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कोविड 19: सामुदायिक जागरूकता प्रसार में रेडियो की अहम भूमिका

22 वर्षीय रेडियो प्रस्तुतकर्ता अश्वथी मुरली,भारत के केरल राज्य के वायनाड ज़िले में सामुदायिक रेडियो मट्टौली में एक रेडियो शो का सम्पादन कर रही हैं.
© UNICEF/Srishti Bhardwaj
22 वर्षीय रेडियो प्रस्तुतकर्ता अश्वथी मुरली,भारत के केरल राज्य के वायनाड ज़िले में सामुदायिक रेडियो मट्टौली में एक रेडियो शो का सम्पादन कर रही हैं.

कोविड 19: सामुदायिक जागरूकता प्रसार में रेडियो की अहम भूमिका

यूएन मामले

दुनिया के सबसे भरोसेमन्द और उपयोगी मीडिया माध्यमों में से एक, रेडियो की अहमियत को रेखांकित करने वाले, 'विश्व रेडियो दिवस' की इस वर्ष थीम है: ‘रेडियो और भरोसा’. कोविड-19 महामारी के दौरान, दूर-दराज़ के इलाक़ों में जागरूकता फैलाने में भारत में भी सामुदायिक रेडियो स्टेशनों से बहुत मदद मिली है.

“नमस्कार! रेडियो मट्टौली के लाइव फ़ोन-इन प्रोग्राम से, मैं हूँ अश्वथी मुरली!”

अश्वथी मुरली, भारत के केरल राज्य के वायनाड ज़िले में एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन में प्रस्तुतकर्ता हैं.

वो रेडियो के ज़रिये कोविड से जुड़े मिथक दूर करने और टीके लगवाने में झिझक से निपटने के लिये, स्थानीय बोली में जानकारी व जागरूकता फैलाती हैं.

वायनाड में 18 फ़ीसदी लोग आदिवासी हैं. ज़्यादातर आदिवासी पनियार समुदाय से हैं, जो सबसे पिछड़े समुदायों में से एक है.

समुदाय की कथित रूढ़िवादी विचारधारा और परम्पराओं के कारण, वहाँ लोगों का मानना था कि ईश्वर उन्हें किसी भी बीमारी से ग्रस्त नहीं होने देंगे. इसलिये, ज़्यादातर लोगों ने टीकाकरण जैसे रोकथाम उपायों पर विश्वास नहीं किया.

इन परिस्थितियों में, अश्वथी अपने समुदाय और बाहर की दुनिया के बीच का सेतु बनीं.

इलाक़े में कोविड-19 के फैलाव से जुड़े भय, भ्रान्तियों और ग़लतफ़हमियों को दूर करने के लिये, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़), भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग व राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने रेडियो मट्टौली को अपने साथ जोड़ा.

अश्वथी कहती हैं, "इस इलाक़े तक सूचना के कई स्रोत पहुँच नहीं पाते हैं."

"लेकिन एक सूचना स्रोत जो हर घर में मौजूद है, वो है रेडियो. इसलिये, जब टीकाकरण अभियान शुरू हुआ, तो मुझे मालूम था कि यही एकमात्र तरीक़ा है, जिससे मैं ग़लतफहमियाँ दूर करने के लिये लोगों तक पहुँच सकती हूँ.”

अश्वथी ने अपने सामुदायिक रेडियो स्टेशन के माध्यम से कोविड-19 के दौरान जागरूकता फैलाने में मदद की.
UNICEF/Srishti Bhardwaj
अश्वथी ने अपने सामुदायिक रेडियो स्टेशन के माध्यम से कोविड-19 के दौरान जागरूकता फैलाने में मदद की.

इसके लिये, अश्वथी ने कोविड सम्बन्धी जानकारी का पुनिया भाषा में अनुवाद करके, अपने रेडियो स्टेशन के ज़रिये प्रसारित किया.

इसके अलावा, यूनीसेफ़, भारत सरकार और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा दी गई जानकारी से, पुनिया भाषा में रेडियो गीत-झनकार, नाटक व डॉक्टरों के साथ बातचीत के कार्यक्रम भी पेश किए गए.

समुदाय पर असर

जब अश्वथी लाइव फ़ोन-इन कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के साथ बातचीत करती हैं, तो सभी आयु वर्गों के लोग अपने रेडियो सेट से चिपके रहते हैं.

जब ज़िला कलेक्टर ने गाँव के लोगों से पूछा कि उन्हें कोविड सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी कहाँ से मिली, तो उन्होंने कहा कि रेडियो मट्टौली से उन्हें सारी जानकारी मिलती है.

वायनाड में उनके गाँव के एक सदस्य ने बताया, "जब समुदाय की एक लड़की इन चीज़ों के बारे में बताती है, तो लोग इसे बेहतर तरीक़े से मानते और समझते हैं. फिर वे इनपर दिल से काम करते हैं, न कि मज़बूरी से."

अश्वथी कहती हैं, "मैं पहले टीका लगवाकर अपने समुदाय को दिखाना चाहती थी कि टीका लगवाना ज़रूरी है. मैंने अपनी दादी को भी समझाया कि उन्हें टीका क्यों लगवाना चाहिये.”

जब अन्य लोगों ने देखा कि वह ठीक हैं, तो वो भी टीकाकरण के लिये आगे आए.

केवल वायनाड ही नहीं, भारत में कोविड-19 के दौरान, जगह-जगह, दूर-दराज़ के क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने में रेडियो की भूमिका बेहद अहम रही.

रेडियो उत्सव

यूनीसेफ़ की ही तरह, भारत में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक,वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भी सामुदायिक रेडियो के महत्व को समय-समय पर रेखांकित किया है.

यूनेस्को ने इस वर्ष, वैश्विक महामारी के दौरान रेडियो की अहमियत पर बल देते हुए, राष्ट्रीय ऑल इण्डिया रेडियो (एआईआर) - आकाशवाणी, ग़ैर-सरकारी संगठनों, ‘सीकिंग मॉडर्न एप्लीकेशन फ़ॉर रियल ट्रान्सफॉर्मेशन’ (स्मार्ट) व भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ मिलकर एक ऑनलाइन 'रेडियो उत्सव' आयोजित किया. 

नई दिल्ली में शनिवार, 12 फ़रवरी, को आयोजित हुए इस कार्यक्रम में, प्रख्यात वक्ताओं और रेडियो प्रसारण से जुड़े पेशेवरों के साथ, कोविड महामारी के दौरान रेडियो की भूमिका पर चर्चा हुई.

भरोसेमन्द माध्यम

इस अवसर पर, यूनेस्को नई दिल्ली कार्यालय के निदेशक, एरिक फॉल्ट ने कहा, “रेडियो की ताक़त का सबसे बेहतर उदाहरण रहा - कोविड-19 महामारी, जिसके दौरान रेडियो के ज़रिये दुनिया भर में नवीनतम जानकारी का प्रचार-प्रसार किया गया."

"रेडियो ने, अपने संवादात्मक कार्यक्रमों, गीतों, चुटकुलों के साथ- ऐसे समय में लोगों को जुड़ाव महसूस करने में एक उत्कृष्ट भूमिका निभाई, जब महामारी के कारण लोग अलग-थलग रहने के लिये मजबूर थे.”

कोविड-19 महामारी के दौरान तेज़ी से फैल रही ग़लत जानकारी के कारण मीडिया में लोगों का विश्वास भी कम हुआ.

मगर, कुछ अध्ययनों के अनुसार जहाँ दुनिया भर में इण्टरनैट और सोशल नैटवर्क पर आमजन के विश्वास में, गिरावट देखने को मिली है, वहीं सामुदायिक मीडिया में लोगों का विश्वास बढ़ा है.

विश्वास की खाई

‘योरोपीय ब्रॉडकास्टिंग यूनियन’ द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट, 'ट्रस्ट इन मीडिया' में वैश्विक स्तर पर पारम्परिक और ऑनलाइन मीडिया के बीच 'विश्वास की खाई' उजागर हुई.

हालाँकि, इसमें यह भी स्पष्ट हुआ कि विश्वसनीय जानकारी के लिये लोग ज़्यादातर सार्वजनिक प्रसारकों पर भरोसा करते हैं, जोकि विश्व स्तर पर 60 प्रतिशत से अधिक बाज़ारों में समाचारों का सबसे विश्वसनीय स्रोत माने गए.

एक वैश्विक सर्वेक्षण के अनुसार, विकासशील देशों में 75 प्रतिशत से अधिक आबादी तक पहुँच के साथ, रेडियो सबसे सुलभ माध्यम है. यही कारण है कि कोरोनावायरस संकट पर जवाबी कार्रवाई में यह सबसे महत्वपूर्ण औज़ार रहा.

एक सामुदायिक रेडियोकर्मी, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) समर्थित प्रशिक्षण सत्र में भाग लेते हुए.
UNESCO New Delhi/Gurgaon Ki Awaaz
एक सामुदायिक रेडियोकर्मी, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) समर्थित प्रशिक्षण सत्र में भाग लेते हुए.

एरिक फॉल्ट कहते हैं, “कोरोना के बाद की दुनिया में, रेडियो ने स्वास्थ्य निर्देश प्रसारित करने, विश्वसनीय जानकारी सुलभ बनाने और नफ़रत भरी भाषा का मुक़ाबला करके, लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है."

"यूनेस्को ने, भागीदारों के सहयोग से, रेडियो के ज़रिये, प्रभावी कार्यक्रम तैयार करके समुदायों तक जानकारी पहुँचाने व नफ़रत भरी भाषा से निपटने में सफलता हासिल की.” 

जागरूकता प्रसार के प्रयास

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिये, यूनेस्को ने महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण, घरेलू हिंसा व ग़लत सूचना, जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर जानकारी प्रसारित करने के लिये, रेडियो मेवात से हाथ मिलाया.”

“श्रोताओं के साथ बातचीत ने हमें सिखाया कि समुदायों के बीच रेडियो कितना सशक्त माध्यम है. हमने सीखा कि कैसे इन रेडियो कार्यक्रमों से, नूह ज़िले की महिलाओं को घरेलू हिंसा पर अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता हासिल हुई, जिससे घरों में उनकी स्थिति मज़बूत होने में मदद मिली.”

साथ ही, यूनेस्को ने महिला सम्बन्धी मुद्दों पर प्रगतिशील और गहरी समझ बनाने, उनके अधिकारों की रक्षा करने और सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के भीतर लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने के प्रयास में, हैदराबाद विश्वविद्यालय में सामुदायिक मीडिया पर यूनेस्को के अध्यक्ष के सहयोग से, सामुदायिक रेडियो में लैंगिक संवेदनशील व्यवहार और कार्यक्रम पर हाल ही में सामग्री प्रकाशित की. 

इस 'मैनुअल' का उद्देश्य है - सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के प्रबन्धन और संचालन में विषमताओं को घटाने के लिये, लैंगिक रूप से संवेदनशील नीतियों को बढ़ावा देना.

दुनिया भर की सरकारें, विशेष रूप से विकासशील देशों में, सामुदायिक रेडियो के महत्व और किसी को पीछे न छोड़ने के लिये, बड़े विकास एजेण्डे में इसकी भूमिका को पहचानती हैं.

भविष्य की राह

यूनेस्को कई वर्षों से स्थानीय भाषाओं का प्रचार और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये प्रयासरत है.

इस वर्ष यूनेस्को, 2022 से 2032 तक स्वदेशी व आदिवासी भाषाओं के अन्तरराष्ट्रीय दशक की शुरुआत कर रहा है.

इसके तहत, सामुदायिक रेडियो के लिये जनजातीय भाषाओं को बढ़ावा देकर, देश की विविधता को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के प्रयास किये जाएंगे.