'विज्ञान में महिलाओं व लड़कियों के लिये अनुकूल माहौल ज़रूरी'

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने विज्ञान में महिलाएँ और लड़कियों के अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर, ऐसा वातावरण बनाए जाने का आहवान किया है जिसमें आज की लड़कियाँ भविष्य की अग्रणी वैज्ञानिक व नवाचारी बनें, और सर्वजन के लिये एक न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य को आकार दें. विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों की अहमियत की ओर ध्यान आकर्षित करने और उनके योगदान के बारे में जागरूकता फैलाने के इरादे से, 11 फ़रवरी को इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने शुक्रवार को इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर कहा कि आज दुनिया भर में हर तीन शोधकर्ताओं में से केवल एक महिला है. ढाँचागत और सामाजिक बाधाएँ महिलाओं व लड़कियों को विज्ञान में दाख़िल होने और आगे बढ़ने से रोक रही हैं.
"Recognize, applaud, publish and cheer on the brave women who have constantly advocated and promoted equitable, gender-focused & just #ClimateAction measures."We need more #WomenInScience like @poshgero, Founder and CEO of @AccessDrop. 🔗https://t.co/PPHmbyUIFq pic.twitter.com/abJFvIPE3M
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दुनिया भर में विज्ञान, टैक्नॉलॉजी, इन्जीनियरिंग और गणित विषयों (STEM) में, सभी स्तरों पर एक महत्वपूर्ण लैंगिक विषमता बनी हुई है.
महिलाओं ने अलबत्ता, उच्च शिक्षा में अपनी भागीदारी बढ़ाने में बहुत शानदार प्रगति दर्ज की है, मगर इन क्षेत्रों में अब भी उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है.
और स्कूल बन्द रहने से लेकर, हिंसा में बढ़ोत्तरी व घरों में देखभाल के बढ़ते बोझ के बीच, कोविड-19 महामारी ने लैंगिक विषमताएँ और ज़्यादा बढ़ा दी हैं.
यूएन महासचिव ने कहा, “ये विषमता, हमारी दुनिया को, ऐसी अपार प्रतिभा व नवाचार से वंचित कर रही है जिसका लाभ नहीं उठाया जा रहा है.”
उन्होंने महिलाओं के नज़रिये को शामिल किये जाने की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा कि ऐसा किया जाना इसलिये ज़रूरी है ताकि विज्ञान और टैक्नॉलॉजी सर्वजन के लिये हितकारी साबित हो.
टिकाऊ विकास लक्ष्यों सहित, टिकाऊ विकास के लिये 2030 एजेण्डा की प्राप्ति के लिये, विज्ञान और लैंगिक समता, दोनों ही बहुत अहम हैं.
फिर भी, महिलाओं और लड़कियों को विज्ञान में प्रेरित व प्रोत्साहित करने के, दशकों के प्रयासों के बावजूद, महिलाएँ और लड़कियाँ अब भी पूर्ण भागीदारी से दूर हैं.
यूएन प्रमुख ने कहा, “हम कर सकते हैं – हमें कार्रवाई करनी ही होगी.”
उन्होंने ऐसी नीतियों की पुकार लगाई जिनकी बदौलत, कक्षाएँ टैक्नॉलॉजी, भौतिक विज्ञान, इन्जीनियरिंग और गणित जैसे विषयों का अध्ययन करने वाली लड़कियों से भर जाएँ.
उन्होंने साथ ही ऐसे लक्षित उपाय करने का भी आहवान किया जिनके तहत, महिलाओं को प्रयोगशालाओं, शोध संस्थानों और विश्व विद्यालयों में आगे बढ़ने व नेतृत्व करने के अवसर आसान हों.
एंतोनियो गुटेरेश ने ज़ोर देकर यह भी कहा कि विज्ञान में महिलाओं के बारे में भेदभावपूर्ण और दकियानूसी नज़रियों को ख़त्म करने के लिये पक्के इरादे की ज़रूरत है.
इसमें अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं के लिये सम्भावनाओं का विस्तार करने की ज़रूरत भी शामिल है.
ये सब, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के अति महत्वपूर्ण क्षेत्र में बहुत अहम है. ये कम्प्यूटर विज्ञान की एक विशाल दायरे वाली ऐसी शाखा है जो दैनिक जीवन में हर जगह मौजूद है – विमान उड़ानों के टिकट ख़रीदने से लेकर, क़र्ज़ की अर्ज़ी देने और कैंसर की जाँच कराने तक.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “कृत्रिम बुद्धिमत्ता में काम करने वाली महिलाओं की कम संख्या, और लैंगिक पूर्वाग्रह से ग्रसित ऐसे ऐल्गोरिदम के बीच एक सीधा सम्बन्ध है जो पुरुषों को मानक समझता है और महिलाओं को अपवाद.”
“हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास में और ज़्यादा महिलाओं की मौजूदगी व सक्रियता देखना चाहते हैं ताकि यह टैक्नॉलॉजी सभी का हित साध सके और लैंगिक समता के लिये काम कर सके.”
संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले और यूएन वीमैन संस्था की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने एक संयुक्त सन्देश में, वर्ष 2021 की उस यूनेस्को विज्ञान रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें व्यवस्थागत विषमता की तरफ़ ध्यान दिलाया गया है.
उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि शिक्षण व अकादमी क्षेत्र में वरिष्ठ वैज्ञानिकों में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है, और पुरुषों की तुलना में, महिलाओं को शोध के लिये कम धन मिलता है, व उनकी प्रोन्नति (Promotion) के भी बहुत कम अवसर होते हैं.
निजी क्षेत्र में, कम्पनियों के नेतृत्व पदों पर कम महिलाएँ हैं और टैक्नॉलॉजी उद्योगों में भी तकनीकी भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या कम है.
इन यूएन महिला पदाधिकारियों का कहना है, “कामकाज के स्थलों पर समान अवसरों के अभाव के कारण, महिलाएँ शोध पेशों से बाहर हो रही हैं.”
उन्होंने “समता का सिद्धान्त” लागू करने का आग्रह किया ताकि विज्ञान महिलाओं के लिये भी हितकारी साबित हो, क्योंकि विज्ञान, अक्सर महिलाओं के ख़िलाफ़ भी काम करता है.
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में, पीढ़ियों तक एक साथ काम करने से, सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है, मसलन शिक्षा क्षेत्र में लैंगिक रूढ़िवादी नज़रियों को ख़त्म करके, और कामकाजी बल में, महिला वैज्ञानिकों को आकर्षित करने और उन्हें सहयोग देने वाली नीतियाँ लागू करके.
इन पदाधिकारियों का कहना है, “हमें एक ज़्यादा समावेशी, रूपान्तरकारी और जवाबदेह विज्ञान व टैक्नॉलॉजी पारिस्थितिकी का निर्माण करने की तत्काल ज़रूरत है, जो पूर्वाग्रहों व भेदभावों से मुक्त हो... जिनके ज़रिये टिकाऊ विकास लक्ष्यों को बढ़ावा दिया जाए और हम सभी को प्रभावित करने वाली चुनौतियों का सामना किया जाए.”
यूएन महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने, इस दिवस पर अपने सन्देश में कहा कि उन्होंने कोविड-19 के फैलाव के दौरान, इस महामारी का मुक़ाबला करने के विभिन्न स्तरों में, महिला वैज्ञानिकों की अति महत्वपूर्ण भूमिका उजागर होते हुए देखी है.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 ऐसे समाधानों के लिये एक सटीक अवसर के रूप में भुनाया जा सकता है जिसके ज़रिये STEM विषयों में, महिलाओं और लड़कियों के ज़्यादा समावेश को बढ़ावा दिया जा सके.