कोविड-19 वैक्सीन की जमाखोरी से महामारी के लम्बा खिंचने की आशंका, WHO की चेतावनी

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी (WHO) के विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि यदि सदस्य देश, वैक्सीन वितरण के लिये यूएन समर्थित ‘कोवैक्स’ पहल के बजाय, टीकों की आपूर्ति को अपने क़ाबू में ही रखने का निर्णय लेते हैं, तो वैश्विक महामारी का ख़ात्मा ना हो पाने का जोखिम बढ़ जाएगा.
प्रतिरक्षण पर यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के विशेषज्ञों के एक समूह ने कहा है कि आरम्भिक जानकारी के अनुसार, कोविड-19 के ओमिक्रॉन वैरीएण्ट के विरुद्ध मौजूदा टीकों की प्रभावशीलता उपयोगी है, मगर यह अभी इस सम्बन्ध में और स्पष्टता की आवश्यकता है, मुख्यत: गम्भीर संक्रमण के मामलों से बचाव के विषय में.
यूएन एजेंसी के प्रतिरक्षण, वैक्सीन्स एवं जैविक विभाग की निदेशक डॉक्टर केट ओब्रियेन ने कहा, “निष्प्रभाव सम्बनधित आँकड़ों का अपना एक आधार है, मगर वास्तव में क्लीनिक से प्राप्त होने वाले आँकड़े ही ओमिक्रॉन से उपजे हालात से निपटने में अहम होंगे.”
The #Omicron variant has now been reported in 57 countries, and we expect that number to continue growing. There is some evidence that Omicron causes milder disease than #Delta, but it is still too early to be definitive. Any complacency now will cost lives," -- @DrTedros pic.twitter.com/QXNrK7Ovnz
UNGeneva
इससे पहले, यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने स्पष्ट किया था कि फ़िलहाल उपलब्ध टीके, कोरोनावायरस संक्रमण के सर्वाधिक गम्भीर मामलों से, क़रीब छह महीनों तक बहुत अच्छे ढंग से लोगों की रक्षा करती हैं.
इसके बाद, उनकी प्रभावशीलता में कुछ हद तक मामूली कमी आती है, विशेष रूप से 65 वर्ष से अधिक उम्र या पहले से बीमार चल रहे लोगों के लिये.
उन्होंने व्यापक स्तर पर प्रतिरोधक क्षमता (herd immunity) के मुद्दे पर कहा कि सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता अभी पहुँच से दूर है.
इसलिये भी चूँकि फ़िलहाल इस्तेमाल किये जा रहे टीके, अपनी प्रभावशीलता के बावजूद, उस स्तर पर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं, जिससे हर्ड इम्युनिटी हासिल किये जाने की सम्भावना को बल मिलता है.
इसकी एक वजह, टीकों की सार्वभौमिक सुलभता का अभाव बताया गया है.
डॉक्टर ओब्रियेन ने कहा कि सम्पन्न देशों को प्रतिरक्षण अभियानों का लाभ पहुँचा है, जबकि निर्धन देशों को जीवनरक्षक टीकों की क़िल्लत से जूझना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि टीकाकरण के बावजूद कुछ लोगों में संक्रमण के मामले सामने आए हैं, और यह भी हैरानी की बात नहीं है कि टीकाकरण कवरेज बढ़ने के साथ-साथ, ऐसे मामलों की संख्या भी बढ़ रही है.
“इसका यह अर्थ नहीं है कि वैक्सीन काम नहीं कर रही हैं. इसका बस ये मतलब है कि ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में वास्तव में लोगों को टीके लगाए गए हैं.”
डॉक्टर ओब्रियेन के मुताबिक़, ओमिक्रॉन वैरीएण्ट के फैलाव के दौरान, सबसे ज़्यादा जोखिम उन लोगों के लिये है, जिनका अभी तक टीकाकरण नहीं हुआ है.
कोरोनावायरस संक्रमण से गम्भीर रूप से बीमार पड़ने वाले लोगों में से 80 से 90 फ़ीसदी, इसी समूह से हैं.
यूएन एजेंसी की स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने स्पष्ट किया कि यदि देश, वैक्सीन वितरण के लिये कोवैक्स पहल के बजाय, वैक्सीन को अपने क़ाबू में ही रखने का निर्णय लेते हैं, तो वैश्विक महामारी का ख़ात्मा ना हो पाने का जोखिम बना रहेगा.
उन्होंने सचेत किया कि निर्धन देश, कोरोनावायरस से बचाव के लिये टीकों का लम्बे समय से इन्तज़ार कर रहे हैं. डॉक्टर ओब्रियेन के अनुसार अब धनी देशों से टीकों की खेप पहुँचनी शुरू हुई है, और इसकी निरन्तरता सुनिश्चित की जानी होगी.
उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे हम ओमिक्रॉन से उपजे हालात की ओर बढ़ रहे हैं, किसी मलाल से बचने के तौर-तरीक़ों के तहत, टीकों की वैश्विक आपूर्ति फिर से उच्च-आय वाले देशों की ओर मुड़ने और जमाखोरी होने का जोखिम है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट किया है कि वैश्विक एकजुटता का अभाव, कारगर साबित नहीं होगा और यह महामारी विज्ञान के नज़रिये से भी ठीक नहीं है.
“यदि हमारे पास सभी देशों में भेजने के लिये वैक्सीन नहीं हैं, तो यह संचारण के नज़रिये से भी काम नहीं करेगा, चूँकि जहाँ फैलाव जारी रहेगा, ये वही जगहें होंगी जहाँ से वैरीएण्ट भी आएंगे.”
डॉक्टर ओब्रियेन ने बताया कि यह बात हैरान करती है कि कुछ देश, कोविड-19 फैलाव में कमी लाने के लिये सुसंगत प्रयास नहीं कर रहे हैं.
उनके मुताबिक़, एक ओर तो वैक्सीन के लिये हरसम्भव तौर-तरीक़े आज़माए जा रहे हैं, और उसी समय मास्क, हाथ धोने, भीड़भाड़ से बचने सहित उन अन्य उपायों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, जोकि वायरस के फैलाव को कम करने में बेहद कारगर हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के समूह ने कोविड-19 वैक्सीन के इस्तेमाल पर अनुशंसाओं में अपनी पहले भी जारी की गई सलाह को दोहराया है.
उनका कहना है कि सर्वोत्तम उपाय, वैक्सीन के दोनों टीकों के लिये, जहाँ तक सम्भव हो सके, एक ही प्रकार की वैक्सीन को इस्तेमाल करना है. अलग-अलग टीकों के मिश्रण के बजाय यही ज़्यादा कारगर बताया गया है.
हालाँकि, उन्होंने माना कि यह उन देशों में हमेशा सम्भव नहीं हो पाएगा, जहाँ टीकों की अपर्याप्त आपूर्ति है, या फिर जहाँ समुदायों तक पहुँच पाना कठिन है.
प्रतिरक्षण पर विशेषज्ञों के रणनैतिक सलाहकार समूह के प्रमुख डॉक्टर आलेहान्द्रो क्रैविओटो ने कहा कि अग्रिम मोर्चे पर डटे स्वास्थ्यकर्मियों के लिये कोविड-19 वैक्सीन की तीसरी ख़ुराक (बूस्टर शॉट) की आवश्यकता इस पर निर्भर है कि उन्हें अतीत में कौन सी वैक्सीन का टीका लगाया गया है.
“अगर उनका प्रतिरक्षण ‘निष्क्रिय’ वैक्सीन के ज़रिये किया गया, तो हाँ, उन्हें जल्द से जल्द वैक्सीन की तीसरी ख़ुराक दी जानी चाहिये.”
डॉक्टर क्रैविओटो के मुताबिक़, अनेक निम्नतर-आय वाले देशों में, स्वास्थ्यकर्मियों को ऐसे वैक्सीन्स के टीके लगाए गए हैं, जोकि यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की आपात इस्तेमाल सूची में स्वीकृत नहीं हैं.
इनमें ‘कैनसिनो’ नामक वैक्सीन भी है, और उसकी भी दूसरी ख़ुराक की आवश्यकता होती है, चूँकि पहली ख़ुराक से पर्याप्त रक्षा हासिल नहीं होती है.
डॉक्टर क्रैविओटो ने जॉनसन एण्ड जॉनसन की एक ख़ुराक वाली वैक्सीन पर कहा कि एक ख़ुराक से वैक्सीन पूर्ण प्रतिरक्षण क्षमता प्रदान करती है.
उन्होंने कहा कि जिन देशों ने दूसरी ख़ुराक दिये जाने का निर्णय लिया है, वे ऐसा पहली ख़ुराक दिये जाने के दो से छह महीने बाद तक कर सकते हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार, दो ख़ुराकों के बीच की अवधि को बढ़ाना ही सर्वोत्तम उपाय है और उससे ज़्यादा बेहतर प्रभावशीलता हासिल होती है.