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'जबरन घर छोड़ने के लिये मजबूर', रोहिंज्या समुदाय को ना भुलाने की अपील 

बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार के एक शरणार्थी शिविर में एक महिला बाज़ार जा रही है.
UN Women/Allison Joyce
बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार के एक शरणार्थी शिविर में एक महिला बाज़ार जा रही है.

'जबरन घर छोड़ने के लिये मजबूर', रोहिंज्या समुदाय को ना भुलाने की अपील 

मानवाधिकार

म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एण्ड्रयूज़ ने, बांग्लादेश का अपना पहला आधिकारिक दौरा शुरू करते हुए आगाह किया है कि म्याँमार से अपनी जान बचाकर कर सुरक्षित शरण की तलाश में जाने वाले, रोहिंज्या समुदाय के क़रीब 10 लाख लोगों की व्यथा को कभी नहीं भुलाया जाना होगा. 

म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर टॉम एण्ड्रयूज़ ने सोमवार को, एक वक्तव्य जारी करते हुए ध्यान दिलाया कि रोहिंज्या समुदाय को, म्याँमार की सेना के जनसंहारी हमलों से जान बचाने के लिये भागना पड़ा.

उन्होंने कहा कि “रोहिंज्या समुदाय म्याँमार में अपनी घर वापसी से अधिक कुछ नहीं चाहता है.“

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मगर उनकी सुरक्षित, गरिमामय और सतत वापसी के लिये परिस्थितियों का निर्माण किये जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है.  

म्याँमार में यह जटिल रोहिंज्या शरणार्थी संकट तब शुरू हुआ, जब अगस्त 2017 में पश्चिमी म्याँमार में दूरदराज़ के इलाक़ों में पुलिस चौकियों पर हथियारबन्द गुटों ने हमले किये, जिनके लिये कथित रूप से समुदाय को ज़िम्मेदार ठहराया गया. 

इसके बाद, अल्पसंख्यक, मुख्यत: मुसलमान, रोहिंज्या समुदाय के विरुद्ध व्यवस्थागत ढँग से जवाबी हमले किये गए.

अगले कुछ सप्ताहों के दौरान, लगभग सात लाख रोहिंज्या मुसलमान व अन्य समुदायों के लोग अपने घर छोड़कर सुरक्षा की तलाश में बांग्लादेश पहुँच गए.

इतने बड़े पैमाने पर रोहिंज्या लोगों के म्याँमार से भागकर बांग्लादेश पहुँचने से पहले भी वहाँ लगभग दो लाख रोहिंज्या शरणार्थी रह रहे थे जो म्याँमार से विस्थापित हुए थे.

संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों व मानवाधिकार संगठनों ने इन हमलों को जातीय सफ़ाये के प्रयास क़रार दिया है.

यूएन के विशेष रैपोर्टेयर अपनी छह दिवसीय बांग्लादेश यात्रा के दौरान राजधानी ढाका के अलावा, कॉक्सेस बाज़ार में स्थित रोहिंज्या शरणार्थी शिविरों का दौरा करेंगे.

साथ ही, उनका कार्यक्रम भाषन चार द्वीप पर जाने का भी कार्यक्रम है, जहाँ रोहिंज्या समुदाय के अनेक लोगों को बसाया गया है.  

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एण्ड्रयूज़, बांग्लादेश सरकार व नागरिक समाज के प्रतिनिधियों, यूएन अधिकारियों और रोहिंज्या समुदाय के लोगों के साथ मुलाक़ात करेंगे.

उन्होंने अपने बयान में कहा, “जब म्याँमार में सैन्य नेतृत्व ने, म्याँमार की जनता के मानवाधिकारों का व्यवस्थागत ढँग से हनन जारी रखा है, तो यह अहम है कि वैश्विक समुदाय उन लोगों को समर्थन प्रदान करे, जिन्हें म्याँमार में अपने घर छोड़कर, बांग्लादेश जाने के लिये मजबूर किया गया है.”

महत्वपूर्ण अवसर

उन्होंने कहा कि रोहिंज्या समुदाय से मुलाक़ात का अवसर, उनके लिये सम्मान की बात है. 

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने इस अहम मिशन के लिये बांग्लादेश सरकार का आभार प्रकट किया है.

टॉम एण्ड्रयूज़ ने कहा कि यात्रा के दौरान उन्हें, म्याँमार के विषय में प्रासंगिक अधिकारियों और अन्तरराष्ट्रीय व नागरिक समाज संगठनों के साथ मुलाक़ात का अवसर प्रदान किया गया है. 

उन्होंने कहा कि वे रोहिंज्या समुदाय से मिलना चाहते हैं, उनकी आवाज़ों को सुनना चाहते हैं, समर्थन देना चाहते हैं, और उनके साथ मिलकर, टिकाऊ, दीर्घकालीन समाधानों की दिशा में काम करना चाहते हैं.

साथ ही, म्याँमार में सेना द्वारा उन पर ढहाई गई क्रूरताओं के लिये जवाबदेही सुनिश्चित किये जाने के भी प्रयास किये जाएँगे. 

19 दिसम्बर को अपनी यात्रा के अन्तिम दिन, विशेष रैपोर्टेयर टॉम एण्ड्रयूज़, ढाका में एक पत्रकार वार्ता के दौरान अपनी दौरे से जुड़ी जानकारी साझा करेंगे. 

सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.