पाकिस्तान: मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीस खटक को सज़ा की निन्दा

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में अग्रणी मानवाधिकार और नागरिक समाज कार्यकर्ता इदरीस खटक को दोषी क़रार दिये जाने और 14 वर्ष के कारावास की सज़ा सुनाए जाने के फ़ैसले की निन्दा की है. मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सैन्य अदालत में चलाए गए मुक़दमे की कार्रवाई की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाया है.
इदरीस खटक, पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर प्रान्त में अल्पसंख्यक पश्तून समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिये प्रयासरत हैं, और उन्होंने जबरन गुमशुदगी के शिकार लोगों के मामलों पर काफ़ी काम किया है.
🇵🇰 #Pakistan: UN experts condemn reported conviction of leading human rights defender and minority civil society activist Idris Khattak, who was sentenced to 14 years imprisonment following an apparent unfair trial by a military court in Pakistan: https://t.co/HjbPJaXoc8 pic.twitter.com/wmJEiyK0az
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उन पर जासूसी में लिप्त होने और देश के हितों व सुरक्षा के विपरीत आचरण करने के आरोप लगाए गए, और पाकिस्तान सेना अधिनियम के अन्तर्गत एक सैन्य अदालत में मुक़दमा चलाया गया.
बताया गया है कि फ़ील्ड जनरल कोर्ट मार्शल ने इदरीस खटक को, कथित तौर पर गोपनीय ढंग से सज़ा सुनाई और ना तो उनके परिवारजन, और ना ही उनके वकील को इस सम्बन्ध में जानकारी दी गई.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “एक आम नागरिक के तौर पर, उन पर मुक़दमा एक सिविल अदालत में चलाया जाना चाहिये था.”
“यह राजसत्ता का दायित्व है कि इदरीस खटक का, एक निष्पक्ष व सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार सुनिश्चित किया जाए, और कि यह सुनवाई क़ानून द्वारा स्थापित, एक सक्षम, स्वतंत्र व निष्पक्ष ट्राइब्यूनल द्वारा हो.”
पाकिस्तानी अधिकारियों ने पहली बार 16 जून 2020 को यह माना था कि इदरीस खटक उनकी हिरासत में हैं.
उनकी ओर से यह स्वीकारोक्ति, इदरीस खटक को कथित रूप से जबरन ग़ायब किये जाने के, सात महीने बाद सामने आई थी, मगर यह नहीं बताया गया था कि उन्हें किस स्थान पर रखा गया है.
सुरक्षा एजेंसियों ने इदरीस खटक को 13 नवम्बर 2019 को ख़ैबर पख़्तूनख्वाह प्रान्त में अगवा किया था, वह सात महीनों तक जबरन गुमशुदगी का शिकार रहे, जिसमें उन्हें यातना दिये जाने का जोखिम भी था.
पिछले दो वर्षों में, इदरीस खटक का बाहरी दुनिया से सम्पर्क बेहद सीमित रहा है. खटक के परिवार को उनसे दो ही बार मिलने की अनुमति दी गई, जबकि उनके वकील भी मुक़दमे की कार्रवाई शुरू होने से पहले, उनसे दो बार मिले हैं.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अपने वक्तव्य में सैन्य अदालत के इस फ़ैसले को पाकिस्तान में मानवाधिकार समुदाय के विरुद्ध एक ऐसा हमला बताया है, जिससे सैन्य व सुरक्षा बलों द्वारा या उनकी सहमति से अंजाम दिये गए कथित हनन के मामलों की निगरानी कर रहे कार्यकर्ताओं तक, चुप्पी साधने वाला सन्देश पहुँचता है.
मानवाधिकार विशेषज्ञोंं के समूह ने इदरीस खटक सहित उन मानवाधिकार व नागरिक समाज कार्यकर्ताओं की रक्षा किये जाने का आग्रह किया है, जिन्हें मानवाधिकारों पर उनके कामकाज के लिये या तो उन्हें गिरफ़्तार किया गया या फिर उन्हें जबरन ग़ायब करा दिया गया.
“उनके परिवारों के लिये मुआवज़ा, सच्चाई और न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिये.”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में दोषियों की जवाबदेही तय की जानी होगी.
यूएन के विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि इदरीस खटक के अधिकारों का हिरासत व मुक़दमे की कार्रवाई के दौरान, अनेक बार व्यवस्थागत ढंग से हनन किया गया.
उन्होंने इस मामले को एक ऐसा चिन्ताजनक रुझान क़रार दिया है, जिसके ज़रिये मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और मुखर नागरिक समाज कार्यकर्ताओं की आवाज़ दबाने का प्रयास किया जा रहा है.
बताया गया है कि इसके लिये आतंकवाद-निरोधक, सुरक्षा क़ानूनों, डराने-धमकाने जाने, गुप्त ढंग से हिरासत में रखने, यातना देने और जबरन गुमशुदगी जैसे तरीक़ों का सहारा लिया जा रहा है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इदरीस खटक से जुड़ी सभी जानकारी साझा किये जाने और उनके परिवार व वकील को उनसे मिलने की अनुमति दिये जाने का आग्रह किया है.
उन्होंने पाकिस्तान से, इदरीस खटक को अगवा, जबरन ग़ायब किये जाने और सम्पर्क करने की अनुमति दिये बिना हिरासत में रखे जाने के मामले की एक त्वरित व निष्पक्ष जाँच का आग्रह किया है.
पाकिस्तान सरकार से अपील जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों में ये विशेष रैपोर्टेयर शामिल हैं.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों को, यूएन मानवाधिकार परिषद नियुक्त करती है, और वो अपनी निजी हैसियत में और स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.