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लिंग-आधारित हिंसा, एक ‘अदृश्य आपात स्थिति’ – रोकथाम उपायों पर चर्चा

मैक्सिको में महिलाएँ, अपनी पीड़ित बेटियों के लिये न्याय की माँग कर रही हैं.
Primavera Diaz
मैक्सिको में महिलाएँ, अपनी पीड़ित बेटियों के लिये न्याय की माँग कर रही हैं.

लिंग-आधारित हिंसा, एक ‘अदृश्य आपात स्थिति’ – रोकथाम उपायों पर चर्चा

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष महिला अधिकारियों का कहना है कि दुनिया भर में घरों, कार्यस्थलों, रास्तों - सड़कों और ऑनलाइन माध्यमों पर महिलाओं व लड़कियों के लिये लिंग-आधारित हिंसा का शिकार होने का जोखिम बहुत ज़्यादा है. उन्होंने गुरूवार को आयोजित एक चर्चा के दौरान चिन्ता जताई कि कोविड-19 महामारी के दौरान यह समस्या और गहराई है.   

संयुक्त राष्ट्र उपमहासचिव आमिना जे मोहम्मद और यूएन एजेंसियों की शीर्ष अधिकारियों ने, न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय में आयोजित एक चर्चा के दौरान इस ‘अदृश्य आपात स्थिति’ पर विराम लगाने के रास्तों पर विचार-विमर्श किया.

खुले माहौल में विचारों के स्पष्ट आदान-प्रदान के साथ, इस बैठक का आयोजन ‘स्पॉटलाइट’ पहल के तहत किया गया.

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यह संयुक्त राष्ट्र और योरोपीय संघ का एक साझा कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का उन्मूलन करना है.  

यूएन उपप्रमुख आमिना जे मोहम्मद ने अपने वीडियो सम्बोधन के ज़रिये, चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि लिंग-आधारित हिंसा, लाखों महिलाओं व लड़कियों के लिये स्पष्ट रूप से मौजूद एक ख़तरा है.  

यूएन के वैश्विक संचार विभाग (DGC) में अवर महासचिव मलीसा फ़्लेमिंग ने, महिलाओं को निशाना बनाए जाने से, टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में और अन्य प्रभावों के सम्बन्ध में सवाल किया.  

यूएन उपमहासचिव ने कहा, “असल में, यह सभी एसडीजी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये जोखिम पैदा कर देता है.”

“इसके दायरे में मानवता के 50 प्रतिशत हिस्से के आए बिना, चाहे यह ग़रीबी का अन्त हो, शिक्षा की सुलभता हो, या एक शिष्ट व उपयुक्त रोज़गार, ये सभी ख़तरे में हैं.”

जीवन के हर पहलू पर असर 

यूएन की एक स्वतंत्र मानवाधिकार कार्यकर्ता रीम अलसालेम का मानना है कि लिंग-आधारित हिंसा, निजी और सार्वजनिक, जीवन के हर आयाम को प्रभावित करती है और इसे हर जगह देखा जा सकता है.

“यह कुछ-कुछ जलवायु संकट की तरह है. तथ्य मौजूद हैं. हम इसे देख सकते हैं, हम इसके दुष्परिणामों को देख सकते हैं.” 

ग़ौरतलब है कि 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम पर केन्द्रित, 16 दिन तक एक वार्षिक वैश्विक मुहिम चलाई गई, जिसके समापन के तौर पर यह चर्चा आयोजित की गई. 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, दुनिया भर में लिंग-आधारित हिंसा के मामले बढ़े हैं. 

यह भी आशंका जताई गई है कि ऐसी घटनाओं की वास्तविक संख्या सामने नहीं आ पाती है.  

महामारी के दौरान टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल बढ़ने से, महिलाओं व लड़कियों के लिये, ऑनलाइन माध्यमों पर जोखिम बढ़े हैं, जहाँ उन्हें घेर कर परेशान व उनका उत्पीड़न किया जाता है.

भय का अनुभव

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की प्रमुख हैनरीएटा फ़ोर ने भी ऑनलाइन माध्यमों पर युवा लड़कियों व किशोरियों के लिये बढ़ते ख़तरों के प्रति आगाह किया.

उन्होंने कहा कि उन्हें यौन सन्देश भेजे जाते हैं, और ऐसी घटनाओं से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, वैश्विक महामारी के दौरान लिंग-आधारित हिंसा में आई तेज़ी, एक परछाई में फैल रही महामारी को दर्शाती है. 

ऐसी घटनाओं के बावजूद, पीड़ित महिलाएँ, अपने साथ हुए दुर्व्यवहार पर बात करने के लिये अक्सर सामने आने से कतराती हैं.

मादक पदार्थों एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में, 47 हज़ार महिलाओं व लड़कियों की उनके अंतरंग साथी या पारिवारिक सदस्यों ने हत्या कर दी. 

महिला सशक्तिकरण के लिये प्रयासरत यूएन संस्था (UN Women) की नवनियुक्त कार्यकारी निदेशक, सीमा बाहूस ने कहा कि जिन संस्थाओं का दायित्व महिलाओं की रक्षा करना है, उनमें महिलाओं का भरोसा बहुत कम है.

“पहले, वे हिंसा का अनुभव करती हैं. फिर वे समर्थन सेवाओं की कमी और न्याय की कमी का अनुभव करती हैं, जिसकी वह तलाश कर रही होती हैं.”

“और अक्सर, उन्हें महसूस होता है कि आपबीती बताने और पहुँच होने के बाद भी, दोषियों को कम मामलों में ही न्याय के कटघरे में लाया जाता है.”

‘चुप्पी की साज़िश’ का अन्त

बताया गया है कि संयुक्त राष्ट्र और उसके साझीदार संगठन, महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के अन्त के लिये, चुप्पी की साज़िश को तोड़ने के लिये प्रयासरत हैं.

इसके ज़रिये यह सुनिश्चित किये जाने की कोशिश की जा रही है कि महिलाएँ, अपने लिये आवाज़ उठा सकें.

लिंग-आधारित हिंसा के विरोध में, तंज़ानिया के दार एस सलाम में स्कूली छात्राएँ एक मार्च निकालते हुए.
UN Women Tanzania/Deepika Nath
लिंग-आधारित हिंसा के विरोध में, तंज़ानिया के दार एस सलाम में स्कूली छात्राएँ एक मार्च निकालते हुए.

स्पॉटलाइट पहल के ज़रिये, वैश्विक महामारी के दौरान भी साढ़े छह लाख से अधिक महिलाओं व लड़कियों के लिये समर्थन सेवाओं की सुलभता सुनिश्चित की गई है.

यूएन बाल कोष प्रमुख ने मैक्सिको जैसे देशों में यूनीसेफ़ की गतिविधियों का उदाहरण दिया जहाँ सरकार व अतिथि-सत्कार सैक्टर के साथ एक साझेदारी के ज़रिये, होटलों में महिला पीड़ितों व उनके बच्चों के लिये आश्रय प्रदान किया गया है.  

इराक़, इक्वाडोर और लेबनान में भी, यूनीसेफ़ ने वर्चुअल सुरक्षित स्थल बनाए हैं, ताकि महिलाओं व लड़कियों के लिये सेवा व जानकारी का प्रवाह व सुलभता बढ़ाई जा सके.

विशेष रूप से उन महिलाओं के लिये जोकि विकलांगता या अन्य रूपों में हाशियेकरण का शिकार हैं.

डिजिटलीकरण पर बल

मादक पदार्थों एवं अपराध पर यूएन कार्यालय की प्रमुख ग़ादा वॉली ने महामारी के दौरान सामने आए एक अन्य सकारात्मक रुझान का उल्लेख किया. 

उन्होंने कहा कि देशों की सरकारें अब डिजिटलीकरण व ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म (ई-प्लैटफ़ॉर्म) में निवेश किये जाने की अहमियत को पहचानती हैं. 

इसमें पीड़ितों व प्रभावितों के लिये न्याय सुनिश्चित किया जाना भी है. 

उन्होंने अन्य क्षेत्रों में बेहतरी की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि महिलाएँ तब ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं, जब ज़्यादा संख्या में महिला पुलिसकर्मी, महिला न्यायाधीश होती हैं, और जब निर्णय-निर्धारण करने और समर्थन व सहायता प्रदान करने वाली संस्थाओं में समता और समुचित लैंगिक प्रतिनिधित्व होता है.