वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
भारत के गुवाहाटी शहर में एक स्वास्थ्यकर्मी ऑक्सीजन सिलेण्डर ले जाता हुआ.

भारत में ऑक्सीजन संकट के दीर्घकालीन हल की मुहिम

© UNICEF/Biju Boro
भारत के गुवाहाटी शहर में एक स्वास्थ्यकर्मी ऑक्सीजन सिलेण्डर ले जाता हुआ.

भारत में ऑक्सीजन संकट के दीर्घकालीन हल की मुहिम

स्वास्थ्य

भारत में, 2021 के दौरान, अस्पतालों में भर्ती हुए कोविड-19 रोगियों की ख़ातिर ऑक्सीजन खोजने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे रिश्तेदारों के मार्मिक दृश्यों ने, दुनिया को इस गम्भीर व घातक बीमारी की भयावहता से रूबरू कराया. लेकिन यह पहली बार नहीं था जब देश के अस्पतालों ने इस जीवन-रक्षक गैस की कमी की समस्या का सामना किया हो. तो सवाल यह उठता है कि अगला बड़ा स्वास्थ्य संकट आने पर, क्या पर्याप्त आपूर्ति हो सकेगी.

मई 2021 में, भारत के अस्पताल चरमराने की स्थिति में थे. देश ने ख़ुद को वैश्विक कोविड-19 महामारी के केन्द्र में पाया, और सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी – उन गम्भीर रोगियों की चिकित्सा के लिये पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध कराना, जो बिना ऑक्सीजन साँस लेने में असमर्थ थे. ऑक्सीजन की मांग दस गुना तक बढ़ चुकी थी.

अप्रैल के अन्त तक, कोविड-19 संक्रमण के एक करोड़ 80 लाख मामले सामने आए थे, और 2 लाख से अधिक मौतें हुईं.

'भण्डार ख़त्म'

कुछ अस्पतालों ने "ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है" के संकेत छापे या प्रदर्शित किये, जबकि अन्य अस्पतालों ने मरीज़ों को इलाज के लिये अन्यत्र जाने को कहा.

समाचार संगठनों ने जैसे-जैसे ऑक्सीजन की कमी से मौत का शिकार होने वाले मरीज़ों के मामले रेखांकित किये, परिवार के सदस्यों ने मुद्दा अपने हाथों में लेने का फ़ैसला किया, और अपने प्रयजनों को बचाने के लिये ख़ुद ऑक्सीजन सिलेण्डरों की तलाश में निकल पड़े.

बहुत से पर्यवेक्षकों के लिये, यह संकट सरकारी योजना की कमी का संकेत थे, ख़ासतौर पर इसलिये क्योंकि यह पहली बार नहीं था जब स्वास्थ्य संकट के दौरान चिकित्सा ऑक्सीजन की कमी हुई थी - यहाँ तक कि वर्तमान महामारी के दौरान भी.

कुछ महीने पहले, सितम्बर 2020 में भी, देश में इसी तरह की स्थिति पैदा हुई थी: जैसे-जैसे मामले बढ़ते गए, मांग में आई तेज़ी के हिसाब से, ऑक्सीजन उत्पादन नहीं बढ़ पाया.
बहुत से लोगों ने याद दिलाया कि 2017 में ऑक्सीजन की कमी के कारण उत्तर प्रदेश के एक सरकारी अस्पताल में 70 बच्चों की मौत हो गई थी, जब एक आपूर्तिकर्ता ने अपनी रक़म का भुगतान नहीं होने पर ऑक्सीजन सिलेण्डरों की आपूर्ति बन्द कर दी थी.

भारत का विशाल आकार, और जिस तरह से इसका ऑक्सीजन उत्पादन उद्योग स्थापित किया गया है, उसे भी प्रमुख कारकों के रूप में पहचाना गया. भारत के बहुत कम अस्पतालों में ही ऑक्सीजन का उत्पादन करने की सुविधा है, ज़्यादातर अस्पताल निजी कम्पनियों की आपूर्ति पर ही निर्भर हैं.

ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र भारत के पूर्वी हिस्से में औद्योगिक क्षेत्र में केन्द्रित हैं. मतलब यह कि विशेष रूप से तरल ऑक्सीजन ले जाने के लिये तैयार किए गए क्रायोजेनिक ट्रकों को, क्षेत्रीय आपूर्तिकर्ताओं तक पहुँचने के लिये लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है. इसके बाद, अस्पतालों में आपूर्ति के लिये, गैस को ट्रकों से छोटे वाहनों में स्थानान्तरित किया जाता है.

भारत में दो कार्यकर्ता, साँस की बीमारियों के रोगियों के इलाज के लिये ऑक्सीजन सिलेण्डर लगा रहे हैं.
© UNICEF/Ronak Rami
भारत में दो कार्यकर्ता, साँस की बीमारियों के रोगियों के इलाज के लिये ऑक्सीजन सिलेण्डर लगा रहे हैं.

आपातकालीन उपाय

भारत सरकार, संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय सहायता संगठनों ने इस आपातस्थिति से निपटने के लिये, विभिन्न तरीक़ों से जवाबी कार्रवाई की.

विदेशों से तेज़ी के साथ, अतिरिक्त टैंकर हवाई मार्गों से मंगाए गए. तरल आर्गोन और नाइट्रोजन गैसों के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले टैंकरों को ऑक्सीजन परिवहन के लिये बदला गया, और रेलवे ने विशेष "ऑक्सीजन एक्सप्रेस" रेलगाड़ियाँ चलाने जैसे नए उपाय किये.

औद्योगिक ऑक्सीजन को इस्पात संयंत्रों से अस्पतालों की ओर मोड़ा गया और संकेन्द्रित ऑक्सीजन मुहैया कराने वाले उपकणों की ख़रीद और वितरण को तेज़ किया गया.

संयुक्त राष्ट्र ने आवश्यक उपकरण, जैसे कि कॉन्सन्ट्रेटर, वेण्टिलेटर, और ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले संयंत्रों का इन्तज़ाम करने के साथ-साथ, गम्भीर मामलों की संख्या को कम करने, टीकाकरण कार्यक्रमों में तेज़ी लाने और परीक्षण सुविधाओं में सुधार के अन्य उपाय लागू करने पर ध्यान केन्द्रित किया.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने, भारत में अन्य बीमारियों पर काम कर रहे 2 हज़ार 600 से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को महामारी से निपटने के लिये तैनात किया, और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के लगभग 820 कर्मचारियं ने क़रीब एक लाख 75 हज़ार कोविड केन्द्रों में, कोविड संक्रमण मामलों की निगरानी में स्थानीय अधिकारियों की मदद की.

स्थिर प्रवाह ज़रूरी

लेकिन ऐसे देश में जहाँ गैस के उत्पादन, भण्डारण और परिवहन की लागत, उत्पाद की लागत से अधिक है, गैस की मांग की अप्रत्याशित प्रकृति को देखते हुए, भारत को अगली ऑक्सीजन आपातस्थित के लिये कैसे तैयारी करनी चाहिये?

साथ ही, सवाल यह भी है कि बेहतर वितरण कैसे सुनिश्चित किया जाए, ताकि हर समय, जहाँ भी ज़रूरत हो, ऑक्सीजन उपलब्ध हो, और कोई भी इनसान इस जीवन रक्षक उत्पाद से वंचित न रहे?

ऐसे ही सवालों पर, विश्व बैंक द्वारा जनवरी में प्रकाशित एक ब्लॉग में स्वास्थ्य विशेषज्ञों, रमना गन्धम, राजाजी मेशराम और एण्ड्रयू सुनील राजकुमार ने ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है.

इन विशेषज्ञों ने भारत की केन्द्र सरकार के अधिकारियों व चार प्रदेशों- आंध्र प्रदेश, मेघालय, उत्तराखण्ड व पश्चिम बंगाल में, विश्व बैंक से तकनीकी सहायता के बाद, देश की चिकित्सा ऑक्सीजन नीति को मज़बूत करने के लिये विकल्पों की एक श्रृंखला पेश की.

उत्पादन में वृद्धि

भारत के मुम्बई शहर के गोरेगाँव इलाक़े में एक मरीज़, चिकित्सा मदद की प्रतीक्षा करते हुए. इस मरीज़ को कोविड-19 का संक्रमण होने की भी आशंका है. भारत में अप्रैल 2021 में महामारी की स्थिति भीषण हो गई.
© UNICEF/Vineeta Misra
भारत के मुम्बई शहर के गोरेगाँव इलाक़े में एक मरीज़, चिकित्सा मदद की प्रतीक्षा करते हुए. इस मरीज़ को कोविड-19 का संक्रमण होने की भी आशंका है. भारत में अप्रैल 2021 में महामारी की स्थिति भीषण हो गई.

उन्होंने चिकित्सा ऑक्सीजन के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण वृद्धि की सिफ़ारिश की है. हालाँकि इस पर पहले ही काम शुरू हो चुका है: सरकार ने, हर दिन 1750 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की उत्पादन क्षमता वाले एक हज़ार से अधिक नए संयंत्र लगाने के लिये धनराशि आबण्टित की है और क्षेत्रीय व निजी क्षेत्र के सहयोग से अतिरिक्त संयंत्र स्थापित किये गए हैं.

विशेषज्ञ उन अस्पतालों की मदद करने की भी सलाह देते हैं जो अपने संयंत्र बनाना चाहते हैं, जिससे वितरण की समस्या कम हो जाएगी. बिहार प्रदेश जैसे कुछ क्षेत्रों में, कम्पनियों को संयंत्र स्थापित करने के लिये रियायती दामों पर भूमि या आवश्यकता की वस्तुएँ, और कम ब्याज वित्त जैसे प्रोत्साहन दिये जा रहे हैं.

जब ये संयंत्र शुरू हो जाएंगे, तो अहम होगा कि इन्हें बनाए रखने में मदद मिले, क्योंकि अक्सर संसाधनों की कमी के कारण मुश्किलें पैदा हो जाती हैं. यही बात भण्डारण टैंकों और वितरण प्रणालियों के लिये भी कही जा सकती है, जैसे कि विशेष ट्रक इत्यादि. 

संयंत्रों को संचालित करने के लिये प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता होती है और भारत ने उनके संचालन और रख रखाव में सक्षम 8 हज़ार तकनीशियनों को प्रशिक्षित करने की एक पहल शुरू की है.

विशेषज्ञों ने पाया कि मई 2021 के संकट के दौरान, समस्या चिकित्सा ऑक्सीजन की कमी की नहीं थी, बल्कि समस्या यह थी कि ज़्यादातर ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र भारत के पूर्वी हिस्सा में स्थित थे, और मांग दस गुना बढ़ने पर वितरण प्रणाली इसे पूरा करने में अक्षम थी.

'अतिरिक्त भण्डारण’

इस मुद्दे का एक समाधान है, रणनैतिक स्थानों पर "बफ़र स्टोरेज" सुविधाओं का निर्माण, ताकि आपात स्थिति के दौरान ऑक्सीजन को और अधिक तेज़ी से पहुँचाया जा सके. पिछली लहर के बाद से, भारत सरकार, तकनीकी भागीदारों और निजी एजेंसियों ने, भविष्य में देश की ऑक्सीजन मांग का अनुमान लगाने के लिये मिलकर काम किया है.

उत्पादन, मांग और भण्डारण आवश्यकताओं की गहरी समझ विकसित करने के लिये कई पूर्वानुमान और मॉडलिंग तकनीकों का उपयोग किया गया है.

भारत के राज्यों को आपूर्ति श्रृंखला के विभिन्न बिन्दुओं पर ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने, खपत की निगरानी और मांग की भविष्यवाणी करने के लिये डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली स्थापित की गई है.

उत्तराखण्ड में, ऑक्सीजन सिलेण्डरों पर चिपकाए जाने वाले 30 हज़ार रेडियो-फ्रीक्वेंसी पहचान (RFID) टैग, चिकित्सा ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ताओं और अस्पतालों को वितरित किये गए हैं. 

दिल्ली में, मई 2021 की कोविड लहर के दौरान अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी का बुरा असर पड़ा था, वहाँ भी ट्रैकिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है.

आशा की जा रही है कि इन उपायों से, देश में अगली स्वास्थ्य आपातस्थिति के लिये तेज़ी से व प्रभावी ढंग से जवाबी कार्रवाई करने में मदद मिलेगी, कम मौतें होंगी, और एक साल से भी कम समय पहले सामने आए संकटपूर्ण, अराजक दृश्यों की पुनरावृत्ति नहीं होगी.

भारत को विश्व बैंक का समर्थन

  • विश्व बैंक समूह ने कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये, भारत के प्रयासों के समर्थन में अब तक तीन अरब डॉलर से अधिक की धनराशि प्रदान की है. इसके तहत, भारत सरकार के साथ मिलकर, राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर की बैंक परियोजनाओं के ज़रिये, ऑक्सीजन आपूर्ति प्रणालियों की समस्याओं को दूर करने के लिये काम चल रहा है.
  • दूसरी लहर के चरम पर, विश्व बैंक समूह ने वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं के साथ मिलकर, देश के लिये 29 हज़ार 600 उच्च गुणवत्ता वाले संकेन्द्रित ऑक्सीजन उपकरणों की तेज़ी से ख़रीद और वितरण की सुविधा हेतु काम किया. इसके अलावा, बैंक ने भारत के भीतर ऑक्सीजन से सम्बन्धित सिलेण्डर जैसी अन्य चीज़ें हासिल करने में भी सहायता की.
  • विश्व बैंक ने ग़ैर-सरकारी संगठन (NGO) - PATH के साथ साझेदारी में चार प्रदेशों - आंध्र प्रदेश, मेघालय, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल की ऑक्सीजन प्रणाली मज़बूत करने और क्षमता निर्माण के लिये, तकनीकी सहायता प्रदान की. साथ ही, भारत में चिकित्सा ऑक्सीजन सम्बन्धी प्रमुख परिवहन व तंत्र के मुद्दे सुलझाने में भी केन्द्र सरकार को सहयोग दिया.