कोविड-19: वैश्विक आर्थिक पुनर्बहाली की सुस्त होती रफ़्तार, यूएन की चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि, वर्ष 2021 में सुधार के बावजूद, कोविड-19 संक्रमण मामलों की नई लहरों, श्रम बाज़ार व आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में दर्ज व्यवधानों, और मुद्रास्फीति के बढ़ते दबावों के कारण, वैश्विक आर्थिक पुनर्बहाली के मार्ग में विशाल अवरोध पैदा हो गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) ने गुरूवार को विश्व आर्थिक स्थिति एवं सम्भावनाएँ (World Economic Situation and Prospects 2022 / WESP) रिपोर्ट जारी की है.
रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2021 में वैश्विक उत्पादन में साढ़े पाँच प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है, मगर, 2022 में यह आँकड़ा 4 फ़ीसदी और 2023 में 3.5 प्रतिशत तक सीमित रह जाने की आशंका है.
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UNDESA
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “वैश्विक पुनर्बहाली के इस नाज़ुक और असमान दौर में, WESA 2022 रिपोर्ट बेहतर ढंग से लक्षित और समन्वित, राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत व वित्तीय उपायों की पुकार लगाती है.”
साल 2021 में, उपभोक्ता व्यय में मज़बूती और निवेश में बढ़ोत्तरी होने से पिछले चार दशकों में सबसे ज़्यादा वृद्धि दर देखी गई थी, और सामान व्यापार ने महामारी से पूर्व के स्तर को भी पार कर लिया था.
इसके बावजूद, हालात में बेहतरी की रफ़्तार, विशेष रूप से चीन, अमेरिका और योरोपीय संघ में, 2021 के अन्तिम दिनों में धीमी हुई है.
रिपोर्ट में इसकी वजह, मौद्रिक एवं राजकोषीय स्फूर्ति प्रदान करने वाले उपायों का असर कम होना और आपूर्ति ऋंखला में व्यवधानों का उभरना बताया गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अनेक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति सम्बन्धी दबाव बढ़ने से पुनर्बहाली के लिये अतिरिक्त जोखिम पैदा हो रहे हैं.
महासचिव गुटेरेश ने ध्यान दिलाया कि यह समय, देशों के भीतर और उनके बीच, विषमता की खाइयों को दूर करना है.
“यदि हम एकजुटता के साथ काम करें, एक मानव परिवार की तरह, तो हम 2022 को सर्वजन व अर्थव्यवस्थाओं के लिये पुनर्बहाली का एक वास्तविक वर्ष बना सकते हैं.”
ओमिक्रॉन का असर
कोरोनावायरस का बेहद संक्रामक ओमिक्रॉन वैरीएण्ट, विश्व के अनेक देशों में तेज़ी से फैल रहा है और रिकॉर्ड संख्या में संक्रमण मामलों की पुष्टि हो रही है.
कोविड-19 संक्रमण की नई लहरों का मानव समाज और अर्थव्यवस्थाओं पर भीषण असर हो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग में अवर महासचिव लियू झेनमिन ने सचेत किया कि समन्वित व सतत वैश्विक प्रयासों के बिना, महामारी से विश्व अर्थव्यवस्था की समावेशी पुनर्बहाली के लिये ख़तरा बरक़रार रहेगा.
उन्होंने इस चुनौती से निपटने के लिये कोविड-19 से बचाव के लिये टीकों की सार्वभौमिक सुलभता पर बल दिया है.
रिपोर्ट के कुछ अहम बिन्दु:
श्रम बाज़ार में पुनर्बहाली पिछड़ रही है और वैश्विक निर्धनता का स्तर ऊँचा है.
अगले दो सालों में, और उससे इतर भी, रोज़गार की दर के महामारी से पहले के स्तर की तुलना में कम रहने की सम्भावना है.
अमेरिका और योरोप में श्रम बल की भागीदारी ऐतिहासिक रूप से अपने निचले स्तर पर है, अनेक लोगों के रोज़गार ख़त्म हो गए हैं या फिर श्रम बाज़ार में उनकी वापसी नहीं हुई है.
श्रमिकों की कमी के कारण विकसित देशों में आपूर्ति ऋंखला चुनौतियाँ और मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ रहा है. विकासशील देशों में रोज़गार वृद्धि की दर कमज़ोर है, टीकाकरण में प्रगति धीमी है और आर्थिक स्फूर्ति पैकेज सीमित हैं.
अनेक देशों में, रोज़गार सृजन की रफ़्तार, पहले ख़त्म हो गए रोज़गारों की पुनर्बहाली के लिये पर्याप्त नहीं है, और अत्यधिक निर्धनता में रहने वाले लोगों की संख्या, महामारी के पहले के स्तर से भी ऊपर बने रहने की सम्भावना है.

कोविड-19 महामारी का एक बड़ा घाव, विषमता का ऊँचा स्तर है.
वैश्विक महामारी के कारण, देशों के भीतर और उनके बीच विषमता की खाई और गहरी हुई है.
आने वाले वर्षों में, सकल घरेलू उत्पाद की प्रति व्यक्ति पूर्ण रूप से पुनर्बहाली, अनेक विकासशील देशों में पहुँच से दूर रहने की सम्भावना है.
रोज़गार और आय के मामले में विषमतापूर्ण पुनर्बहाली के कारण भिन्न-भिन्न आबादी समूहों में देशों में, आय असमानता गहरा रही है.
विकासशील देशों में महिलाओं को महामारी के फैलाव के कारण, रोज़गार अवसरों में तेज़ गिरावट का अनुभव करना पड़ रहा है.
महिलाओं की श्रम बल में वापसी के लिये, बाल देखभाल समेत अवैतनिक घरेलू कामकाज के लिये समर्थन को महत्वपूर्ण बताया गया है.
नीतिगत भूदृश्य में बदलाव
अनेक देशों में राजकोषीय और वित्तीय दबावों के कारण, वैश्विक महामारी से सम्बन्धित व्यय के लिये सरकारों की क्षमता प्रभावित हो रही है.
इनमें टीकाकरण मुहिम आगे बढ़ाना, सामाजिक संरक्षा उपाय सुनिश्चित करना और रोज़गार के सृजन के लिये समर्थन मुहैया कराना है.
राजकोषीय और ऋण सम्बन्धी हालात, कुछ निम्न आय वाले देशों में ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हैं. ऋण के बोझ के तले दबे होने, महामारी के दौरान अतिरिक्त क़र्ज़ लिये जाने से बहुत से देश, क़र्ज़ संकट के कगार पर पहुँच गए हैं.
ऋण राहत के लिये, इन देशों को तत्काल, समन्वित ढंग से अन्तरराष्ट्रीय समर्थन सुनिश्चित किये जाने पर बल दिया गया है.