
2021 पर एक नज़र: यात्रा पाबन्दियों के बावजूद शरणार्थियों व प्रवासियों की संख्या में वृद्धि
वैश्विक महामारी-सम्बन्धी यात्रा पाबन्दियों के कारण वर्ष 2021 में अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन के आँकड़ों में भले ही कमी दर्ज की गई हो, हिंसक संघर्ष, टकराव व उत्पीड़न के कारण अपना घर छोड़कर जाने के लिये मजबूर होने वाले लोगों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, इस वर्ष नवम्बर महीने तक, आठ करोड़ 40 लाख से ज़्यादा लोग अपने घर छोड़ कर जाने के लिये मजबूर हुए हैं.
वर्ष 2020 और 2019 की तुलना में इस आँकड़े में वृद्धि हुई है. इन दोनों वर्षों के दौरान, दुनिया भर में विस्थापित होने वाले संख्या रिकॉर्ड स्तर पर दर्ज की गई थी.
विस्थापितों की संख्या में यह बढ़ोत्तरी, एक ऐसे समय में दर्ज की गई है जब यात्राओं पर सख़्त पाबन्दियों के कारण, वैश्विक गतिशीलता में गिरावट दर्ज की गई.
इसके मद्देनज़र, यूएन प्रवासन एजेंसी के प्रमुख एन्तोनियो वितॉरिनो ने कहा कि दुनिया एक ऐसे विरोधभास की ग़वाह बन रही है, जैसाकि मानव इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया.
उन्होंने नवीनतम विश्व प्रवासन रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, “जहाँ अरबों लोग कोविड-19 के कारण एक तरह से ठहर गए हैं, करोड़ों अन्य लोग अपने ही देशों के भीतर विस्थापित हो रहे हैं.”

हिंसा और सशस्त्र हमलों से जान बचाना
बेहतर जीवन की तलाश में अपना घर छोड़कर किसी अन्य स्थान पर जाने की एक बड़ी वजह हिंसक संघर्ष है.
इस वर्ष बड़ी संख्या में लोग हिंसा की चपेट में आए, विशेष रूप से अफ़्रीका में, जहाँ व्यापक तौर पर देश की सीमाओं के भीतर, या फिर पड़ोसी देशों में विस्थापन हुआ है.
अनेक अफ़्रीकी देश इससे प्रभावित हुए हैं: मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में राष्ट्रपति चुनाव के बाद लड़ाई शुरू हो गई; सूडान के दार्फूर प्रान्त में अन्तर-सामुदायिक हिंसा की घटनाएँ हुई; पूर्वी काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य में सशस्त्र गुटों ने अपना क़हर बरपाया.
वहीं बुर्किना फ़ासो में हिंसक चरमपंथगी गुटों के हमलों में तेज़ी दर्ज की गई है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग विस्थापन का शिकार हुए.
इथियोपिया के टीगरे क्षेत्र में हिंसक टकराव बढ़ने से चिन्ताएँ भी बढ़ीं और विशाल पैमाने पर विस्थापान हुआ. यूएन शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, हताश, परेशान लोगों ने सूडान में प्रवेश किया और उनके पास पहनने के लिये कपड़ों से ज़्यादा कुछ नहीं था.
इस बीच, ऐरीट्रिया में हिंसा से जान बचाकर इथियोपिया में शरण लेने वाले नागरिक भी टीगरे क्षेत्र में लड़ाई में फँस गए.
मार्च महीने में सैटेलाइट तस्वीरों में दर्शाया गया कि जिन शिविरों में हज़ारों ऐरीट्रियाई शरणार्थी रह रहे थे, उन्हें जला दिया गया था.
यूएन मानवीय राहतकर्मी, अगस्त महीने तक शरणार्थियों तक नहीं पहुँच पाए, और तभी ज़रूरतमन्दों को राहत सामग्री वितरित की गई.

अफ़ग़ानिस्तान में लाखों विस्थापित
अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान के नियंत्रण से पहले ही, देश में सुरक्षा हालात बदतर हो रहे थे और ढाई लाख से अधिक लोग, जुलाई महीने तक अपना घर छोड़कर जाने के लिये मजबूर हो चुके थे.
तब, देश में घरेलू विस्थापितों की संख्या बढ़कर 35 लाख पहुँच गई.
तालेबान का वर्चस्व स्थापित होने के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने देश में अपनी मौजूदगी बनाये रखने का संकल्प व्यक्त किया, ताकि गहराते मानवीय संकट से प्रभावित लोगों तक मदद पहुँचाई जा सके.
यूएन प्रवासन एजेंसी के प्रमुख एंतोनियो वितॉरिनो ने नवम्बर महीने में एक चेतावनी जारी करते हुए कहा कि मौजूदा हिंसक संघर्ष व टकराव, निर्धनता, जलवायु आपदा के कारण, देश ध्वस्य होने के कगार पर बढ़ रहा है.
मध्य अमेरिका में अभूतपूर्व प्रवासन
यूएन शरणार्थी एजेंसी ने मैक्सिको और मध्य अमेरिका में विस्थापन के स्तर को अभूतपूर्व क़रार दिया.
बताया गया है कि क़रीब 10 लाख लोगों ने, क्षेत्र में अपना घर छोड़ा, चूँकि उनके पास अवसरों का अभाव था और वे गैंग, संगठित अपराध, कोविड-19 महामारी और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों में पिस रहे थे.

अमेरिका में नए प्रशासन ने दक्षिणी सीमा पर बिना दस्तावेज़ के साथ प्रवेश करने वाले प्रवासियों और शरणार्थियों के साथ करुणामय व्यवहार का संकेत दिया.
मगर, सार्वजनिक स्वास्थ्य सम्बन्धी शरण पाबन्दियाँ बरक़रार हैं, जिससे प्रवेश द्वार बन्द हो गए और अमेरिका ने लाखों लोगों को मैक्सिको और उनके मूल स्थापनों पर वापिस भेज दिया.
मैक्सिको को भी बड़ी संख्या में लोग एक मंज़िल के रूप में देखते है, और अन्य, मैक्सिको के रास्ते से अमेरिका तक पहुँचना चाहते हैं.
वर्ष 2021 में शरण आवेदनों की संख्या लगभग एक लाख तक पहुँच गई, जोकि एक नया रिकॉर्ड है.
वहीं, वेनेज़्वेला, वहाँ पसरी सामाजिक-आर्थिक बदहाली के कारण दुनिया में सबसे बड़े विस्थापन संकटों मे शुमार हो गया.
60 लाख से अधिक लोग अपना घर छोड़कर जाने के लिये मजबूर हुए हैं और कोविड-19 के कारण वेनेज़्वेला से आने वाले शरणार्थियों व प्रवासियों की ज़रूरतें बढ़ी हैं.
दिसम्बर में, यूएन शरणार्थी एजेंसी और प्रवासन संगठन ने एक अरब 79 करोड़ डॉलर की एक साझा अपील जारी की. इसका उद्देश्य,
वेनेज़्वेला से आए प्रवासियों और शरणार्थियों, और लातिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र में उन्हें शरण देने वाले 17 मेज़बान देशों की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करना था.
भूमध्यसागर में ख़तरनाक समुद्री यात्राएँ
भूमध्यसागर, पिछले अनेक वर्षों से प्रवासियों व शरणार्थियों के लिये, योरोप तक पहुँचने का एक ज़रिया बना हुआ है. मगर, जोखिम भरी ये समुद्री यात्राएँ, इस वर्ष और भी ज़्यादा घातक साबित हुईं.
योरोपीय देशों ने भूमि व समुद्री सीमाओं पर व्यवस्था को और भी सख़्त बना दिया है. वर्ष के पहले छह महीनों में, नाव में बैठकर योरोप पहुँचने का प्रयास कर रहे एक हज़ार 140 लोगों की मौत हो गई.
साल की दूसरी छमाही में सैकड़ों अन्य लोगों की मौत हुई, जोकि उत्तरी अफ़्रीकी देशों या तुर्की से योरोप जाने की कोशिश कर रहे थे.
नवम्बर में ऐसी ही एक घटना में, इंग्लिश चैनल पार कर रहे 27 लोग डूब गए.

फ़्राँस में प्रशासनिक एजेंसियों का कहना है कि वर्ष 2021 में फ्राँस और ब्रिटेन के बीच, 31 हज़ार से अधिक लोगों ने ख़तरनाक समुद्री रास्ते को पार करने का प्रयास किया. साढ़े सात हज़ार से अधिक लोगों को बचाया गया.
लीबिया में सख़्त बर्ताव
समुद्री यात्राएँ करने वाले बहुत से लोगों ने शुरुआत लीबिया से की, जिसके तटीय इलाक़े में जहाज़ों के क्षतिग्रस्त होने की जानलेवा घटनाएँ हुई हैं.
जनवरी महीने में एक घटना में 43 लोग मारे गए; अप्रैल की एक अन्य त्रासदी में 130 लोगों की जान चली गई.
इसके बाद, यूएन प्रवासन व शरणार्थी एजेंसियों ने भूमध्यसागर तलाश एवं बचाव अभियान को फिर से शुरू किये जाने की अपील दोहराई.
शान्ति व सुरक्षा के हालात बेहतर होने के बावजूद, लीबिया में शरणार्थियों व प्रवासियों को ख़तरनाक परिस्थितियों में रहने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है.
उन्हें अक्सर सुरक्षा बलों के अभियानों के दौरान सख़्त बर्ताव का सामना करना पड़ता है. ऐसी घटनाओं में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई है और लोगों को हिरासत में लिये जाने के मामले भी बढ़े हैं.
बेलारूस सीमा पर संकट
सितम्बर महीने में बेलारूस और पोलैण्ड की सीमा के पास एक नया संकट आकार लेता दिखाई दिया. योरोपीय संघ ने बेलारूस पर जानबूझकर प्रवासियों को पोलैण्ड की सीमा के पार भेजने की कोशिश करने का आरोप लगाया.
बेलारूस ने इस आरोप को ख़ारिज किया है. ग़ौरतलब है कि बेलारूस पर वर्ष 2020 के विवादित राष्ट्रपति चुनाव के बाद विरोध प्रदर्शनों और मानवाधिकार हनन के मामलों के कारण प्रतिबन्ध लगाए गए हैं.

योरोपीय संघ का कहना है कि इन प्रतिबन्धों के परिणामस्वरूप बदले की कार्रवाई के तहत, प्रवासियों को पोलैण्ड सीमा पर धकेला जा रहा है.
इसके बाद, पूर्वी पोलैण्ड के इलाक़ों में आपात स्थिति पैदा पैदा हो गई, और इराक़, अफ़ग़ानिस्तान और अन्य देशों से हज़ारों शरणार्थियों ने बेलारूस से पोलैण्ड पहुँचने की कोशिशें की.
इस दौरान, प्रवासियों को रोकने के लिये सुरक्षाकर्मियों द्वारा सख़्त कार्रवाई किये जाने की भी रिपोर्टें मिलीं. तापमान गिरने और बेहद ठण्डा मौसम होने के कारण अनेक शरणार्थियों व प्रवासियों की भी मौत होने की ख़बरें सामने आईं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने दोनों देशों, संकट का हल निकालने और मानवाधिकारो का सम्मान किये जाने का आग्रह किया है.
जलवायु संकट पर बढ़ती चिन्ता
जबरन व स्वैच्छिक विस्थापन के लिये हिंसक संघर्ष व टकराव को एक अहम कारण माना जाता है. मगर आने वाले वर्षों में बदलती जलवायु भी एक बड़ी भूमिका निभा सकती है.
यूएन शरणार्थी एजेंसी के आँकड़े दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में, मौसम सम्बन्धी संकटों के कारण, हिंसक संघर्ष व टकराव की तुलना में दोगुना विस्थापन हुआ है.
वर्ष 2010 से अब तक, चरम मौसम घटनाओं ने औसतन, दो करोड़ 15 लाख लोगों को घर छोड़कर जाने के लिये मजबूर किया है.

फ़िलहाल, अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक संघर्ष पर ध्यान केंद्रित है, मगर, देश में आम नागरिकों को अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले तीन दशकों में, देश के कुल 34 प्रान्तों में लगभग हर एक प्रान्त, किसी ना किसी रूप में एक आपदा की चपेट में आ चुका है.