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'बच्चों को शिक्षा हानि से बचाने के लिये, स्कूल खोले जाने ज़रूरी' - यूनीसेफ़

यूगाण्डा के एक स्कूल में, बच्चे, स्वच्छता बरतने के लिये, हाथ धोते हुए.
© UNICEF/Maria Wamala
यूगाण्डा के एक स्कूल में, बच्चे, स्वच्छता बरतने के लिये, हाथ धोते हुए.

'बच्चों को शिक्षा हानि से बचाने के लिये, स्कूल खोले जाने ज़रूरी' - यूनीसेफ़

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने कहा है कि कोविड-19 महामारी ने शिक्षा जगत पर विनाशकारी प्रभाव छोड़े हैं, और एक ऐसे संकट को और भी ज़्यादा उजागर कर दिया है जिसके बारे में, यह महामारी फैलने से पहले भी, व्यापक चिन्ताएँ व्याप्त थीं. यूनीसेफ़ में, शिक्षा मामलों के निदेशक रॉबर्ट जेनकिन्स ने, इन चिन्ताओं के बीच बदलाव की पुकार लगाई है कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था, करोड़ों लोगों की कसौटी पर नाकाम साबित हो रही है.

रॉबर्ट जेनकिन्स ने, 24 जनवरी को अन्तरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर, यूएन न्यूज़ के कॉनर लेनन के साथ एक विशेष बातचीत में याद दिलाया कि दुनिया भर में, स्कूल पूरी तरह और आंशिक रूप से बन्द होने के रूप में, एक बड़ा संकट अब भी मौजूद है. इस स्थिति से, इस समय, क़रीब साढ़े 63 करोड़, छात्र प्रभावित हैं इसलिये दुनिया इस संकट से अभी बाहर नहीं है.

उन्होंने कहा कि स्कूलों के पूर्ण या आंशिक रूप से बन्द होने की स्थिति ने, बच्चों पर शिक्षा प्राप्ति में हानि और अन्य तरह के जो प्रभाव छोड़े हैं, उनके बारे में ताज़ा जानकारियाँ मिल रही हैं. 

रॉबर्ट जेनकिन्स ने बताया कि कोरानावायरस महामारी शुरू होने से पहले, निम्न व मध्यम आय वाले देशों में, 10 वर्ष से कम उम्र के लगभग 53 प्रतिशत बच्चों को सही तरीक़े से, या असरदार तरीक़े से पढ़ना नहीं आता था और वो साक्षरता व संख्या कुशलता में, न्यूनतम निपुणता के मानक पूरे नहीं करते थे. अब ऐसे बच्चों की संख्या अनुमानतः 70 प्रतिशत है.

रॉबर्ट जेनकिन्स ने स्कूलों में कोविड-19 का संक्रमण ज़्यादा फैलने का बारे में, अभिभावकों व माता-पिता की चिन्ताओं के बारे में कहा कि स्कूल बन्द रहने से, बच्चों पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ता है. उनकी शिक्षा प्राप्ति में हानि होने के साथ-साथ, उनके मनो-सामाजिक व शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी पोषण सम्बन्धी ज़रूरतों पर भी असर पड़ता है. 

उनका कहना है कि अभी तक मिले मिले साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि स्कूलों में निजी मौजूदगी, समुदायों में, कोविड-19 का संक्रमण फैलने का मुख्य कारण नहीं है, और स्कूलों में रोकथाम उपाय बहुत कारगर साबित हुए हैं.

रोकथाम उपाय

भारत के एक स्कूल में, कोविड-19 महामारी के दौरान शारीरिक दूरी पर अमल
© UNICEF/Srikanth Kolari
भारत के एक स्कूल में, कोविड-19 महामारी के दौरान शारीरिक दूरी पर अमल

रोकथाम उपाय अपनाकर हालात बेहतर बनाए जा सकते हैं जिनमें – स्कूलों को हवादार रखना, शारीरिक दूरी को प्रोत्साहन देना, कुछ ख़ास परिस्थितियों में मास्क पहनना और हाथ धोना व स्वच्छ रखना शामिल हैं. ऐसे रोकथाम उपाय बहुत कारगर साबित हुए हैं और बहुत से मामलों में नज़र आया है कि दरअसल, स्कूल तो बच्चों के लिये सबसे ज़्यादा सुरक्षित स्थान हैं.

उन्होंने कहा कि माता-पिता व अभिभावकों के साथ सुचारू संचार और सम्वाद बनाए रखना बहुत कारगर है. अध्यापकों को भी समर्थन दिये जाने की ज़रूरत है ताकि वो स्कूल खोल सकें, बच्चों की मदद कर सकें, और स्कूलों में जोखिम को कम करने वाले रोकथाम उपाय कारगर तरीक़े से लागू कर सकें.

रॉबर्ट जेनकिन्स ने, इस महामारी से उपजे हालात को एक अवसर में बदलने के सन्दर्भ में कहा कि स्कूलों में नवाचार को बढ़ावा देने वाले कुछ उदाहरण देखने में आए हैं. सियेरा लियोन्स उसका एक अच्छा उदाहरण है. मगर बहुत से अन्य देशों में, शिक्षा मुहैया कराने के मिश्रित तरीक़े व साधन अपनाए जा रहे हैं.

मगर खेद की बात ये भी है कि बड़े पैमाने पर इस बदलाव की ज़रूरत, महामारी शुरू होने से पहले थी, मगर ये बदलाव, सभी जगह नहीं हो रहे हैं, और अगर स्कूल फिर से खुलने पर, दो साल पहले के हालात में ही वापिस लौट जाएँ, तो ये एक अच्छा मौक़ा हाथ से निकलने का उदाहरण होगा, जबकि बच्चे, शिक्षा प्राप्ति में, पहले ही बहुत पिछड़ चुके हैं.

उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर, तमाम देशों की सरकारों और स्वास्थ्य मंत्रालयों को एक सन्देश में कहा कि वो स्कूल फिर से खोलने की प्राथमिकता को महत्ता दें, ताकि हाशिये पर पहुँच चुके बच्चे अपनी शिक्षा प्राप्ति की यात्रा, फिर से शुरू कर सकें.

“आइये, हम इस अवसर का प्रयोग बदलाव और लम्बे समय से चले आ रहे शैक्षिक मुद्दों के समाधान के लिये करें.”

कैमरून के एक स्कूल का दृश्य
© UNICEF/Frank Dejongh
कैमरून के एक स्कूल का दृश्य