वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

ऑनलाइन माध्यमों पर बच्चों को डराए-धमकाए जाने पर चिन्ता

ग्वाटेमाला में दो बच्चे बाहर खेल रहे हैं, और उनके माता-पिता ऑनलाइन सुरक्षा के विषय में एक वर्कशॉप में हिस्सा ले रहे हैं.
© UNICEF/Patricia Willocq
ग्वाटेमाला में दो बच्चे बाहर खेल रहे हैं, और उनके माता-पिता ऑनलाइन सुरक्षा के विषय में एक वर्कशॉप में हिस्सा ले रहे हैं.

ऑनलाइन माध्यमों पर बच्चों को डराए-धमकाए जाने पर चिन्ता

एसडीजी

अन्तरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा दो सोशल मीडिया मंचों पर कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, इण्टरनेट के इस्तेमाल के दौरान बच्चों को डराए-धमकाए जाने (cyberbullying) के मामलों और उनकी ऑनलाइन सुरक्षा के सम्बन्ध में चिन्ताएँ बढ़ी हैं.

पहले से कहीं अधिक संख्या में बच्चे और युवा, ऑनलाइन माध्यमों पर समय बिता रहे हैं.

यूएन एजेंसी ने इस वर्ष 8 फ़रवरी को ‘सुरक्षित इण्टरनेट दिवस’ से पहले, ट्विटर और लिन्कड-इन पर एक सर्वे के ज़रिये अपने फॉलोअर्स से यह जानना चाहा कि ऑनलाइन माध्यमों पर बच्चों की सक्रियता के सम्बन्ध में उनकी क्या चिन्ताएँ हैं. 

Tweet URL

उनसे ऑनलाइन डराए - धमकाए जाने (cyberbullying), डेटा संरक्षण में कमियों, और बच्चों के ऑनलाइन शोषण से जुड़े भय व आशंकाओं को क्रमानुसार रखने के लिये भी कहा गया.

सर्वेक्षण में लगभग 40 फ़ीसदी लोगों ने साइबर बुलीइंग को अपनी प्रमुख चिन्ता माना है, जबकि अन्य दो विकल्पों को क्रमश: 27 प्रतिशत व 26 प्रतिशत ने चुनौती क़रार दिया है.

युवाओं की ऑनलाइन मौजूदगी

सर्वेक्षण के प्रतिभागियों ने उन भय व आशंकाओं का भी उल्लेख किया, जिन्हें सर्वे में जगह नहीं दी गई थी.

जैसे कि स्क्रीन पर अत्यधिक समय बिताने में निहित जोखिम, या फिर ऑनलाइन ख़तरों के प्रति जानकारी देने के तरीक़ों पर बच्चों में जागरूकता का स्तर. 

यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि साइबर बुलीइंग का शीर्ष चिन्ता के रूप में उभरना, चौंका देने वाली बात इसलिये नहीं है, चूँकि इण्टरनैट अब जीवन के हर आयाम का हिस्सा है.

यूएन एजेंसी के मुताबिक़, युवजन अन्य आबादी समूहों की तुलना में, इण्टरनैट पर कहीं अधिक समय बिताते हैं. 

15 से 24 वर्ष आयु वर्ग में, इण्टरनैट का इस्तेमाल कर रहे लोगों की संख्या 71 फ़ीसदी है, जबिक अन्य आयु समूहों के लिये यह आँकड़ा केवल 57 प्रतिशत ही है.

समय के साथ, इण्टरनैट में भी बदलाव आया है और नए ख़तरे उभरे हैं, जिससे बच्चों और युवजन की ऑनलाइन सुरक्षा, पहले से कहीं ज़्यादा अहम हो गई है.

विषाक्त भाषा का प्रयोग चुनौती

यूएन एजेंसी ने ध्यान दिलाया कि ऑनलाइन डराए -धमकाए जाने की समस्या ने गीतांजलि राव को प्रेरित किया, जिन्होंने इससे निपटने के लिये टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल किया है.

16 वर्षीय गीतांजलि राव ने Kindly नामक एक ओपन सोर्स API (application programming interface) तैयार किया.

इसमें मशीन लर्निंग ऐल्गोरिथम के सहारे, लिखित सन्देशों, ईमेल, या सोशल मीडिया पोस्ट भेजे जाने से पहले ही, विषाक्त भाषा के इस्तेमाल को ढूँढा जा सकता है.

बच्चों को अपने सन्देश भेजने से पहले ही फ़ीडबैक मिल जाता है जिससे उनके पास अपने लिखे में बदलाव या पुनर्विचार करने का अवसर होता है.

सुरक्षित इण्टरनेट

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) और गीतांजलि राव के बीच रचनात्मक सहयोग के फलस्वरूप ही Kindly को डिजिटल सार्वजनिक भलाई के रूप में आकार देने में मदद मिली है.

अन्तरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ के अनेक कार्यक्रमों के ज़रिये साइबर बुलीइंग से निपटने के प्रयास किये जाते हैं. इनमें छोटे बच्चों के लिये एक गेम, और बच्चों, युवजन, अभिभावकों, देखभालकर्मियों व शिक्षाविदों को प्रशिक्षण दिया जाता है.

यूनीसेफ़ ने एक ऑनलाइन संसाधन भी तैयार किया है, जिसके ज़रिये साइबर बुलीइंग विषय पर अन्तरराष्ट्रीय विशेषज्ञों, बाल संरक्षण जानकारों को एक साथ लाया गया है.

इस क्रम में, प्रश्नों के उत्तर देने और परामर्श मुहैया कराने के लिये फ़ेसबुक, इन्स्टाग्राम, टिकटॉक और ट्विटर से भी हाथ मिलाया गया है.