कज़ाख़स्तान: 'तत्काल, स्वतंत्र व निष्पक्ष जाँच' कराए जाने की आवश्यकता पर बल

कज़ाख़स्तान में हाल ही में उपजी अशान्ति और विरोध-प्रदर्शनों में मृतक संख्या बढ़कर 164 तक पहुँच गई है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने सुरक्षा बलों द्वारा घातक बल के अनावश्यक व ग़ैर-आनुपातिक इस्तेमाल और उनकी कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की तत्काल, स्वतंत्र व निष्पक्ष जाँच कराए जाने का आग्रह किया है.
बताया गया है कि दंगों के बाद, देश में अब तक क़रीब 10 हज़ार लोग हिरासत मे लिये जा चुके हैं.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की प्रवक्ता लिज़ थ्रोसेल ने मंगलवार को जिनीवा में पत्रकारो को जानकारी देते हुए बताया कि, “हम समझते हैं कि गृह मंत्रालय ने 11 जनवरी तक, नौ हज़ार 900 लोगों को हिरासत में लिये जाने की घोषणा की है.”
“अब, ये स्पष्ट है कि यह एक विशाल संख्या है.”
🇰🇿#Kazakhstan: UN experts call on authorities & security forces to halt use of lethal force against protesters & condemn misuse of “terrorism” language against State opponents. They call for independent investigations + protection of fundamental freedoms: https://t.co/B9m2aNjWC6 pic.twitter.com/tRs81xUBBc
UN_SPExperts
“अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत, लोगों को शान्तिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने और अपनी राय अभिव्यक्त करने का अधिकार है.”
“और उन्हें केवल अपनी राय व्यक्त करने के लिये हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिये.”
यूएन एजेंसी प्रवक्ता ने ज़ोर देकर कहा कि अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहे लोगों को, हिरासत से तत्काल रिहा किया जाना चाहिये.
लिज़ थ्रोसेल के मुताबिक़, कज़ाख़स्तान के सबसे बड़े शहर अलमाती में व्यापक क्षति और विध्वंस देखे गए हैं.
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को, हिरासत में लिये गए लोगों की सिलसिलेवार जानकारी नहीं है, मगर यह स्पष्ट है कि गिरफ़्तार किये गए कुछ लोगों पर आरोप निर्धारित किये जा सकते हैं.
यूएन एजेंसी प्रवक्ता ने कहा कि यह भी स्पष्टता से कहा जाना होगा कि अलमाती और कज़ाख़स्तान के अन्य हिस्सों में सड़कों पर कुछ हथियारबन्द लोग भी मौजूद थे.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने ध्यान दिलाया है कि हिरासत में लिये गए सभी लोगों को एक वकील मुहैया कराया जाना होगा, जोकि उनका एक बुनियादी मानवाधिकार है.
ख़बरों के अनुसार, सरकार द्वारा एलपीजी गैस की क़ीमतें बढ़ाए जाने के बाद, रविवार, 9 जनवरी 2022 को विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ.
कज़ाख़स्तान में कारों और घरों को गर्म करने के लिये इसी ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है.
ईंधन की क़ीमतों में वृद्धि वापिस लिये जाने के बावजूद, इससे उपजी अशान्ति, राजनैतिक असंतोष की अन्य वजहों से और भड़क गई.
कज़ाख़स्तान में अलमाती शहर, राजधानी नूर-सुल्तान समेत अनेक इलाक़ों में 5 जनवरी को लागू किया गया आपातकाल, अब देश भर में प्रभावी हो गया है.
हिंसा व आगज़नी के एक सप्ताह बाद, अलमाती में शान्ति फिर से लौट रही है. देश भर में हिंसा में मारे गए लोगों की स्मृति में, मंगलवार को एक दिन का शोक रखा गया है.
टैलीफ़ोन नैटवर्क, इण्टरनेट और सार्वजनिक परिवहन सेवाएँ धीरे-धीरे बहाल किये जा रहे हैं.
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने मंगलवार को, कज़ाख़स्तान में प्रशासन और सुरक्षा बलों से, प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध घातक बल के असंयमित प्रयोग को रोकने का आग्रह किया है.
साथ ही, उन्होंने प्रदर्शनों पर नियंत्रण पाने के लिये, सरकार द्वारा किये गए बल प्रयोग के सम्बन्ध में स्वतंत्र और मानवाधिकार-आधारित जाँच कराए जाने का भी आग्रह किया है.
मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने अपने एक वक्तव्य में कज़ाख़स्तान के राष्ट्रपति द्वारा जारी उन आदेशों पर चिन्ता जताई है, जिनमें सुरक्षा बलों व सेना को, घातक बल प्रयोग व गोली चलाने की अनुमति दी गई है.
इस आदेश में प्रदर्शनकारियों को लुटेरे और आतंकवादी क़रार दिया गया है.
स्वतंत्र विशेषज्ञों के मुताबिक़ प्रदर्शनकारियों, नागरिक समाज और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनैतिक दलों के सन्दर्भ में, आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल, भय पैदा करने पर लक्षित है, जोकि चिन्ताजनक है.
विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि ‘आतंकवाद’ शब्द का ग़लत सन्दर्भ में इस्तेमाल, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अनुरूप नहीं है और इससे कज़ाख़स्तान में सभी के मानवाधिकारों व सुरक्षा पर असर होता है.
विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि इस शब्द का इस्तेमाल, उन लोगों की आवाज़ दबाने के लिये नहीं किया जाना चाहिये, जिनकी राय सरकार से अलग है, जोकि अपने राजनैतिक विचार व्यक्त कर रहे हैं, और जो सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हिंसक कृत्यों से कज़ाख़स्तान की आपराधिक संहिता के तहत ही निपटा जाना चाहिये, जिसमें ऐसे अपराधों के लिये पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं.
यूएन विशेषज्ञों ने सरकार से बुनियादी स्वतंत्रताओं के इस्तेमाल की रक्षा किये जाने का आग्रह किया है, जिनमें अभिव्यक्ति और शान्तिपूर्ण सभा करने की आज़ादी हैं.
उन्होंने कहा कि घातक बल का प्रयोग, आत्मरक्षा के सन्दर्भ में ही किया जाना होगा, तभी जब बाक़ी अन्य विकल्प नाकाम साबित हो चुके हों.
यूएन विशेषज्ञों के अनुसार, ये सिद्धान्त उन विदेशी सैन्य बलों पर भी लागू होते हैं, जोकि कज़ाख़स्तान की सहमति से देश में तैनात किये गए हैं.
इस वक्तव्य को जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों की सूची यहाँ देखी जा सकती है.
सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा में यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.