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भारत: खेत से बाज़ार तक, महिला किसानों का नेतृत्व

कृष्णादत्तपुर गाँव में महिलाओं के नेतृत्व वाला किसान उत्पादक समूह.
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कृष्णादत्तपुर गाँव में महिलाओं के नेतृत्व वाला किसान उत्पादक समूह.

भारत: खेत से बाज़ार तक, महिला किसानों का नेतृत्व

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने वर्ष 2020 में, उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (UPSRLM) के साथ साझेदारी में, कृषक परिवारों की महिलाओं को अपनी फ़सलें, खेत से बाज़ार तक पहुँचाने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिये, एक परियोजना शुरू की थी. परिणामस्वरूप, ये ग्रामीण महिलाएँ, आज न केवल रूढ़ियाँ तोड़कर कृषि आपूर्ति श्रृँखला में बढ़-चढ़कर आगे आई हैं, बल्कि इससे उनकी आमदनी भी बढ़ी है.

भारत के सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश के छोटे-छोटे गाँवों में एक क्रान्ति पनप रही है. हालाँकि कोविड-19 महामारी ने ग्रामीणों की बचत में भी सेन्ध लगा दी और कृषि आय भी कम हो गई है, लेकिन उत्तर प्रदेश के अन्दरूनी इलाक़ों में महिलाओं ने कृषि उपज की बिक्री में असमानताओं से लड़ने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. वे अब बिचौलियों को किनारे करके, अपनी फ़सलें सीधे प्रसंस्करण मिलों को बेच रही हैं.

प्रदेश की एक प्राचीन नगरी वाराणसी के निकट स्थित दीपापुर गाँव की सिन्धु सिंह, किसानों को लगभग 88 टन कतरनी धान (चावल की एक प्रकार की सुगन्धित क़िस्म), एक ऐसे ख़रीद केन्द्र को बेचने के लिये मना रही है, जिसका प्रबन्धन वो ख़ुद करती हैं.

सिन्धु बताती हैं, “कोविड-19 ने, न केवल लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है, बल्कि छोटे किसानों की आमदनी पर भी बुरा असर डाला है. इससे, मुझ जैसे छोटे किसान परिवारों के लिये बुवाई, कटाई से लेकर उपज बेचने तक सब कुछ अत्यधिक कठिन हो गया है.”

सिंधु सिंह जैसी महिला किसान, कृषि उपज के बेहतर दाम पाने के लिये, सामूहिक रूप से काम कर रही हैं.
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सिंधु सिंह जैसी महिला किसान, कृषि उपज के बेहतर दाम पाने के लिये, सामूहिक रूप से काम कर रही हैं.

कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष के दौरान, जहाँ कृषि उत्पादन में वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये ख़ुशी का सबब थी, वहीं दूसरी लहर ने इस क्षेत्र को भी तबाह कर दिया. यह महामारी, जैसे ही देश के ग्रामीण हिस्सों में फैली, परिणामस्वरूप हुई तालाबन्दी से कृषि आपूर्ति श्रृँखला भी प्रभावित हुई और किसान, विशेष रूप से छोटे किसान मुश्किल में पड़ गए.

उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (UPSRLM) ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के साथ साझेदारी में कृषक परिवारों की महिलाओं को सामूहिक रूप से संगठित करने और उन्हें खेत से बाज़ार तक कुशल आपूर्ति श्रृँखला विकसित करने के लिये, जुलाई 2020 में एक परियोजना शुरू की. मार्च 2021 तक चली यह परियोजना, कोविड-19 की एक बड़ी सामाजिक-आर्थिक सुधार पहल का हिस्सा थी, जिसका उद्देश्य महिलाओं को कृषि-व्यवसाय उद्योग में सबसे आगे लाना था.

सिन्धु जैसी महिलाएँ अब शीतला माता प्रेरणा उत्पादक समूह के - महिलाओं के नेतृत्व में प्रबन्धित एक ख़रीद केन्द्र में काम करती हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्वी छह ज़िलों के बारह विकास खण्डों में ऐसे कई समूह काम कर रहे हैं.

परम्परागत रूप से, महिलाओं को कृषि में निराई, बुवाई, रोपाई और कटाई जैसे काम सौंपे जाते थे. उत्पाद बेचना घर के पुरुष सदस्य का अधिकार होता था. वे पशुपालन जैसी सहायक गतिविधियों की देखभाल में भी शामिल थे. लेकिन अब यह सब बदल रहा है.

‘आर्य कोलैटरल वेयरहाउसिंग सर्विसेज’ के सहयोग से आयोजित यह कार्यक्रम, ग्रामीण महिलाओं को कृषि-व्यवसाय मॉडल पर शिक्षित करके, उनकी प्रबन्धन क्षमताओं का निर्माण करता है, और नई आजीविकाओं में प्रशिक्षित करता है - जैसे कि महिला सोर्सिंग प्रबन्धक और महिला व्यवसाय प्रबन्धक जैसी भूमिकाएँ.

इसके तहत, महिला सोर्सिंग प्रबन्धकों के लिये 10 दिवसीय प्रशिक्षण सत्र में प्रतिभागियों ने, एकत्रीकरण, गुणवत्ता परीक्षण, मूल्य खोज, रसद, और ख़रीदारों के साथ समन्वय के लिये किसानों को जुटाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया. ये प्रशिक्षण कार्यक्रम, ख़ासतौर पर बुनियादी शिक्षा प्राप्त ग्रामीण महिलाओं को तेज़ी से सिखाने हेतु विकसित किये गए थे.

चन्द्रावती देवी, अपने गाँव के कृषि समूह में शामिल होने से पहले अपने घर पर गायों की देखभाल करती थीं.
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चन्द्रावती देवी, अपने गाँव के कृषि समूह में शामिल होने से पहले अपने घर पर गायों की देखभाल करती थीं.

महिलाएँ अब, ख़रीद और इन्वेण्ट्री प्रबन्धन से सम्बन्धित सभी गतिविधियों जैसे ग्रेडिंग, सॉर्टिंग, तौल, भण्डारण, लोडिंग, अनलोडिंग, चालान और समन्वय रसद को प्रसंस्करण मिलों तक उत्पाद भेजने की ज़िम्मेदारी सम्भालती हैं.

सिन्धु कहती हैं, “पहले, बिचौलियों से किसानों को धान का दाम 12-13 रुपये किलो की दर से ज़्यादा नहीं मिलता था, लेकिन जब से हमने किसानों को साढ़े 14 रुपये किलो दाम देना शुरू किया है, बिचौलियों ने भी ख़रीद के दाम बढ़ा दिये हैं. इससे क्षेत्र के धान किसानों को काफ़ी मदद मिली है. हम पहले ही 25 मीट्रिक टन धान के साथ एक ट्रक भेज चुके हैं और अब अगला ट्रक भेजने की तैयारी है, और उसके बाद कई अन्य ट्रक भेजे जाएंगे.”

UNDP-UPSRLM साझेदारी के हिस्से के रूप में, उत्तर प्रदेश के छह ज़िलों (वाराणसी, चन्दौली, मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, गोरखपुर, देवरिया) में महिला सोर्सिंग प्रबन्धकों के लिये, 200 से अधिक नई आजीविकाएँ निर्मित की गईं. इससे 120 उत्पादक समूहों और दो महिला-स्वामित्व वाली किसान-उत्पादक कम्पनियों को मदद दी गई, जो 4000 छोटे महिला किसानों से जुड़े थे. गाँवों में ही ख़रीद केन्द्र बनाए गए, जिससे महिला सोर्सिंग प्रबन्धकों को बाज़ार की ज़रूरतों को समझने में मदद मिली.

मामूली शुरुआत के बावजूद, इन ज़िलों में महिला उत्पादक समूह दिसम्बर 2020 और जनवरी 2021 के बीच ख़रीदारों को 93 मीट्रिक टन कतरनी धान बेचने में सक्षम हुए. इससे उन्हें धान की इस क़िस्म के लिये मौजूदा बाज़ार मूल्य से कम से कम 20% अधिक कमाने में मदद मिली है. प्रक्रियात्मक अड़चनों को दूर करने और समुदाय के साथ विश्वास स्थापित करने के लिये, किसानों को उनकी उपज के लिये अग्रिम भुगतान किया गया, जो सामुदायिक सम्बन्ध बनाने में अहम था. इस प्रक्रिया को, एक कृषि-तकनीक मंच - www.a2zgodaam.com ने सक्षम किया था.

देवरिया के चरियाओ खस गाँव की रीना सिंह को अक्सर महिलाओं को एकजुट करते देखा जा सकता है. अब वो महिला किसानों को एक उत्पादक संगठन स्थापित करने में भी मदद कर रही हैं. वो बताती हैं, “मुझे लगता है कि यह उचित है कि किसानों को उनकी फ़सल पर लाभ का अधिकतम हिस्सा मिले. मैं अपने गाँव की महिलाओं के साथ, उसी दिशा में काम कर रही हूँ.”

धनापुर गाँव में ख़रीद के आँकड़ों का मिलान करती महिला किसान
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धनापुर गाँव में ख़रीद के आँकड़ों का मिलान करती महिला किसान

यह पहल दर्शाती है कि सही कौशल प्रशिक्षण के साथ, महिलाएँ पारम्परिक रूप से पुरुषों को सौंपे गए कार्य कर सकती हैं. साथ ही, अगर घर के पुरुषों को साथ लेकर चला जाए, तो पितृसत्तात्मक समाजों में भी, ग़ैर-पारम्परिक भूमिकाओं में महिलाओं को स्वीकार किया जा सकता है.

महिलाओं के नेतृत्व वाली इस कृषि आपूर्ति श्रृँखला मॉडल में भारत में, 11 करोड़ 87 लाख से अधिक किसानों को प्रभावित करने की क्षमता है (2011 की जनगणना के अनुसार किसानों की संख्या).

उत्पादन से बाज़ार-उन्मुख भूमिकाओं में महिलाओं को सक्षम बनाने से, संयुक्त राष्ट्र के कई सतत विकास लक्ष्यों 2030 को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जो लैंगिक समानता तक सीमित नहीं हैं.

कोविड महामारी से भारत की आर्थिक वृद्धि काफ़ी धीमी हो गई है. जबकि हम अब धीरे-धीरे आर्थिक सुधार की राह पर हैं, महिलाओं को कृषि-व्यवसाय के केन्द्र पर रखकर, इस पुनर्बहाली को तेज़, निष्पक्ष और अधिक समावेशी बनाने में मदद मिल सकती है.

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ है