कोविड-19: यूनीसेफ़ के 75 वर्षों के इतिहास में, ‘बच्चों के लिये सबसे बड़ा संकट’

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने बुधवार को जारी अपनी एक नई रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 महामारी ने बच्चों को अभूतपूर्व स्तर पर प्रभावित किया है. यूएन एजेंसी ने अपने 75 वर्षों के इतिहास में इसे अब तक का सबसे ख़राब संकट क़रार दिया है, जिसके कारण 10 करोड़ अतिरिक्त बच्चे अब निर्धनता के विविध आयामों से पीड़ित हैं.
‘Preventing a lost decade: Urgent action to reverse the devastating impact of COVID-19 on children and young people’ नामक यह रिपोर्ट बताती है कि कोरोनावायरस संकट ने किस तरह निर्धनता, स्वास्थ्य, शिक्षा की सुलभता, पोषण, बाल संरक्षण और मानसिक कल्याण के विषय में अब तक दर्ज की गई प्रगति को प्रभावित किया है.
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि वैश्विक महामारी के दो साल पूरे होने जा रहे हैं, और कोविड-19 के प्रभावों का गहन रूप धारण करना जारी है.
It is the biggest global crisis for children in our 75-year history!On its 75th anniversary UNICEF warns that COVID-19 is rolling back virtually every measure of progress for children, including a staggering 100 million more children plunged into povertyhttps://t.co/YIV5mvbUbk
UNICEFmedia
इससे निर्धनता बढ़ी है, विषमताएँ और ज़्यादा गहराई से समा गई हैं, और बच्चों के अधिकारों के लिये जिस तरह संकट खड़ा हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया.
यूएन बाल कोष की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर ने ध्यान दिलाया कि यूनीसेफ़ ने दुनिया भर में बच्चों के लिये स्वस्थ व सुरक्षित माहौल के निर्माण में मदद की है.
“इस प्रगति के लिये अब जोखिम पैदा हो गया है. कोविड-19 महामारी, हमारे 75 वर्षों के इतिहास में बच्चों के लिये प्रगति पर सबसे बड़ा ख़तरा रही है.”
यूएन एजेंसी प्रमुख के मुताबिक़ भरपेट भोजन ना पाने वाले, स्कूली शिक्षा से वंचित, दुर्व्यवहार का शिकार, निर्धनता में जीवन गुज़ार रहे बच्चों की संख्या बढ़ रही है.
वहीं, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की सुलभता, वैक्सीन, पर्याप्त भोजन और अति-आवश्यक सेवाओं से वंचित बच्चों की संख्या में वृद्धि हो रही है.
रिपोर्ट बताती है कि महामारी के कारण 10 करोड़ अतिरिक्त बच्चे अब निर्धनता के विविध आयामों में जीवन गुज़ार रहे हैं. वर्ष 2019 से इस आँकड़े में 10 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है - यानि मध्य-मार्च 2020 से हर सैकेण्ड लगभग 1.8 बच्चे.
रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि खोई हुई ज़मीन व प्रगति को फिर से हासिल करने के लिये एक लम्बा रास्ता तय किया जाना होगा.
मौजूदा हालात से उबरने और बाल निर्धनता के मामले में, कोविड-19 से पहले के स्तर पर लौटने में सात से आठ साल का समय लग सकता है.
महामारी से पूर्व के स्तर की तुलना में, छह करोड़ अतिरिक्त बच्चे अब ग़रीबी से पीड़ित परिवारों में रह रहे हैं.
इसके अलावा, वर्ष 2020 में, दो करोड़ 30 लाख बच्चे, अति-आवश्यक टीकाकरण के दायरे से बाहर रह गए, जोकि 2019 की तुलना में लगभग 40 लाख की वृद्धि दर्शाता है.
महामारी से इतर भी, रिपोर्ट में बच्चों और उनके अधिकारों के लिये अन्य चुनौतियों के प्रति भी सचेत किया गया है.
विश्व भर में, 42 करोड़ से अधिक बच्चे – यानि औसतन हर पाँच में से एक बच्चा – हिंसक संघर्ष प्रभावित इलाक़ों में रहते हैं, जिनकी गहनता बढ़ रही है और जिनसे आमजन, विशेष रूप से बच्चे प्रभावित हो रहे हैं.
महिलाओं व लड़कियों के लिये, हिंसक संघर्ष सम्बन्धी यौन हिंसा का शिकार होने का जोखिम सबसे अधिक है.
बताया गया है कि 80 फ़ीसदी से अधिक मानवीय राहत आवश्यकताएँ, हिंसक संघर्षों से ही पनपती हैं. वहीं, क़रीब एक अरब से अधिक बच्चे, ऐसे देशों में रहते हैं, जिन पर जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने का जोखिम सबसे अधिक है.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने हर बच्चे को इस संकट से उबारने और उनके लिये एक नया भविष्य बुनने के लिये निम्न उपाय किये जाने की पुकार लगाई है: