असमानताएँ कम करने के लिये, निजी शिक्षा के बेहतर नियामन पर बल

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की एक नई रिपोर्ट में, निजी शिक्षा की ऊँची क़ीमतों और कमज़ोर नियामन के कारण बढ़ती विषमताओं पर चेतावनी जारी की गई है. रिपोर्ट में सर्वजन के लिये गुणवत्तापरक शिक्षा सुनिश्चित किये जाने के इरादे से पाँच, अहम उपायों की हिमायत की गई है.
यूनेस्को की शुक्रवार को जारी रिपोर्ट बताती है कि पूर्व-प्राइमरी स्तर पर 40 प्रतिशत छात्र, माध्यमिक स्तर पर 20 फ़ीसदी छात्र और उससे आगे की यानि तृतीयक स्तर पर 30 प्रतिशत छात्र अब ग़ैर-सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं.
‘Global Education Monitoring’ रिपोर्ट के अनुसार अनेक देशों में या तो निजी शिक्षा के लिये पर्याप्त नियामन का अभाव है या फिर वे उन्हें लागू करने में पूर्ण रूप से सक्षम नहीं हैं.
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इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर असर हो रहा है और धनी व निर्धन के बीच शैक्षिक खाई और ज़्यादा चौड़ी हो जाने की सम्भावना है.
वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट के निदेशक मानोस एण्टॉनिनिस ने बताया कि, “कोविड-19 के असर से पारिवारिक बजट और भी कम हो गया है, जिससे स्कूली शिक्षा का शुल्क व अन्य ख़र्च, अनेक लोगों की पहुँच से बाहर हो गए हैं.”
यूएन एजेंसी की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले ने कहा कि सरकारी और ग़ैर-सरकारी स्कूलो में सरकारों कों न्यूनतम मानक स्थापित करने होंगे, ताकि वंचित छात्रों के लिये भी गुणवत्तापरक शिक्षा का लाभ पहुँचाया जा सके.
उन्होंन कहा कि वंचित और हाशिेये पर धकेल दिये गए समुदाय के लोगों को दण्डित नहीं किया जाना चाहिये.
रिपोर्ट में शिक्षा प्रणालियों में उन सभी ग़ैर-सरकारी पक्षकारों का विश्लेषण किया गया है, जोकि शिक्षा सैक्टर में सेवाओं के प्रावधान से जुड़े हैं.
इनमें, आस्था आधारित संगठनों द्वारा संचालित स्कूलों से लेकर, ग़ैर-सरकारी संगठन, परोपकारी संगठन और लाभकारी संस्थाएँ हैं.
बताया गया है कि अनेक देशों में अधिकतर स्कूल पंजीकृत भी नहीं हैं और उन्हें बिना किसी निरीक्षण के संचालित किया जा रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, केवल 27 प्रतिशत देशों में ही प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर, स्कूलों द्वारा मुनाफ़ा कमाए जाने पर स्पष्ट रूप से पाबन्दी है.
यह व्यवस्था, 12 वर्ष के लिये सर्वजन को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराए जाने के लक्ष्य से विपरीत है.
पचास फ़ीसदी से अधिक देशों में, स्कूलों में छात्रों के दाख़िले की प्रक्रिया पर रोक लगाई गई है.
केवल सात प्रतिशत देशों ने विभिन्न उपायों के ज़रिये, वंचित छात्रों के लिये स्कूली पढ़ाई की सुलभता बढ़ाने के लिये आरक्षण की व्यवस्था की है.
केवल 50 प्रतिशत देशों में निजी ट्यूशन के सम्बन्ध में नियामन है.
इसके मद्देनज़र, सबसे कम विकसित देशों में घर-परिवारों को अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों की शिक्षा पर ख़र्च करना पड़ता है.
निम्न और निम्नतर-मध्य आय वाले देशों में, कुल शिक्षा व्यय का 39 प्रतिशत हिस्सा परिवारों से आता है, जबकि धनी देशों के लिये यह आँकड़ा महज़ 16 प्रतिशत है.
‘Who Chooses? Who Loses?’ शीर्षक वाली रिपोर्ट दर्शाती है कि निम्न आय वाले देशों में सार्वजनिक शिक्षा में छिपी हुई क़ीमतें भी हैं.
15 निम्न और मध्य-आय वाले देशों के विश्लेषण के अनुसार, स्कूली बच्चों के लिये पोशाक (uniform) और अन्य सामग्री में घर-परिवारों का लगभग 40 फ़ीसदी शिक्षा व्यय हुआ.
इन देशों में क़रीब आठ प्रतिशत परिवारों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के वास्ते धन उधार लेने को मजबूर होना पड़ता है.
“युगाण्डा, हेती, केनया और फ़िलिपीन्स जैसे कुछ देशों में, 30 प्रतिशत परिवारों को अपने बच्चों की शिक्षा का ख़र्च उठाने के लिये धन उधार लेना पड़ता है.”
यूनेस्को ने देशों से मौजूदा नियामन की समीक्षा करने का आग्रह किया है और न्यायोचित कार्रवाई के लिये पाँच अहम सिफ़ारिशें पेश की हैं:
- पूर्व-प्राइमरी में एक वर्ष और सभी बच्चों व युवजन के लिये 12 वर्ष की प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा हेतु निशुल्क, सरकारी व्यय पर शिक्षा की सुलभता पर बल देना
- सभी सरकारों व ग़ैर-सरकारी शिक्षा संस्थानों पर लागू होने वाले गुणवत्तापूर्ण मानक स्थापित करना
- नियामन लागू कराए जाने और उनकी निगरानी के लिये सरकारी क्षमता को मज़बूत करना
- साझा भलाई के लिये नवाचारी उपायों को बढ़ावा देना और उन्हें विकसित करने वाले पक्षकारों को एक साथ लाना
- संकीर्ण हितों व निहित स्वार्थ से शिक्षा की रक्षा करना