'प्रतिबन्ध हैं अहम औज़ार', मानवीय सहायता पर उनके असर की रोकथाम पर बल

संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों ने सोमवार को सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को सम्बोधित करते हुए कहा कि पिछले कुछ दशकों में प्रतिबन्ध व्यवस्थाओं में बदलाव आया है और इन औज़ारों के इस्तेमाल से आम नागरिकों पर होने वाले नकारात्मक प्रभावों में कमी लाने के लिये प्रयासों की आवश्यकता है.
सोमवार को सुरक्षा परिषद में प्रतिबन्धों और मानवीय राहत सन्दर्भ में उनके अनपेक्षित नतीजों पर एक चर्चा आयोजित की गई.
यूएन में राजनैतिक एवं शान्तिनिर्माण मामलों की प्रमुख रोज़मैरी डीकार्लो ने बताया कि दुनिया भर में सुरक्षा परिषद द्वारा स्थापित 14 प्रतिबन्ध व्यवस्थाएँ लागू हैं.
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उन्होंने कहा कि इन पाबन्दी उपायों के ज़रिये, लीबिया, माली, दक्षिण सूडान और यमन में हिंसक टकराव के समाधान के लिये प्रयासों को समर्थन दिया गया है.
गिनी बिसाउ में इन प्रतिबन्धों का उद्देश्य असंवैधानिक ढँग से सरकार में बदलाव को रोकना है जबकि मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य और सोमालिया में प्राकृतिक संसाधनों के अवैध दोहन और सशस्त्र गुटों की गतिविधियों में उनके इस्तेमाल को रोकना है.
इसके अलावा, उत्तर कोरिया (Democratic People’s Republic of Korea/डीपीआरके) की प्रसार गतिविधियों और इस्लामी आतंकी गुटों आइसिल, अल-क़ायदा और उनसे जुड़े संगठनों से उपजने वाले ख़तरों में कमी लाना है.
यूएन की अवर महासचिव रोज़मैरी डीकार्लो ने सचेत किया कि ये पाबन्दियाँ, अपने आप में कोई मंज़िल नहीं हैं.
“कारगर होने के लिये, प्रतिबन्धों को एक व्यापक राजनैतिक रणनीति का हिस्सा होना चाहिये, प्रत्यक्ष राजनैतिक सम्वाद, मध्यस्थता, शान्तिरक्षा और विशेष राजनैतिक मिशन के साथ तालमेल बैठाते हुए.”
हाल के वर्षों में, सुरक्षा परिषद ने इन उपायों से नागरिक आबादी और अन्य पक्षों पर अवांछित दुष्परिणामों को टालने के प्रयास किये हैं.
उदाहरण के लिये, हथियार प्रतिबन्धों के मामलों में, मानवीय राहत अभियान के लिये ग़ैर-घातक उपकरणों के आयात में नियमित रूप से छूट प्रदान की जाती है.
यात्रा प्रतिबन्धों में, चिकित्वा व धार्मिक कारणों या फिर शान्ति प्रक्रियाओं में भागीदारी के नज़रिये से छूट प्रदान की जाती है.
ज़ब्त की गई सम्पत्तियों का इस्तेमाल भोजन, उपयोगी सेवाओं और दवाओं के लिये भुगतान में किया जा सकता है.
सुरक्षा परिषद ने सोमालिया और अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय राहत के लिये छूट का प्रावधान किया है, और लीबिया, यमन और डीपीआरके में भी मामलों के आधार पर विचार किया जाता है.
बताया गया है कि ज़मीनी स्तर पर आवश्यकताओं के अनुरूप, प्रतिबन्धों में निरन्तर बदलाव किया जाता है.
इस क्रम में, ऐरीट्रिया के विरुद्ध लगाये गए प्रतिबन्धों को समाप्त किया गया है और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में हथियार पाबन्दियों की शर्तों में कमी लाई गई है.
यूएन की वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, इन बदलावों की वजह से पिछले एक दशक में, केवल एक सदस्य देश ने ही परिषद द्वारा लगाई गई पाबन्दियों के कारण, आर्थिक मुश्किलों का सामना करने की बात कही है.
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में प्रतिबन्ध, पहले से कहीं अधिक लक्षित ढँग से इस्तेमाल किये जाते हैं, और सूची में 50 से अधिक व्यक्ति व संगठन हैं.
उदाहरणस्वरूप, यमन के सना में आपराधिक जाँच विभाग के निदेशक सुल्तान ज़बिन पर, हिंसक संघर्ष के दौरान यातना व यौन हिंसा के मामले में प्रतिबन्ध लगाये गए.
वहीं, माली के अशान्त किडाल क्षेत्र में मानवीय आयोग के स्वयंभू प्रमुख, अहमद अग अलबाखर पर मानवीय सहायता वितरण के कार्य में बाधा पहुंचाने की वजह से प्रतिबन्ध लगाए गए.
अवर महासचिव डीकार्लो ने कहा कि पाबन्दियों का ऐसे कृत्यों के लिये इस्तेमाल, हाल ही में शुरू किया गया है, और यह स्वागतयोग्य है व स्पष्ट संकेत देता है.
राजनैतिक मामलों की प्रमुख ने बताया कि व्यापक प्रतिबन्धों से लक्षित पाबन्दियों की ओर बढ़ा जाना, एक विशाल बदलाव है, मगर अब भी कुछ चिन्ताएँ बरक़रार हैं.
उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में बैंकिंग प्रक्रिया के ध्वस्त होने के बाद, डीपीआरके में मानवीय आधार पर रक़म के हस्ताण्तरण में अब भी मुश्किलें पेश आती हैं.
रोज़मैरी डीकार्लो ने अफ़ग़ानिस्तान में ज़रूरतमन्दों के लिये प्रतिबन्धों में मानवीय आधार पर छूट का प्रावधान करने वाले प्रस्ताव 2615 का उल्लेख किया और कहा कि और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है.
मानवीय राहत मामलों के प्रमुख मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने भी अफ़ग़ानिस्तान के लिये दी गई छूट के प्रावधान का ज़िक्र करते हुए कहा कि राहत अभियानों को जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिये.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि पाबन्दियों को स्मार्ट व लक्षित ढँग से लागू किया जा सकता है, मगर, उनका अनुपालन, संयुक्त राष्ट्र व साझीदार संगठनों के दैनिक कामकाज का हिस्सा है.
“उनसे हमारे लॉजिस्टिक, हमारे वित्तीय संसाधनों, और वितरण की हमारी क्षमता पर असर हो सकता है. उनसे मानवीय परियोजनाओं में देरी हो सकती है या फिर वे ठप हो सकती हैं.”
यूएन के वरिष्ठ वरिष्ठ अधिकारी ने आगाह किया कि कुछ मामलों में इस नागरिक समाज के एक बड़े हिस्से के लिये ख़तरा पैदा हो सकता है.
इसके मद्देनज़र, उन्होंने सुरक्षा परिषद से प्रतिबन्ध व्यवस्थाओं में मानवीय सहायता आवश्यकताओं का आरम्भ से ही ध्यान रखे जाने का आग्रह किया है.