पोलैण्ड-बेलारूस सीमा पर प्रवासी व शरणार्थी संकट सुलझाने का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने पोलैण्ड और बेलारूस की सीमा पर जारी प्रवासी व शरणार्थी संकट पर चिन्ता जताते हुए, दोनों देशों से इसे सुलझाने का आग्रह किया है. यूएन एजेंसी ने कठिन हालात में फँसे शरणार्थियों और प्रवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा किये जाने का आहवान किया है.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने मंगलवार को दोनों देशों के नाम एक अपील जारी करते हुए कहा कि व्यथित कर देने वाली इस समस्या से, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत तय दायित्वों के अनुरूप ही निपटा जाना होगा.
Practices and policy choices are being made by both #Belarus & #Poland that violate refugees' & migrants' rights, incl. pushing people up to, or across, the border. We urge the two countries to address the appalling situation and #StandUp4Migrants' rights: https://t.co/EbGpyB9sOD pic.twitter.com/7DI8upACOb
UNHumanRights
इससे पहले, यूएन की एक मानवाधिकार टीम ने 29 नवम्बर से 3 दिसम्बर तक पोलैण्ड का दौरा किया था, जिसके बाद यह बयान जारी किया गया है.
मगर, टीम के सदस्यों को सीमावर्ती इलाक़े में जाने की अनुमति नहीं दी गई थी, जबकि बेलारूस ने दौरे के अनुरोध को ख़ारिज कर दिया था.
मानवाधिकार टीम ने अगस्त और नवम्बर महीने के दौरान, बेलारूस के रास्ते पोलैण्ड पहुँचने वाले परिवारों और व्यक्तियों से बातचीत की.
लोगों ने सीमा के दोनों ओर विकट हालात को बयाँ करते हुए बताया कि जमा देने वाले तापमान में, भोजन, स्वच्छ जल, शरण की सीमित सुलभता है.
यूएन कार्यालय की प्रवक्ता लिज़ थ्रोसेल ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि, “अधिकाँश लोगों ने कहा कि जब वे बेलारूस में थे, तो उन्हें सुरक्षा बलों ने मारा-पीटा और धमकियाँ दीं. और ये भी आरोप लगाया कि बेलारूस के सुरक्षा बलों ने उन्हें सीमा पार करने के लिये मजबूर किया, उन्हें निर्देश दिये कि कब और कहाँ पार करनी है, और लोगों को सीमा क्षेत्र छोड़ने व वापिस मिन्स्क जाने से रोका.”
अनेक लोगों का कहना है कि बेलारूस के सुरक्षा बलों ने भोजन और पानी के लिये उनसे ऊँची क़ीमत वसूलने का प्रयास किया. मानवाधिकार कार्यालय ने इन आरोपों पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है.
यूएन टीम को ऐसी अनेक रिपोर्टें मिली हैं, जिनमें अन्तरराष्ट्रीय संरक्षण का अनुरोध करने वाले व्यक्तियों व बच्चों को, पोलैण्ड से तत्काल बेलारूस वापिस भेज दिया गया.
उन्होंने बताया कि पोलैण्ड में मौजूदा क़ानून के अन्तर्गत, अनाधिकारिक सीमा पार कर देश में प्रवेश करने वाले लोगों को तत्काल वापिस भेजा जा सकता है.
यूएन एजेंसी ने पोलैण्ड से क़ानून पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है और इसके बजाय, वैयक्तिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, मामलों की अर्थपूर्ण समीक्षा करने का सुझाव दिया है.
इसके ज़रिये, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अनुरूप संरक्षण सम्बन्धी ज़रूरतों के निर्धारण में मदद मिलेगी.
पोलैण्ड ने उन प्रवासियों व शरणार्थियों को व्यवस्थागत ढँग से हिरासत में लिया है, जिन्हें बेलारूस वापिस नही भेजा गया है.
इसके मद्देनज़र, यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने ध्यान दिलाया है कि हिरासत में रखे जाने को अन्तिम उपाय के तौर पर ही इस्तेमाल में लाया जाना चाहिये, और वह भी सीमित अवधि के लिये.
अनेक लोगों ने बताया कि हिरासत में रखे जाने के दौरान, उन्हें उपयुक्त स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल मुहैया नहीं कराई गई है.
स्वतंत्र वकीलों, मानवाधिकारों की निगरानी करने वाले कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज संगठनों समेत, उनका बाहरी दुनिया से सीमित सम्पर्क हो पाया है.
सीमावर्ती इलाक़ा, प्रतिबन्धित क्षेत्र है और वहाँ मानवाधिकार समूहों, मानवीय राहत संगठनों, वकीलों और मीडिया की पहुँच ना होना, गहरी चिन्ता का विषय है.
इसके अलावा, जो लोग शरणार्थियों व अन्य प्रवासियों तक सहायता पहुँचा रहे हैं, या वे पत्रकार जो घटनाक्रम की कवरेज कर रहे हैं, उन्हें भी अपना काम करने में मुश्किलें पेश आ रही हैं.
उनके उत्पीड़न व उन्हें डराये-धमकाये जाने के मामले भी सामने आये हैं.
लिज़ थ्रोसल ने कहा कि सुरक्षा पर केंद्रित और प्रवासी-विरोधी एक माहौल में, दोनों पक्ष ऐसी नीतिगत विकल्प अपना रहे हैं जिनसे प्रवासियों व शरणार्थियों के मानवाधिकारों का हनन होता है.
इन हालात में, यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने बेलारूस व पोलैण्ड, दोनों देशों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि कार्रवाई के केंद्र में शरणार्थियों और प्रवासियों के मानवाधिकारों को रखा जाए.