टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के लिये, युवाओं को सशक्त बनाती हैं 'दालें'
संयुक्त राष्ट्र हर वर्ष 10 फ़रवरी को विश्व दाल दिवस मनाता है और इस वर्ष इस दिवस का विषय है कि ये पौष्टिक खाद्य पदार्थ, टिकाऊ व्यावसायिक खेतीबाड़ी (कृषि भोज्य) प्रणालियाँ प्राप्ति में, युवाओं को सशक्त बनाने में किस तरह मदद कर सकते हैं. दालें, दुनिया भर में अपार व्यंजन श्रृंखलाओं के लिये तो अहम हैं ही.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने इस दिवस पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया जो – एक बेहतर खाद्य भविष्य को आकार देने में युवजन की अहम भूमिका पर केन्द्रित था. इसमें युवा प्रतिनिधियों की आपबीतियाँ और नज़रिये प्रस्तुत किये गए.
On this year's #WorldPulsesDay, I call on youth to support the transformation of agrifood systems to be more sustainable, to help achieve the #SDGs.Pulses play a vital role in addressing the challenges of food security, human nutrition, soil health & the climate crisis. pic.twitter.com/OEHjbXpA8L
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यूएन खाद्य व कृषि एजेंसी के महानिदेशक क्यू डोंग्यू ने इस मौक़े पर अपने ट्वीट सन्देश में युवाओं से, कृषि आधारित खाद्य प्रणालियों में बदलाव को ज़्यादा टिकाऊ बनाने के लिये समर्थन देने का आहवान किया, जिससे टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद मिलेगी.
युवजन हैं एक पुल
एजेंसी के अनुसार, दालों के माध्यम से आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय अवसर उत्पन्न होते हैं, मगर दाल आधारित खेतीबाड़ी को अपनाने के लिये, युवजन को हर रणनीति के केन्द्र में रखा जाना होगा.
एजेंसी ने विश्व दाल दिवस के अवसर पर एक वक्तव्य में कहा कि युवजन, परम्परागत खेतीबाड़ी तकनीकों और नई तकनीकों के बीच एक पुल का काम कर सकते हैं, जिससे कृषि क्षेत्र को ज़्यादा टिकाऊ और पोषण सम्वेदनशील बनाने में मदद मिलेगी.
दालें क्या हैं?
दालें, दरअसल खाद्य की ख़ातिर उगाए जाने वाले पौधों की फलियों में मौजूद, खाने योग्य बीजों को पुकारा जाता है.
मूंग, मसूर, उड़द, अरहर, चना, मटर की दालें मशहूर हैं और इनका बड़े पैमाने पर उपभोग होता है.
मगर दुनिया भर में दालों की अपार क़िस्में मौजूद हैं जो खाद्य सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन को धीमा करके, और जैव-विविधता को क़ायम रखते हुए अनेक फ़ायदे मुहैया कर सकती हैं.
दुनिया भर में अनाज के आटे से बनने वाले व्यंजनों में दालें भी प्रमुखता से नज़र आती हैं जिनमें – भूमध्य सागरीय देशों में चने से बनने वाला हुमूस, परम्परागत अंग्रेज़ी नाश्ते में पकी हुई बीन्स और भारत में तरह-तरह की दालों के स्वादिष्ट व्यंजन शामिल हैं.
दालों में हरी फ़सलों के बीज या फलियाँ शामिल नहीं होते हैं, मसलन हरी मटर या हरी बीन्स, उन्हें सब्ज़ियों की श्रेणी में रखा जाता है.
साथ ही, मुख्य रूप से तेल निकाने के लिये काम आने वाली फ़सलों को भी दालों की श्रेणी से बाहर रखा जाता है, जिनमें सोयाबीन और मूंगफ़ली वग़ैरा शामिल हैं.
स्वास्थ्य और आर्थिक लाभ

दालें पौष्टिकता से भरपूर होती हैं और उनमें प्रोटीन की उच्च मात्रा होती है, जिनके कारण, दालें, ऐसे क्षेत्रों में प्रोटीन का आदर्श स्रोत होती हैं जहाँ किन्हीं कारणों से माँस या दुग्ध पदार्थ उपलब्ध नहीं होते हैं.
दालों में वसा भी कम होती है और उनमें घुलनशील फ़ाइबर भी ज़्यादा होता है जो कॉलस्ट्रोल को कम करता है और रक्त शर्करा (Blood Sugar) को भी नियंत्रित करने में मदद करता है.
दालों की इन्हीं गुणवत्ताओं की वजह से, बहुत से स्वास्थ्य संगठन इन्हें खाने की सिफ़ारिश करते हैं जिनसे डायबटीज़ और कुछ तरह के हृदय रोगों को कम करने में भी मदद मिलती है. दालें, मोटापा दूर करने में भी मददगार साबित होती बताई गई हैं.
किसानों के लिये दालें अहम फ़सलें हैं क्योंकि वो उन्हें बेचकर आय भी अर्जित कर सकते हैं और ख़ुद उनका सेवन भी कर सकते हैं, जिसके कारण, किसान परिवारों में खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता भी क़ायम रहती है.
जलवायु
दालों में नाइट्रोजन को ठीक करने वाले तत्व भी होते हैं जिनसे ज़मीन की उर्वरता भी बेहतर होती है, और अन्ततः कृषि भूमि की उत्पादकता में वृद्धि और विस्तार दोनों होते हैं.
किसान, दालों की फ़सलों के ज़रिये कृषि जैव-विविधता और भूमि जैव-विविधता को भी प्रोत्साहन दे सकते हैं, जिससे हानिकारक कीड़े और बीमारियाँ भी दूर रहते हैं.
इससे भी ज़्यादा, दालों के जलवायु परिवर्तन का असर कम करने में भी योगदान मिलता है और अप्राकृतिक (Synthetic) खाद या उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है, जो ज़मीन में कृत्रिम तरीक़े से नाइट्रोजन को दाख़िल कराने के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं.
ये उर्वरक बनाए जाने और इन्हें खेतों में डाले जाने के दौरान ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, और उनका अत्यधिक प्रयोग, वातावरण के लिये हानिकारक हो सकता है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 में, 10 फ़रवरी को “विश्व दाल दिवस” चिन्हित किया था.
उससे पहले खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने वर्ष 2016 को अन्तरराष्ट्रीय दाल वर्ष के रूप में मनाया था जिससे विश्व दाल दिवस के लिये प्रोत्साहन मिला.