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जनसंहार की रोकथाम के लिये, सम्पूर्ण समाज की भागीदारी पर बल

रवाण्डा में 1994 में तुत्सी समुदाय के विरुद्ध जनसंहार की स्मृति में कार्यक्रम. (2019)
UN Photo/Violaine Martin
रवाण्डा में 1994 में तुत्सी समुदाय के विरुद्ध जनसंहार की स्मृति में कार्यक्रम. (2019)

जनसंहार की रोकथाम के लिये, सम्पूर्ण समाज की भागीदारी पर बल

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि जनसंहारों की रोकथाम करने का दायित्व मुख्य रूप से राज्यसत्ताओं पर है, मगर सम्पूर्ण समाज की भागीदारी के बिना ये सुनिश्चित नहीं किया जा सकता. 

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने गुरूवार को जनंसहार के अपराध के पीड़ितों की स्मृति एवं गरिमा के अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आयोजित एक वर्चुअल कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए यह बात कही है. 

यूएन प्रमुख ने सचेत किया कि जनसंहार, दुनिया भर में एक बेहद वास्तविक ख़तरा बना हुआ है. 

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महासचिव गुटेरेश ने कहा कि जनसंहार और क्रूरता सम्बन्धी अन्य अपराधों की सहयोगपूर्ण, त्वरित और निर्णायक ढंग से रोकथाम करने में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय बार-बार विफल रहा है. 

उन्होंने कहा कि जनसंहार अपराध की रोकथाम व दण्ड पर सन्धि ने दुनिया को जोखिमों की समीक्षा करने और शुरुआती चेतावनियों की शिनाख़्त के प्रति समझ विकसित करने का अवसर प्रदान किया है. 

मगर, अभी और प्रयास किये जाने की आवश्यकता है.

“आज, हम वर्ष 1945 के बाद से सर्वाधिक संख्या में हिंसक संघर्षों का सामना कर रहे हैं. वे लम्बे खिंच रहे हैं और जटिल होते जा रहे हैं.”

“दण्डमुक्ति की भावना बढ़ रही है और मानवाधिकारों व विधि के शासन को नियमित रूप से नज़रअन्दाज़ किया जा रहा है.”

यूएन प्रमुख ने आगाह किया कि पहचान पर आधारित नफ़रत भरे सन्देशों व भाषणों का फैलना, लोगों को उकसाया जाना और भेदभाव जारी है. उन्होंने कहा कि राजनैतिक जोड़तोड़ और फ़ायदे के लिये इनका इस्तेमाल बढ़ रहा है. 

“ये सभी चिन्ताजनक चेतावनी भरे संकेत हैं, जिसके मद्देनज़र कार्रवाई की जानी चाहिये.”

महासचिव गुटेरेश ने कहा कि रोकथाम उपायों के तहत निम्न क़दम उठाए जाने की आवश्यकता है: 

- पहचान-आधारित भेदभाव का उन्मूलन और विविधता को एक शक्ति के रूप में मान्यता दिया जाना

- मानवाधिकारों व क़ानून के राज का सम्मान किया जाना

- जवाबदेही सुनिश्चित करना और अतीत के बर्बरतापूर्ण अपराधों के लिये मुआवज़ा दिया जाना

- आपसी मेल-मिलाप व टूटे हुए समुदायों को फिर से जोड़ना 

यूएन के शीर्षतम अधिकारी का मानना है कि जनसंहार की रोकथाम करना, सदस्य देशों का प्राथमिक दायित्व है, मगर सम्पूर्ण समाज की भागीदारी के बिना इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है.

“युवजन, धार्मिक व सामुदायिक नेताओं, निजी सैक्टर और मीडिया, विशेष रूप से सोशल मीडिया मंचों, सभी की यह ज़िम्मेदारी है कि वे रोकथाम करने के प्रयासों को मज़बूती दें.”

युवजन की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र के लिये अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने भी सदस्य देशों को सम्बोधित करते हुए, एक शान्तिपूर्ण व समावेशी जगत के निर्माण में युवाओं की भूमिका को रेखांकित किया.  

“मैं जब भी हमारे युवाओं से मिलता और बातचीत करता हूँ, मैं सकारात्मक बदलाव लाने के लिये उनके उत्साह को महसूस करता हूँ.”

“उनके पास उन तुच्छ नफ़रतों और दरारों के लिये धैर्य नहीं है, जिनका शिकार पिछली पीढियाँ हुई हैं.”

यूएन महासभा अध्यक्ष ने कहा कि वे मानवता के लिये हालात बेहतर बनाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं. 

महासभा प्रमुख के मुताबिक़, ऐसे अनेक देशों में युवजन आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं जोकि फ़िलहाल या तो हिंसा और क्रूरतापूर्ण अपराधों का सामना कर रही हैं, या फिर ऐसी घटनाओं का जोखिम मंडरा रहा है. 

अब्दुल्ला शाहिद ने बताया कि युवजन ने ऐसी अनेक पहल को अपना समर्थन दिया है, जिनसे जोखिम का सामना कर रहे देशों में बदलाव आया है. इनमें शान्तिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन, सोशल मीडिया के ज़रिये मुहिम, और विविध जातीय व धार्मिक समूहों के बीच सम्वाद को बढ़ावा देना है. 

उन्होंने कहा कि सदस्य देशों को भी युवा पीढ़ियों को इतिहास और जनसंहार की मानवीय क़ीमत के प्रति शिक्षित बनाना होगा. साथ ही, शान्तिनिर्माण व आपसी मेल-मिलाप के कौशल में निवेश और लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाना भी ज़रूरी है.

“ये केवल युवजन ही हैं, जोकि हमारे काम को आगे ले जा सकते हैं.”