आर्द्रभूमि: जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध जीवन रेखा

चीन में आर्द्रभूमि का एक दृश्य
UNDP China
चीन में आर्द्रभूमि का एक दृश्य

आर्द्रभूमि: जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध जीवन रेखा

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र, बुधवार 2 फ़रवरी को पहला विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetlands Day) मना रहा है, जिस मौक़े पर ये स्वीकार किया गया है कि ये भंगुर पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, ताज़ा पानी की उपलब्धता और आर्थिक सहनशीलता में महत्वपूर्ण योगदान करता है. 

आर्द्रभूमि की व्यापक परिभाषा में झीलें और नदियाँ, भूमिगत जलवाही स्तर, दलदल, प्रवाल भित्तियाँ और बहुत से अन्य पारिस्थितिकी तंत्र शामिल तो हैं ही, साथ ही, मानव निर्मित मछली तालाब और जल भण्डार भी इसका हिस्सा हैं.

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आर्द्रभूमि, अलबत्ता, पृथ्वी की सतह का केवल लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा हैं, जबकि तमाम पौधों और पशु प्रजातियों का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा या तो उसमें बसते हैं या वहाँ प्रजनन करते हैं.

आर्द्रभूमियाँ मानव रहन – सहन, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिये भी अहम हैं. 

दुनिया भर में एक अरब से ज़्यादा लोग, अपनी आजीविका के लिये, आर्द्रभूमियों पर निर्भर हैं, यानि पृथ्वी पर रहने वाले हर आठ में से एक इनसान. 

वजूद से ज़्यादा लाभ

संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम – UNEP के अनुसार, ये पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु संकट का असर कम करने में, छुपे हुए हीरो की भूमिका निभाते हैं.

दरअसल, ये पारिस्थितिकी तंत्र, किसी अन्य ऐसे तंत्र की तुलना में, ज़्यादा कार्बन सोख़ते हैं. 

साथ ही, ये तंत्र अत्यधिक पानी को जज़्ब करते हैं जिससे बाढ़ों व सूखा को रोकने में मदद मिलती है, जो समुदायों को बदलती जलवायु के लिये समायोजित करने में बहुत मददगार हैं.

यूनेप में समुद्री और ताज़ा पानी मामलों की प्रधान संयोजक लैटीशिया कैरवल्हो के शब्दों में, स्वस्थ आर्द्रभूमि, दरअसल अपने वजूद की तुलना में कहीं ज़्यादा फ़ायदे पहुँचाते हैं.

आर्द्रभूमि की संरक्षा

प्रथम विश्व आर्द्रभूमि दिवस की मुख्य थीम है – इनसानों व प्रकृति के लिये आर्द्रभूमि कार्रवाई - Wetlands Action for People and Nature.

इस दिवस के ज़रिये, दुनिया की आर्द्रभूमियों की हिफ़ाज़त करने और उन्हें पूरी तरह लुप्त होने से बचाने के लिये, वित्तीय, मानवीय और राजनैतिक संसाधन निवेश करने की पुकार लगाई जा रही है.

साथ ही, जो पहले ही लुप्त हो गई हैं, उन्हें बहाल किये जाने की पुकार भी लगाई गई है. 

आर्द्रभूमियाँ, जंगलों की तुलना में, तीन गुना ज़्यादा तेज़ी से ग़ायब हो रही हैं और ये पृथ्वी पर सबसे ज़्यादा जोखिम का सामना कर रहा पारिस्थितिकी तंत्र है.

इसके लिये जो इनसानी गतिविधियाँ ज़िम्मेदार हैं, उनमें कृषि, निर्माण, प्रदूषण, अत्यधिक मछली शिकार और संसाधनों का अत्यधिक दोहन शामिल हैं. 

वर्ष 1700 तक मौजूद आर्द्रभूमि का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा, वर्ष 2000 तक लुप्त हो गया था. इनमें ज़्यादातर का नुक़सान विकास, खेतीबाड़ी या अन्य उत्पादक प्रयोगों के लिये हुआ.

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