कोविड काल में 'टैलीवर्किंग': नव सामान्य के लिये, जोखिम, लाभ और क़दम

संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों ने बुधवार को कहा है कि क़रीब दो वर्ष पहले फैलनी शुरू हुई कोरोनावायरस महामारी ने दुनिया भर में दफ़्तरी कामकाज में भारी व्यवधान डाला और उसी के परिणामस्वरूप दफ़्तरों से दूरस्थ स्थानों और घरों से कामकाज यानि ‘टैलीवर्किंग’ का चलन शुरू होने के साथ ही, कामगारों के स्वास्थ्य व अन्य तरह की बेहतरी के लिये महत्वपूर्ण परिवर्तनों की ज़रूरत है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बुधवार को, स्वस्थ और सुरक्षित ‘टैलीवर्किंग’ पर एक तकनीकी विवरण जारी किया है जिसमें दफ़्तरों से दूरस्थ स्थानों और घरों से काम करने के लाभों और जोखिमों का ख़ाका पेश किया गया है.
As telework is likely to become more common than in the period previous to the #COVID19 pandemic, social partners will need to work together to create decent telework.🖥️ Check out the new @ilo and @WHO brief on healthy and safe teleworking ⤵️https://t.co/eB9Ib2nY5o
ilo
साथ ही, इस बड़े बदलाव और मौजूदा डिजिटल परिवर्तन को समाहित करने के लिये उपाय किये जाने की ज़रूरत को भी रेखांकित किया गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन में पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉक्टर मारिया नीरा का कहना है, “महामारी ने ‘टैलीवर्किंग’ में बहुत तेज़ी से उछाल ला दिया, और बहुत से कामगारों के लिये रातों-रात काम करने का तरीक़ा ही बदल डाला.”
रिपोर्ट कहती है कि ‘टैलीवर्किंग’ के फ़ायदों में – कामकाज व पारिवारिक जीवन में बेहतर सन्तुलन, कामकाज के लचीले घण्टों का विकल्प और ज़्यादा शारीरिक सक्रियता; यातायात में लगने वाला कम समय; और तमाम शहरी इलाक़ों में वायु प्रदूषण में कटौती, प्रमुख हैं.
इन सभी फ़ायदों के फलस्वरूप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में बेहतरी हो सकती है और सामाजिक रहन-सहन भी अच्छा हो सकता है.
उससे भी ज़्यादा अच्छी बात ये है कि ‘टैलीवर्किंग’ की बदौलत, बहुत सी कम्पनियों के लिये, कम लागत में, ज़्यादा अच्छी उत्पादकता वाले नतीजे मिल सकते हैं.
रिपोर्ट ने अलबत्ता आगाह भी किया है कि उपयुक्त नियोजन, संगठन व स्वास्थ्य और सुरक्षा समर्थन के अभाव में, ‘टैलीवर्किंग’, लोगों में अलगाव, थकान, अवसाद, आँखों पर दबाव, शराब का बढ़ा उपभोग और अस्वस्थ वज़न बढ़ने जैसे लक्षण भी पैदा कर सकती है.
डॉक्टर मारिया नीरा ने कहा कि ऊँट किस करवट बैठेगा, ये इस पर निर्भर करता है कि सरकारें, नियोक्ता और कामकाज करने वाले लोग, समाधान निकालने के लिये एक साथ मिलकर काम करते हैं या नहीं.
साथ ही, ये भी देखना होगा कि कामगारों और कामकाज, दोनों को फ़ायदा पहुँचाने वाली स्वास्थ्य सेवाएँ भी मुहैया कराई जाती हैं या नहीं.
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन में शासन मामलों की निदेशक वीरा पैक्वेट-पेरडिगाओ का कहना है कि कम्पनियों व कर्मचारियों ने, घरों से और दफ़्तर-घर से काम करने के मिश्रण विकल्पों के फ़ायदे देख लिये हैं, और ये भी विदित है कि कामकाज के ये नए तरीक़े, अब ऐसे ही चलेंगे और महामारी के बाद तो इस चलन में और बढ़ोत्तरी होने की सम्भावना है.
उनका कहना है कि अब जबकि सभी लोग मौजूदा अस्थाई दौर से, एक नव सामान्य दौर में दाख़िल होने की प्रक्रिया में हैं, तो हमारे पास ऐसी हितकारी नीतियाँ, नियम और क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का मौक़ा है, जो टैलीवर्किंग करने वाले करोड़ों लोगों के लिये, स्वस्थ, प्रसन्न, उत्पादक, गरिमामय व सुखद परिस्थितियों में कामकाज सुनिश्चित कर सकें.
रिपोर्ट कहती है कि कामकाजी स्वास्थ्य सेवाएँ टैलीवर्किंग करने वालों को, समुचित कार्य स्थल, मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक समर्थन व सहायता मुहैया कराएँ, जिनके लिये डिजिटल टैलीहैल्थ प्रोद्योगिकियों का भी सहारा लिया जा सकता है.
उदाहरण के लिये, नियोक्ताओं को ऐसे उपाय लागू करने होंगे जिनके ज़रिये कर्मचारियों को कामकाज करने के लिये समुचित व उपयुक्त उपकरण, प्रासंगिक जानकारी और प्रशिक्षण उपलब्ध हों, ताकि टैलीवर्किंग का मनोवैज्ञानिक प्रभाव कम किया जा सके; और कामकाज से दूर हटने – “right to disconnect” का भी अधिकार देना होगा.