वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
बांग्लादेश के कुटुपलाँग में एक स्वास्थ्य केन्द्र पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक संक्रमण रोकथाम विशेषज्ञ, नर्सों को प्रशिक्षण देते हुए.

2021 पर एक नज़र:  वायरस को 'कम करके आँकना, होगी एक बड़ी भूल' 

WHO/Blink Media/Fabeha Monir
बांग्लादेश के कुटुपलाँग में एक स्वास्थ्य केन्द्र पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक संक्रमण रोकथाम विशेषज्ञ, नर्सों को प्रशिक्षण देते हुए.

2021 पर एक नज़र:  वायरस को 'कम करके आँकना, होगी एक बड़ी भूल' 

स्वास्थ्य

कोविड-19 महामारी के विरुद्ध बेहद कम समय में, चमत्कारी ढँग से कारगर वैक्सीन विकसित होने के बावजूद, कोरोनावायरस का फैलना और उसका रूप व प्रकार बदलना जारी है. वैश्विक महामारी के लम्बा खिंच जाने की एक प्रमुख वजह, वैश्विक सहयोग व एकजुटता का अभाव बताई गई है. वर्ष 2021 के दौरान, विकासशील देशों में आबादी को संक्रमण से रक्षा कवच प्रदान करने के लिये वैक्सीन वितरण की शुरुआत की गई, और भावी स्वास्थ्य संकटों से निपटने की तैयारियों की दिशा में क़दम बढ़ाये गए. 

नवम्बर 2021 में, कोरोनावायरस के डेल्टा वैरीएण्ट के मुक़ाबले, कहीं ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाले ओमिक्रॉन के कारण, दुनिया भर में चिन्ताएँ गहराने लगीं.

मगर, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ही ऐसी स्थिति के प्रति आगाह कर दिया था. 

इस सम्बन्ध में भय को समझा जा सकता है, मगर ओमिक्रॉन के फैलने से, हैरानी नहीं होनी चाहिये, चूँकि संयुक्त राष्ट्र ने निरन्तर चेतावनी जारी की हैं कि वायरस के नए रूपों व प्रकारों को उभरने से नहीं रोका जा सकता.

और ऐसा इसलिये, चूँकि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, महज़ सम्पन्न देशों के नागरिकों के बजाय, सर्वजन के लिये टीकाकरण सुनिश्चित करने में विफल साबित हुआ है. 

दिसम्बर महीने के मध्य में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने चेतावनी जारी करते हुए कहा, “ओमिक्रॉन जिस गति से फैल रहा है, वैसा हमने पिछले किसी वैरिएण्ट के साथ नहीं देखा है.”

“निश्चित रूप से, हमने अब तक जान लिया है कि इस वायरस को कम करके आँकना बहुत बड़ा जोखिम होगा."

न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में स्वास्थ्यकर्मी, अप्रैल 2020 में, कोविड-19 के कारण मौत का शिकार हुए एक व्यक्ति को ले जाते हुए.
UN Photo/Evan Schneider
न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में स्वास्थ्यकर्मी, अप्रैल 2020 में, कोविड-19 के कारण मौत का शिकार हुए एक व्यक्ति को ले जाते हुए.

‘एक विनाशकारी नैतिक विफलता’

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने जनवरी महीने में ही ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ के ख़तरों के प्रति आगाह करना शुरू कर दिया था. 

उन्होंने चिन्ता जताई थी कि अनेक देश, टीकाकरण के लिये अपनी सीमाओं से परे जाकर देखने के लिये तैयार नहीं हैं, जोकि स्वयं उनके लिये नुक़सान की वजह बन सकता है.

यूएन के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने कोरोनावायरस टीकों की जमाखोरी की निन्दा करते हुए क्षोभ जताया कि इससे अफ़्रीकी महाद्वीप को वैक्सीन हासिल होने और वहाँ हालात सामान्य होने में लम्बा समय लगेगा. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने भी पहले ही स्पष्ट चेतावनी जारी कर दी थी कि कोविड-19 वायरस पर क़ाबू पाने में जितना लम्बा समय लगेगा, नए वैरीएण्ट के उभरने का जोखिम उतना ही अधिक होगा. 

इनमें से, वायरस के कुछ रूपों व प्रकारों पर वैक्सीन बेअसर साबित होने की आशंका भी व्यक्त की गई थी. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक घेबरेयेसस ने कोविड-19 टीकों का न्यायसंगत वितरण ना हो पाने को, एक ऐसी विनाशकारी विफलता क़रार दिया, जिसकी क़ीमत निर्धनतम देशों को चुकानी पड़ेगी. 

जुलाई महीने तक, डेल्टा वैरीएण्ट, कोविड-19 के सबसे प्रमुख प्रकार के रूप में उभरा, और फिर वैश्विक महामारी एक दुखद पड़ाव पर पहुँच गई. 

कोविड-19 के कारण, विश्व भर में मृतक संख्या 40 लाख के पार पहुँची, और उसके चार महीने बाद ही यह आँकड़ा 50 लाख तक पहुँच गया. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी प्रमुख ने इसके लिये वैक्सीन के न्यायोचित उत्पादन व वितरण की कमी को ज़िम्मेदार ठहराया है.

कोवैक्स: एक ऐतिहासिक वैश्विक प्रयास

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने विश्व भर में सर्वाधिक निर्बलों की सहायता के लिये, ‘कोवैक्स’ नामक पहल की अगुवाई की.

इसके ज़रिये, त्वरित गति से, समन्वित ढँग से महामारी का मुक़ाबला करने और ज़रूरतमन्द देशों तक कोरोनावायरस टीकों को पहुँचाने के प्रयास किये गए. 

धनी देशों व निजी दानदाताओं के वित्तीय समर्थन की मदद से, इस पहल के लिये दो अरब डॉलर की रक़म जुटाई गई.

इस पहल को महामारी के शुरुआती महीनों में ही स्थापित किया गया, ताकि वैक्सीन विकसित होने की स्थिति में, निर्धन देशों को पीछे छूटने से रोका जा सके.

कोवैक्स पहल के तहत, विकासशील देशों में, वैक्सीन की आपूर्ति मार्च 2021 में घाना और आइवरी कोस्ट में वितरण के साथ शुरू हुई.

साथ ही, हिंसक संघर्ष व टकराव से जूझ रहे यमन में भी कोविड-19 टीकों की खेप पहुँचाई गई.

वैश्विक महामारी से मुक़ाबले में इस लम्हे को, हालात को बदल देने वाला क़रार दिया गया. 

अप्रैल महीने तक कोवैक्स मुहिम के तहत, 100 से ज़्यादा देशों में कोरोनावायरस टीकों की खेप पहुँचाई जा चुकी थी.   

भारत के कोहिमा में एक महिला को कोविड-19 वैक्सीन की ख़ुराक दी जा रही है.
© UNICEF/Tiatemjen Jamir
भारत के कोहिमा में एक महिला को कोविड-19 वैक्सीन की ख़ुराक दी जा रही है.

मगर, वैक्सीन वितरण में पसरी विषमता की समस्या फिर भी नहीं नहीं सुलझ पाई.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने 14 सितम्बर को बताया कि दुनिया भर में पाँच अरब 70 करोड़ ख़ुराकें दी जा चुकी हैं, मगर अफ़्रीकियों को महज़ दो फ़ीसदी ही मिल पाई हैं. 

शिक्षा, मानसिक स्वास्थ, प्रजनन सेवाएँ

कोविड-19 महामारी के कारण, विश्व भर में लाखों लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित तो हुआ ही है, अन्य बीमारियों के उपचार, शिक्षा व मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर हुआ है.

उदाहरणस्वरूप, कैंसर के निदान व उपचार में, क़रीब आधी संख्या में देशों में गम्भीर व्यवधान दर्ज किया गया. 

दस लाख से अधिक लोग, टीबी (तपेदिक) के उपचार के लिये अतिआवश्यक सेवाओं से वंचित हो गए, बढ़ती विषमता के कारण निर्धन देशों में एचआईवी/एड्स सेवाओं की सुलभता प्रभावित हुई है, और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं में आए व्यवधान से लाखों महिलाओं के जीवन पर असर पड़ा.

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का मानना है कि केवल दक्षिण एशिया में ही, स्वास्थ्य सेवाओं में गम्भीर व्यवधान दर्ज किया गया, जिसके कारण दो लाख 39 हज़ार अतिरिक्त बच्चों व मातृत्व मौतों की आशंका जताई गई है. 

यमन में महामारी के कारण, विनाशकारी हालात पैदा हो गए, और हर दो घण्टे में प्रसव के दौरान एक महिला की मौत हो गई. 

बच्चों पर भीषण असर

मानसिक स्वास्थ्य के मामले में, पिछला वर्ष सभी के लिये एक चुनौतीपूर्ण साल था, मगर बच्चों व युवजन पर विशेष रूप से इसका गहरा असर हुआ है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) ने मार्च महीने में बताया कि बच्चों को अब एक विनाशकारी और बदल गए नए सामान्य माहौल (new normal) में रहने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है. 

मलावी के एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षिका व छात्रों ने फ़ेस मास्क पहना है.
© UNICEF Malawi
मलावी के एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षिका व छात्रों ने फ़ेस मास्क पहना है.

बचपन के हर अहम आयाम पर दशकों से दर्ज की गई प्रगति की दिशा भी पलट गई है.

विकासशील देशों में बच्चे, विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, जहाँ बाल निर्धनता की दर में 15 फ़ीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है. 

इसके अलावा, इन देशों में 14 करोड़ अतिरिक्त बच्चों के ऐसे घर-परिवारों में रहने की आशंका व्यक्त की गई है, जोकि निर्धनता रेखा से नीचे जीवन गुज़ार रहे हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में भी वैश्विक महामारी के भयावह प्रभाव दिखाई दिये हैं. 16 करोड़ से अधिक स्कूली बच्चे, क़रीब एक वर्ष तक कक्षाओं में पढ़ाई करने से वंचित हो गए. 

स्कूलों में तालाबन्दी के दौरान हर तीन में से एक बच्चे के पास, घर बैठकर पढ़ाई करने (रिमोट लर्निंग) के साधन नहीं थे.

यूनीसेफ़ ने वर्ष 2020 के अपने सन्देश को दोहराया है कि स्कूलों में तालाबन्दी को अन्तिम उपाय के रूप में ही अपनाया जाना होगा.

अगस्त महीने में, गर्मियों के अवकाश के बाद, यूनीसेफ़ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कक्षाओं में सुरक्षित वापसी के लिये अपनी सिफ़ारिशें पेश की. 

इनमें स्कूल कर्मचारियों को राष्ट्रव्यापी टीकाकरण योजनाओं का हिस्सा बनाये जाने और 12 वर्ष व उससे अधिक उम्र के सभी बच्चों के प्रतिरक्षण का सुझाव दिया गया है.

कोविड त्रासदी, एक बार आने वाली आपदा नहीं

वर्ष 2021 के दौरान, वैक्सीन के न्यायोचित वितरण के लिये पुरज़ोर ढँग से आवाज़ उठाई गई.

इसके समानान्तर, संयुक्त राष्ट्र ने भविष्य में उभरने वाली महामारियों पर जवाबी कार्रवाई के लिये नए तौर-तरीक़े अपनाये जाने पर बल दिया. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने सिलसिलेवार बैठकों के बाद, मई महीने में, जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एक अन्तरराष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की, जिसका उद्देश्य, वैश्विक महामारी से निपटने के लिये नियंत्रण उपाय करना है.

भारत की राजधानी नई दिल्ली के एक अस्पताल में एक नर्स, डॉक्टर को कोविड वॉर्ड में जाने से पहले तैयार कर रही है.
© UNICEF/Srishti Bhardwaj
भारत की राजधानी नई दिल्ली के एक अस्पताल में एक नर्स, डॉक्टर को कोविड वॉर्ड में जाने से पहले तैयार कर रही है.

जुलाई में, जी20 समूह की बैठक में महामारियों से तैयारियों के लिये एक स्वतंत्र रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जिसका निष्कर्ष था कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये धन का अभाव है.

विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि कोविड-19, बस एक बार घटित होने वाली आपदा नहीं है.

धनराशि के अभाव में वैश्विक महामारी के लम्बा खिंच जाने और सभी देशों को बार-बार प्रभावित करने वाली लहरों के आने का ख़तरा है.

इसके अलावा, भविष्य में नई वैश्विक महामारियों के उभरने की आशंका पर भी चिन्ता जताई गई है.

2021 का अन्त एक सकारात्मक घटनाक्रम के साथ हुआ, और नवम्बर में विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली के दौरान, देशों ने महामारी की रोकथाम के लिये एक नए वैश्विक समझौते को आकार दिये जाने पर सहमति जताई. 

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने माना है कि अभी एक लम्बा सफ़र तय किया जाना और भारी-भरकम काम को पूरा किया जाना बाक़ी है, मगर यह सहमति आशा का स्रोत है, जिसकी दुनिया को आवश्यकता है.