृत्य जैसी गतिविधियों के साथ इन मज़ेदार कक्षाओं में भाग लेने में बहुत ख़ुश हूँ. अपने दोस्तों से दोबारा मिलकर भी मुझे बहुत अच्छा लगा."

लचीली सोच

बच्चों को इतनी लम्बी अनुपस्थिति के बाद, कक्षा में रुचि जगाने के लिये खेल, गायन, जैसे गतिविधि-आधारित शिक्षण पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है.
© UNICEF/Kaur
बच्चों को इतनी लम्बी अनुपस्थिति के बाद, कक्षा में रुचि जगाने के लिये खेल, गायन, जैसे गतिविधि-आधारित शिक्षण पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है.

ओडिशा में यूनीसेफ़ के फील्ड ऑफिस की प्रमुख, मोनिका नीलसन का कहना है कि इण्टरनैट-आधारित शिक्षा तक असमान पहुँच के कारण, उन छात्रों तक पहुँचने के लिये अलग-अलग तरीक़ों की आवश्यकता होती है, जिनके पीछे छूट जाने का जोखिम है. 

इसके मद्देनज़र, यूनीसेफ़ ने साझेदारों के साथ वैकल्पिक शिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है. उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम एक छोटा लेकिन सकारात्मक क़दम है, ख़ासतौर पर, राज्य के कमज़ोर तबके के परिवारों के लिये. 

उनका कहना है कि, "इस कार्यक्रम के ज़रिये, सबसे ग़रीब और कमज़ोर छात्रों तक शिक्षा पहुँची, जिससे छात्रों और शिक्षकों, दोनों को सीखने का आनन्द वापिस मिल सका."

ओडिशा के एक गाँव मयूरभंज की एक प्रशिक्षु-शिक्षिका, गौरीमणि कहती हैं कि इस कार्यक्रम में इतने सारे माता-पिता को अपने बच्चों का नामांकन करते देखकर वह बहुत उत्साहित हैं.

मगर, उनका मानना है कि बच्चों के लिये कक्षाओं का अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने के लिये,  शिक्षण में एक लचीले दृष्टिकोण की आवश्यकता है.

गौरीमणि कहती हैं, "यह एक आदिवासी इलाका है, इतने सारे बच्चे राज्य की भाषा, उड़िया पूरी तरह नहीं समझ पाते और अपनी मातृभाषा संताली बोलने में अधिक सहज महसूस करते हैं."

वैकल्पिक शिक्षा कार्यक्रमों के ज़रिये, बच्चों को दिलचस्प तरीक़ों से पढ़ाने की कोशिश की जाती है.
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वैकल्पिक शिक्षा कार्यक्रमों के ज़रिये, बच्चों को दिलचस्प तरीक़ों से पढ़ाने की कोशिश की जाती है.

वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, राज्य में 60 से अधिक आदिवासी समुदाय हैं, जो कम से कम 21 आदिवासी भाषाएँ बोलते हैं.

इनमें संताली सहित कई भाषाओं की अपनी लिपियाँ हैं, जिससे शिक्षा कार्यक्रमों के सामने अभूतपूर्व चुनौतियाँ पेश होती हैं.

वह कहती हैं, "मैंने यह जाने बिना ही उड़िया में पढ़ाना शुरू कर दिया. फिर मैंने देखा कि बहुत से बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे हैं. तब मैंने संताली में शिक्षा देने का फ़ैसला किया."

गौरीमणि ने, आधिकारिक उड़िया पाठ्यक्रम से अनुवाद करके, संताली में कई तरह की शिक्षण सामग्री विकसित की है. बेटी के समर्पण से प्रेरित होकर, गौरीमणि की माँ भी इसमें मदद कर रही हैं.

दोनों ने एक प्रेरक शिक्षण केन्द्र बनाने के लिये कड़ी मेहनत की है और उनके प्रयासों ने कई कार्यक्रमों के संचालकों का ध्यान आकर्षित किया है.

गौरीमणि के लिये कार्यक्रम परामर्शदाता, डॉक्टर पूर्ण चन्द्र ब्रह्मा कहते हैं, “जब आप उसका पढ़ाई-लिखाई केंद्र देखते हैं, तो आपको एहसास होता है कि वह कितनी प्रतिभाशाली हैं. उन्होंने यहाँ उत्कृष्ट काम किया है. उन्होंने और उनकी माँ ने जो व्यक्तिगत पहल की है, वह वास्तव में प्रेरणादायक है."