अफ़ग़ानिस्तान में रोज़गार का संकट, महिलाओं पर विषमतापूर्ण असर
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक ताज़ा रिपोर्ट दर्शाती है कि अफ़ग़ानिस्तान में अगस्त 2021 में, देश की सत्ता पर तालेबान का क़ब्ज़ा होने के बाद से, वर्ष की तीसरी तिमारी में पाँच लाख से अधिक रोज़गार ख़त्म हो गए हैं. यूएन श्रम एजेंसी ने आशंका जताई है कि वर्ष 2022 के मध्य तक यह संख्या नौ लाख तक पहुँच सकती है.
यूएन श्रम एजेंसी ने बुधवार को अपनी एक त्वरित समीक्षा जारी की है, जिसके अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में प्रशासनिक बदलाव के बाद उपजे हालात में, रोज़गार व कामकाजी घण्टे व्यापक पैमाने पर प्रभावित हुए हैं.
There have been huge losses in jobs and working hours in #Afghanistan since the change in administration with #womenworkers especially hard hit.➡️May reach 900,000 by mid-2022➡️Women’s employment levels decreased 16% in the 3rd quarter 2021https://t.co/MSxoK0TgfS
ILOAsiaPacific
ग़ौरतलब है कि अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालेबान का क़ब्ज़ा होने के बाद से ही, अर्थव्यवस्था बद से बदतर हुई है, बुनियादी सेवाएँ ध्वस्त हो गई हैं और विशाल स्तर पर मानवीय आवश्यकताएँ उत्पन्न हुई हैं.
यूएन श्रम एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, रोज़गार अवसरों में होने वाले नुक़सान की वजह, प्रशासनिक बदलाव के कारण कामगारों का रोज़गार साधन छूट जाना, और देश में उपजा आर्थिक संकट है.
यूएन एजेंसी का अनुमान है कि अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था में कामकाजी घण्टों की संख्या में, वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही में 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.
इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये, मौजूदा परिस्थितियों और प्रशासनिक स्तर पर कोई भी बदलाव ना आने के परिदृश्य की तुलना की गई है.
यूएन एजेंसी में अफ़ग़ानिस्तान के लिये वरिष्ठ समन्वयक रामिन बेहज़ाद ने बताया कि देश में हालात बेहद गम्भीर हैं और स्थायित्व व पुनर्बहाली के लिये, तत्काल समर्थन मुहैया कराए जाने की आवश्यकता है.
“इस समय प्राथमिकता मानवीय आवश्यकताओं को तत्काल पूरा करना है, मगर स्थाई और समावेशी पुनर्बहाली, लोगों व समुदायों के लिये उपयुक्त व शिष्ट रोज़गार, आजीविका और बुनियादी सेवाओं की सुलभता पर निर्भर करेगी.”
महिलाओं पर विषमतापूर्ण असर
इन हालात का महिला कामगारों पर विशेष रूप से चिन्ताजनक असर हुआ है और कार्यस्थलों पर उनकी भागीदारी पर पाबन्दियाँ लगाई गई हैं.
वैश्विक मानकों के नज़रिये से, अफ़ग़ानिस्तान में रोज़गारशुदा महिलाओं का आँकड़ा पहले से ही बेहद कम था.
मगर, अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान का वर्चस्व स्थापित होने के बाद पैदा हुए मानवीय संकट से महिला कामगारों पर ग़ैर-आनुपातिक रूप से असर पड़ा है.
2021 की तीसरी तिमाही में उनके रोज़गार स्तर में 16 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.
यदि वर्तमान परिस्थितियाँ जारी रहीं, तो एक निराशाजनक परिदृश्य में वर्ष 2022 के मध्य तक, महिला रोज़गारों में यह गिरावट 28 फ़ीसदी के आँकड़े को छू सकती है.
बदहाल अर्थव्यवस्था
देश में परिस्थितियों के बदलने से कृषि, नागरिक सेवा और निर्माण उद्योग समेत अर्थव्यवस्था के मुख्य सैक्टर प्रभावित हुए हैं.
इन सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोज़गार ख़त्म हो गए हैं या फिर कामगारों को वेतन नहीं मिल पाया है.
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन, अफ़ग़ान नागरिकों के लिये बेहतर व शिष्ट रोज़गार सुनिश्चित करने के लिये प्रयासरत है.
इस क्रम में आपात परिस्थितियों में रोज़गार अवसरों, रोज़गार गहन निवेश, उद्यम के लिये प्रोत्साहन और कौशल विकास पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया जाता है.
‘दुस्वप्न है जीवन’
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने हाल ही में क्षोभ व्यक्त किया था कि अफ़ग़ानिस्तान में आम नागरिक एक दुस्वप्न जी रहे हैं और उनकी सहायता करने के लिये समय बीता जा रहा है.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से अफ़ग़ान लोगों की मदद करने और तालेबान से बुनियादी स्वतंत्रताओं का सम्मान किये जाने की अपील की है.
साथ ही, संयुक्त राष्ट्र ने किसी एक देश के लिये अब तक की सबसे बड़ी मानवीय राहत अपील जारी करते हुए, पाँच अरब डॉलर की सहायता राशि जुटाने की पुकार लगाई है.