यमन: हिंसा समाप्ति के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति व ज़िम्मेदार नेतृत्व की दरकार

यमन के लिये संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैन्स ग्रुण्डबर्ग ने कहा है कि देश में सात वर्षों से चले आ रहे युद्ध का कोई भी दीर्घकालिक समाधान, युद्धभूमि पर ढूंढा जाना सम्भव नहीं है. उन्होंने बुधवार को सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को मौजूदा घटनाक्रम से अवगत कराते हुए, सभी युद्धरत पक्षों से वार्ता का हिस्सा बनने की पुकार लगाई है.
उन्होंने कहा कि वास्तविक मायनों में राजनैतिक इच्छाशक्ति व ज़िम्मेदार नेतृत्व के साथ पूरी आबादी के हितों को ध्यान में रखकर क़दम उठाए जाने की आवश्यकता है.
विशेष दूत ग्रुण्डबर्ग ने हाल के समय में हुई लड़ाई का ज़िक्र करते हुए, उसे पिछले कुछ सालों की बदतरीन हिंसा क़रार दिया.
इस क्रम में उन्होंने, मारिब में हमलों, ताइज़ और महत्वपूर्ण बन्दरगाह शहर हुदायदाह में हवाई कार्रवाई, सऊदी अरब हमलों पर बढ़ते हमलों और हूती लड़ाकों (अंसार अल्लाह) द्वारा हाल ही में एक जहाज़ को अपने नियंत्रण में लिये जाने का उल्लेख किया.
सना और मारिब में यूएन कर्मचारियों को हिरासत में रखे जाने पर चिन्ता व्यक्त की गई है.
यूएन दूत ने उनसे तत्काल सम्पर्क कराए जाने और उनकी स्थिति के बारे में और अधिक जानकारी साझा किये जाने का आग्रह किया है.
इस बीच, यमन में बढ़ती हिंसा के बाद आवाजाही पर गम्भीर पाबन्दियों की आशंका भी बढ़ रही है.
ऐसे आरोप लग रहे हैं कि अनेक यमनी नागरिकों के लिये जीवनरेखा के रूप में देखे जाने वाले हुदायदाह के बन्दरगाहों का सैन्यकरण किया जा रहा है.
ग़ौरतलब है कि राहत सामग्री के आयात के लिये वे हुदायदाह बन्दरगाह पर ही निर्भर हैं. “सामान और लोगों की आवाजाही पर पाबन्दी, पूरे यमन में एक चुनौती है.”
उनका मन्तव्य सड़कें बन्द होने, चुंगियों - सुरक्षा चौकियों पर खड़े किये जाने समेत अन्य पाबन्दियों से हैं, जिनसे स्थानीय आबादी का जीवन प्रभावित होता है.
विशेष दूत ने कहा कि ज़मीनी स्तर पर अनेक चुनौतियों के बीच, युद्धरत पक्षों की कथित प्राथमिकताओं और लड़ाई पर विराम लगाने के रास्तों पर विचार किया गया है.
मगर, उन्होंने स्पष्ट किया कि युद्धरत पक्षों के बीच भरोसे का अभाव है, और उनकी प्राथमिकताओं में प्रतिस्पर्धा है, जिसकी वजह से शान्ति वार्ता को आगे बढ़ाना कठिन साबित हुआ है.
विशेष दूत ग्रुण्डबर्ग ने कहा कि धीरे-धीरे, स्थाई राजनैतिक समाधान की दिशा में प्रगति पर लक्षित, एक व्यापक, बहुस्तरीय उपाय विकसित किया जा रहा है, जिसमें राजनैतिक, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा.
“इस चक्र को तोड़ने के अवसर के लिये, हमें एक समावेशी, अन्तरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त राजनैतिक प्रक्रिया स्थापित करनी होगी, जिससे शान्ति के लिये एक व्यवहारिक नींव मिल सके.”
आपात राहत मामलों के लिये यूएन के उपसमन्वयक रमेश राजासिंघम ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि मौजूदा ज़मीनी हालात, ज़्यादा उम्मीद बंधाते प्रतीत नहीं होते.
पिछले एक महीने में 15 हज़ार लोग विस्थापित हुए हैं, और झड़पों में चिन्ताजनक बढ़ोत्तरी की वजह से दिसम्बर 2021 में 358 आम नागरिक हताहत हुए.
“युद्ध के कारण भुखमरी, विस्थापन, आर्थिक बदहाली और बुनियादी सेवाएँ बद से बदतर होती जा रही हैं.”
यूएन के वरिष्ठ अधिकारी ने सचेत किया कि इस संकट से पहले ही यमन, वैश्विक लैंगिक समानता की सूची में निचले पायदान पर था, मगर मौजूदा हिंसा की वजह से लड़कियों और महिलाओं के लिये हालात और भी ख़राब हो गए हैं.
इससे, महिलाओं व लड़कियों की आवाजाही की आज़ादी प्रभावित हुई है, शिक्षा की सुलभता में कमी आई है, और निरक्षरता व निर्धनता की दर अधिक है.
साथ ही, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सीमित हो गई है और यौन व लिंग आधारित हिंसा बढ़ी है.
आपात राहत उपसमन्वयक के मुताबिक़, संकटपूर्ण हालात में रह रहे लोगों की मदद के लिये, मानवीय राहत कार्य ऐसे कारणों से बाधित हो रहा है, जिनकी आसानी से रोकथाम की जा सकती है.
रमेश राजासिंघम ने दानदाताओं से ज़्यादा समर्थन की अपील करते हुए कहा, “हमारा मानना है कि इस वर्ष के राहत अभियान के लिये, पिछले साल जितनी ही रक़म की आवश्यकता होगी, यानि लगभग एक करोड़ 60 लाख लोगों की मदद के लिये, क़रीब तीन अरब 90 करोड़ डॉलर की राशि.”
उन्होंने बताया कि मानवीय राहत सुलभता, सुरक्षा और हस्तक्षेप जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, और लालफ़ीताशाही अवरोधों के कारण राहत पहुँचाने के काम में देरी हो रही है, जिससे महिलाएँ व लड़कियाँ सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं.
यूएन के वरिष्ठ अधिकारी राजासिंघम ने ज़ोर देकर कहा कि स्थानीय लोगों की ज़रूरतों को कम करने और अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने के लिये, एक ज़्यादा असरदार व समावेशी कार्रवाई को साकार करना होगा.
इसके तहत, महिला राहतकर्मियों के लिये एक सामर्थ्वान माहौल का निर्माण किया जाना होगा, कर्मचारियों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना होगा, और लैंगिक ज़रूरतों को ध्यान में रखने वाले कार्यक्रमों में निवेश बढ़ाना होगा.
हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा कि केवल मानवीय राहत के ज़रिये यमन में संकट का समाधान नहीं निकाला जा सकता है.
रमेश राजासिंघम के मुताबिक़, हिंसक टकराव के कारण स्थानीय अर्थव्यवस्था का ध्वस्त होना, लोगों की ज़रूरतों का स्तर बढ़ने के लिये ज़िम्मेदार है.
उन्होंने कहा कि यूएन के आर्थिक फ़्रेमवर्क में वित्तीय और राजनैतिक संकल्पों के मिश्रण की आवश्यकता है, जिससे मानवीय आवश्यकताओं में कमी लाई जा सकती है.
साथ ही, आयात प्रतिबन्ध हटाने होंगे और सार्वजनिक संस्थाओं की बुनियादी सेवाओं के लिये आयात राजस्व का इस्तेमाल करना होगा, ताकि क़ीमतों में कमी लाई जा सके और लोगों की ज़िन्दगी को बेहतर बनाया जा सके.