संकट काल में 'वैश्विक वित्तीय प्रणाली हुई विफल, एकजुटता का अभाव'
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने, सोमवार को विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) के एक कार्यक्रम को वर्चुअल रूप से सम्बोधित करते हुए आगाह किया है कि मौजूदा संकट के दौरान विकासशील देशों की सहायता कर पाने में, वैश्विक वित्तीय प्रणाली विफल साबित हुई है और एकजुटता कहीं नज़र नहीं आ रही है.
कोविड-19 महामारी के कारण यह लगातार दूसरी बार है जब स्विट्ज़रलैण्ड के दावोस शहर में होने वाली, विश्व आर्थिक मंच की बैठक रद्द कर दी गई है.
We cannot afford to replicate the inequalities and injustices that continue condemning tens of millions of people to lives of want, poverty & poor health.We need to come together — across countries & sectors— to support those countries who need the most help. #DavosAgenda pic.twitter.com/DgauGGHb2u
antonioguterres
इसके बजाय, दावोस एजेण्डा के बैनर तले सिलसिलेवार ऑनलाइन कार्यक्रम व विचार-विमर्श सत्र आयोजित किये गए हैं.
महासचिव गुटेरेश ने न्यूयॉर्क से कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस वर्ष का यह आयोजन, अर्थव्यवस्थाओं, आमजन और पृथ्वी के लिये एक विशाल कठिनाइयों भरे समय की छाया में हो रहा है.
पिछले सप्ताह, यूएन ने आर्थिक पूर्वानुमान जारी किये हैं, जोकि दर्शाते हैं कि दुनिया, कोविड-19 महामारी के कारण उपजे आर्थिक संकट से उबर तो रही है, मगर पुनर्बहाली नाज़ुक और विषमतापूर्ण है.
श्रम बाज़ार में चुनौतियाँ व्याप्त हैं, आपूर्ति श्रंखला में व्यवधान आए हैं, मुद्रास्फीति बढ़ रही है, कुछ देश कर्ज़ के चंगुल में फँस रहे हैं और पुनर्बहाली की रफ़्तार, नाटकीय ढंग से धीमी हुई है.
वैक्सीन समता
यूएन महासचिव ने फ़ोरम मे हिस्सा ले रहे सभी प्रतिभागियों से, तीन अहम क्षेत्रों पर ध्यान दिये जाने का आग्रह किया है.
पहला, वैश्विक महामारी का मुक़ाबला, समता व निष्पक्षता के साथ किया जाना होगा.
उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के उस लक्ष्य को दोहराया, जिसमें वर्ष 2021 के अन्त तक वैश्विक आबादी के 40 फ़ीसदी और 2022 के मध्य तक विश्व आबादी के 70 प्रतिशत हिस्से के टीकाकरण की बात कही गई थी.
यूएन प्रमुख ने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया इन लक्ष्यों को पाने से बहुत दूर है.
उच्च-आय वाले देशों में टीकाकरण की दर, अफ़्रीकी देशों से सात गुना तक अधिक है, जोकि ‘शर्मनाक’ है.
उन्होंने वैक्सीन समता पर ध्यान केन्द्रित किये जाने के साथ-साथ, दुनिया को भावी महामारियों से निपटने के लिये तैयार रहने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया.
महासचिव के मुताबिक़, इसके लिये निगरानी, समय रहते पता लगाने और त्वरित जवाबी कार्रवाई योजनाएँ, हर देश में सम्भव बनानी होंगी.
इसके समानान्तर, यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अधिकारों को भी मज़बूती देनी होगी.
वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में फेरबदल
दूसरा, मौजूदा वैश्विक वित्तीय प्रणाली में जल्द से जल्द बदलाव लाए जाने की ज़रूरत है.
“हमें वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधार लाने की आवश्यकता है, ताकि यह सभी देशों के लिये काम करे.”
उन्होंने कहा कि पुनर्बहाली के लिये ख़र्च होने वाले हर 10 डॉलर में से आठ डॉलर, विकसित देशों में ख़र्च हो रहे हैं, और इन हालात में निम्न-आय वाले देशों के समक्ष एक विकराल चुनौती है.
“वे एक पीढ़ी में सबसे सुस्त वृद्धि दर से गुज़र रहे हैं – और दुखद रूप से अपर्याप्त राष्ट्रीय बजटों के सहारे बाहर निकलने की कोशिश में जुटे हैं.”
यूएन प्रमुख ने रिकॉर्ड मुद्रास्फीति, राजकोषीय चुनौतियों, उच्च ब्याज़ दरों और बढ़ती ऊर्जा व खाद्य क़ीमतों के प्रति आगाह किया.
उन्होंने बताया कि दुनिया के हर देश, विशेष रूप से निम्न और मध्य-आय वाले देशों को इन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
आवश्यकता के अनुरूप प्रणाली
महासचिव का मानना है कि कुछ देश बढ़ते क़र्ज़ और ऊँची ब्याज़ दरों के चक्र में फँसे हुए हैं और क़र्ज़ माफ़ी के लिये अहर्ताएँ पूरी नहीं करते हैं.
इन देशों में निर्धनता, बेरोज़गारी बढ़ रही है और पहले से दर्ज की गई प्रगति को धक्का पहुँचा है. उन्होंने कहा कि एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है, जो ज़रूरतों पर आधारित हो.
इस क्रम में, उन्होंने दीर्घकालीन ऋण व्यवस्था में सुधार लाने और मध्य आय वाले देशों में क़र्ज़ राहत के लिये साझा फ़्रेमवर्क में विस्तार की आवश्यकता को रेखांकित किया है.
उन्होंने देशों की सरकारों और संस्थाओं से निवेश जोखिमों के आकलन के लिये, सकल घरेलू उत्पाद से परे जाने, भ्रष्टाचार और अवैध वित्तीय लेनदेन पर रोक लगाने व कर प्रणालियों को विषमता घटाने पर केन्द्रित बनाने की पुकार लगाई है.
जलवायु कार्रवाई
तीसरा, महासचिव गुटेरेश ने विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई पर ज़ोर दिया है.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि यदि सभी विकसित देश, वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन घटाने के अपने वादों को पूरा कर भी लेते हैं, तो भी वैश्विक उत्सर्जनों की अधिकता के कारण, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के लक्ष्य को, 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रख पाना कठिन होगा.
यूएन समर्थित एक अध्ययन के अनुसार, इस दशक में वैश्विक उत्सर्जनों में 45 प्रतिशत की गिरावट की ज़रूरत है, मगर फ़िलहाल उनमें 14 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी होने की सम्भावना है.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने सचेत किया कि 1.2 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि के विनाशकारी नतीजे दिखाई दिये हैं और निराशा बढ़ी है.
ग़ौरतलब है कि पिछले दो दशकों में, जलवायु सम्बन्धी आपदाओं के कारण होने वाली आर्थिक क्षति का आँकड़ा बढ़ा है, और इसमें 82 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है.
पिछले वर्ष ही, चरम मौसम घटनाओं में 120 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ और 10 हज़ार लोगों की मौत हुई.
महासचिव ने ज़ोर देकर कहा कि मौजूदा जलवायु संकट पर पार पाने के लिये, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक व्यवसायिक समुदाय के समर्थन, विचारों, वित्त पोषण और आवाज़ की दरकार है.