ILO: श्रम बाज़ार में पुनर्बहाली अब भी धीमी और अनिश्चित

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि दुनिया, अब भी कोविड-19 महामारी और वैश्विक श्रम बाज़ार में उसके प्रभावों से जूझ रही है. सोमवार को प्रकाशित रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि मौजूदा हालात में वैश्विक पुनर्बहाली की रफ़्तार में सुस्ती बरक़रार रहने की सम्भावना है.
यूएन एजेंसी ने ‘World Employment and Social Outlook Trends 2022 (WESO Trends)’, शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में, 2022 के लिये श्रम बाज़ार में पुनर्बहाली के अपने अनुमान में बदलाव किया है.
संगठन के अनुमान के अनुसार, महामारी के कारण श्रम बाज़ार में आए व्यवधान की वजह से, कामकाजी घण्टों में होने वाला घाटा, पाँच करोड़ 20 लाख पूर्णकालिक रोज़गारों के समकक्ष होगा.
📉 Global working hours in 2022 will be almost 2% below their pre-pandemic level.This is the equivalent to the loss of 52 million full-time jobs.🆕 Find out more on the new ILO’s World Employment and Social Outlook Trends 2022 report.https://t.co/2cPNa6s3lk
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संगठन का नवीनतम अनुमान, वर्ष 2021 के मुक़ाबले हालात में बेहतरी को दर्शाता है, मगर यह वैश्विक महामारी से पूर्व के कामकाजी घण्टों की तुलना में लगभग दो फ़ीसदी कम है.
साथ ही, वैश्विक बेरोज़गारी का आँकड़ा भी, कम से कम वर्ष 2023 तक, कोविड-19 से पहले के स्तर से अधिक बने रहने की सम्भावना है.
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा कि संकट के दो वर्ष बीतने के बाद भी, परिस्थितियाँ नाज़ुक हैं और पुनर्बहाली का रास्ता, धीमा व अनिश्चितताओं से भरा है.
वर्ष 2022 में, बिना रोज़गार लोगों का आँकड़ा 20 करोड़ 70 लाख आँका गया है, जबकि 2019 में यह 18 करोड़ 60 लाख था.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा, “अनेक कामगारों को नए प्रकार के कामकाज की तरफ़ मुड़ना पड़ रहा है. उदाहरण के लिये, अन्तरराष्ट्रीय यात्रा और पर्यटन में लम्बी ढलान की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप.”
WESO Trends रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि रोज़गार पर कुल असर, आँकड़ों में जताई गई आशंका से कहीं ज़्यादा है, चूँकि अनेक लोगों ने श्रम बल छोड़ भी दिया है.
इस वर्ष के लिये वैश्विक श्रम बल में भागीदारी की दर, 2019 की तुलना में 1.2 प्रतिशत कम रहने का अनुमान जताया गया है.
इस दर में कमी की वजह, कोविड-19 के डेल्टा और ओमिक्रॉन जैसे वैरीएण्ट का उभरना बताया गया है, और इसके अलावा, वैश्विक महामारी की भावी दिशा के सम्बन्ध में भी अनिश्चितता बरक़रार है.
यूएन एजेंसी प्रमुख ने आगाह किया कि श्रम बाज़ार में लम्बी क्षति की सम्भावना दिखने लगी है और निर्धनता व विषमता में भी चिन्ताजनक वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट में कोरोनावायरस संकट से कामगारों और देशों के समूहों पर होने वाले भिन्न-भिन्न प्रभावों के प्रति सचेत किया गया है.
बताया गया है कि देशों के भीतर और देशों में विषमता गहरी हो रही है, जबकि लगभग हर देश में आर्थिक, वित्तीय व सामाजिक ताना-बाना कमज़ोर हो रहा है.
रिपोर्ट में चिन्ता व्यक्त की गई है कि इस क्षति की भरपाई करने में अनेक वर्षों का समय लग सकता है, और कि इसके श्रम बलों, पारिवारिक आय, सामाजिक व राजनैतिक जुड़ाव पर दीर्घकालीन नतीजे हो सकते हैं.
श्रम बाज़ार में महामारी के प्रभावों को दुनिया भर में अब भी महसूस किया जा रहा है, मगर पुनर्बहारी के रुझानों में भिन्नताएँ देखने को मिल रही हैं, जोकि काफ़ी हद तक कोरोनावायरस पर नियंत्रण पाने में मिली सफलता पर आधारित है.
योरोपीय और उत्तर अमेरिकी क्षेत्रों में पुनर्बहाली के उत्साहजनक संकेत नज़र आए हैं, जबकि दक्षिणपूर्व एशिया, लातिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र में नकारात्मक हालात की सम्भावना बनी हुई है.
राष्ट्रीय स्तर पर, उच्च आय देशों में श्रम बाज़ार में पुनर्बहाली सबसे मज़बूत है, जबकि निम्नतर मध्य0आय वाले देशों की अर्थव्यवस्थाएँ सबसे ख़राब हालात का सामना कर रही हैं.
मौजूदा संकट का महिलाओं के रोज़गारों पर विषमतापूर्ण असर हुआ है, जोकि आने वाले वर्षों में भी जारी रहने की सम्भावना है.
रिपोर्ट बताती है कि शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थानों के बन्द हो जाने की वजह से, युवजन पर दीर्घकालीन नतीजे होंगे, विशेष रूप से उन युवाओं पर, जिनके पास इण्टरनैट की सुलभता नहीं है.
इस क्रम में, यूएन एजेंसी प्रमुख ने आगाह किया है कि व्यापक स्तर पर पुनर्बहाली सुनिश्चित किये बिना, श्रम बाज़ार में वास्तविक बेहतरी सम्भव नहीं है.
इसे टिकाऊ बनाने के लिये, पुनर्बहाली को स्वास्थ्य व सुरक्षा, समता, सामाजिक संरक्षा और सामाजिक सम्वाद समेत, उपयुक्त एवं शिष्ट रोज़गार के सिद्धान्तों पर आधारित बनाना होगा.
नए विश्लेषण में वर्ष 2022 और 2023 के लिये, श्रम बाज़ार के लिये व्यापक रूप से व्यक्त अनुमानों के अलावा श्रम बाज़ार में विश्वव्यापी पुनर्बहाली की समीक्षा की गई है.
इसके तहत, विभिन्न देशों में अपनाए गए उपायों और उनसे कामगार आबादी और आर्थिक क्षेत्रों पर हुए असर का आकलन किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, अतीत के संकटों की तरह कुछ अस्थाई रोज़गारों की मदद से वैश्विक महामारी के झटकों का सामना कर पाना कुछ हद तक सम्भव हुआ है.
अनेक अस्थाई रोज़गार या तो समाप्त कर दिये गए हैं, या उनकी अवधि नहीं बढ़ाई गई है, मगर वैकल्पिक रोज़गार सृजित भी हुए हैं और ऐसा उन कामगारों के लिये भी हुआ है, जिनका पूर्णकालिक रोज़गार ख़त्म हो गया था.
यूएन एजेंसी का मानना है कि औसतन, अस्थाई कामकाज में बदलाव नहीं आया है.
रिपोर्ट में कुछ अहम नीतिगत अनुशन्साएँ भी पेश की गई हैं, जोकि पूर्ण रूप से समावेशी व मानव-आधारित हैं, और जिनसे राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पुनर्बहाली में मदद मिल सकती है.