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जल गहराई में समाई दुर्लभ प्रवाल भित्तियों की खोज, 'एक कलाकृति के समान'

दुनिया भर की अधिकाँश प्रवाल भित्तियाँ लगभग महासागर में 25 मीटर तक की गहराई तक ही स्थित हैं.
© Alexis Rosenfeld
दुनिया भर की अधिकाँश प्रवाल भित्तियाँ लगभग महासागर में 25 मीटर तक की गहराई तक ही स्थित हैं.

जल गहराई में समाई दुर्लभ प्रवाल भित्तियों की खोज, 'एक कलाकृति के समान'

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक वैज्ञानिक मिशन ने, फ्रेंच पोलेनेशिया में ताहिती तट के पास दुनिया की सबसे बड़ी प्रवाल भित्तियों (Coral reefs) में से एक की खोज की है. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने गुरूवार को बताया कि ग़ोताख़ोरों ने, 30 से 65 मीटर तक की गहराई तक जाकर इसका पता लगाया है.

गुलाब के आकार की यह भित्ति क़रीब तीन किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है. 

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शुरुआती संकेतों के अनुसार, इसकी गहराई ने वैश्विक तापमान की वजह से होने वाले विरंजन (bleaching) से इसकी रक्षा की है. 

फ्रांस के फ़ोटोग्राफ़र और #1Ocean अभियान के संस्थापक ऐलेक्सिस रोज़ेनफ़ील्ड ने बताया कि, “विशाल, सुन्दर गुलाब प्रवाल भित्ति को देखना चमत्कारी अनुभव था, नज़रों की हद तक, यह दिखाई दी.”

“यह एक कलाकृति के समान है.”

बताया गया है कि गहरे स्थान पर होने की वजह से इस भित्ति का पता चल पाना असाधारण बात है, चूँकि दुनिया भर की अधिकतर प्रवाल भित्तियाँ लगभग 25 मीटर तक ही स्थित हैं.

गुलाब जैसी इन भित्तियों का व्यास दो मीटर तक हो सकता है, और आकार में यह 30 से 65 मीटर तक चौड़ी हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने कहा कि यह खोज दर्शाती है कि अनेक अन्य बड़ी भित्तियाँ मौजूद हैं, जोकि 30 मीटर से ज़्यादा गहराई तक स्थित हैं. 

इसके महासागर के विषय में एक ऐसा धुंधला प्रकाश सरीखा इलाक़ा (twilight zone) माना जाता है, जिसके बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है.

यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने बताया कि पूर्ण समुद्री तल के केवल 20 फ़ीसदी हिस्से के बारे में ही जानकारी जुटाई जा सकी है. “हम चांद की सतह के बारे में, गहरे महासागर से अधिक जानते हैं.”

उन्होंने कहा कि ताहिती में यह असाधारण खोज वैज्ञानिकों के अविश्वसनीय कार्य को दर्शाती है, जिन्होंने यूनेस्को के समर्थन से, गहराई में समाई दुनिया के प्रति हमारा ज्ञान बढ़ाया है.

इस आकार की मूंगा चट्टानों को ढूंढ पाना अहम है, चूँकि वे अन्य जीवों के लिये एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत हैं, और उनसे जैवविविधता पर शोध में भी मदद मिल सकती है. 

भित्तियों पर जीवन व्यतीत करने वाले जीव, चिकित्सा सम्बन्धी अनुसन्धान में सहायक हो सकते हैं. साथ ही, टिकाऊ विकास के नज़रिये, प्रवाल भित्तियाँ, तटीय क्षरण और सूनामी से बचाव करने में मदद प्रदान कर सकती हैं.

गुलाब के आकार की ये भित्तियाँ तीन किलोमीटर के दायरे में फैली हुई हैं.
© Alexis Rosenfeld
गुलाब के आकार की ये भित्तियाँ तीन किलोमीटर के दायरे में फैली हुई हैं.

गहराई में छलांग 

यह खोज, महासागरों के सम्बन्ध में जानकारी जुटाने के लिये चलाई जा रही, यूनेस्को की एक मुहिम के तहत सम्भव हो पाई है.

अभी तक, बहुत कम वैज्ञानिक ही 30 मीटर से ज़्यादा गहराई तक जाकर प्रवाल भित्तियों की स्थिति का पता लगाने, जाँच व अध्ययन करने में सक्षम हो पाए हैं.

मगर, आधुनिकतम टैक्नॉलॉजी के सहारे, ज़्यादा गहराई तक ग़ोता लगाना अब सम्भव है, जिसकी बदौलत इनका पता चल पाया है. 

बताया गया है कि टीम ने, प्रवाल भित्तियों का अध्ययन करने के लिये, कुल मिलाकर 200 घण्टों तक ग़ोताख़ोरी की.

आगामी महीनों में, मूंगा चट्टानों से जुड़े विषयों पर अध्ययन के लिये, मूंगा चट्टानों के इर्दगिर्द और ज़्यादा ग़ोताख़ोरी की जाने की योजना है. 

यूनेस्को, महासागर पर शोध व उनसे जुड़ी जानकारी बढ़ाने के लिये प्रयासरत है. इस क्रम में, वर्ष 1960 में, अन्तरसरकारी समुद्री विज्ञान आयोग (International Oceanographic Commission) की स्थापना की गई, जिसमें 150 से अधिक देश शामिल हैं. 

यह आयोग, सूनामी चेतावनी प्रणाली, महासागर के बारे में जानकारी जुटाने समेत अन्य वैश्विक कार्यक्रमों में समन्वयक की भूमिका निभाता है.