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नस्लवाद पर बेबाकी: कोविड संकट और 'हेट स्पीच' के बावजूद, आशा की किरण

नस्लवाद और नस्लीय भेदभाव के समकालीन रूपों पर, संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर टेण्डाई ऐश्यूम.
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नस्लवाद और नस्लीय भेदभाव के समकालीन रूपों पर, संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर टेण्डाई ऐश्यूम.

नस्लवाद पर बेबाकी: कोविड संकट और 'हेट स्पीच' के बावजूद, आशा की किरण

मानवाधिकार

ई टैण्डाई ऐश्यूम बेबाक हैं, अपनी बात ईमानदारी और मज़बूती से कहती हैं, और सत्ता के सामने सच बोलती हैं. वह, सरकारों को यह बताने के लिये मशहूर हैं कि उन्हें ज़ेनोफ़ोबिया, नस्लभेद और असहिष्णुता के तमाम रूपों पर अपना कामकाज और व्यवहार कैसे बेहतर बनाना होगा.

ई टैण्डाई ऐश्यूम, अमेरिका के लॉस ऐंजेल्स स्थित कैलीफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में क़ानून और मानवाधिकार विषयों की प्रोफ़ेसर हैं, और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रणाली में भी एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ की महत्वपूर्ण भूमिका में सक्रिय हैं. वह नस्लवाद के तमाम आधुनिक रूपों, नस्लभेद, ज़ेनोफ़ोबिया और सम्बन्धित असहिष्णुता मामलों पर, संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर हैं. यह उनका संक्षिप्त आधिकारिक परिचय है.

ई टैण्डाई ऐश्यूम ने दुनिया भर में नस्लीय अन्याय और विषमता का मुक़ाबला करने के लिये, वर्ष 2021 में डरबन घोषणा-पत्र और कार्रवाई कार्यक्रम के क्रियान्वयन पर निकट नज़र रखी है, वो भी ऐसे समय में जब कोविड-19 महामारी ने नफ़रत भरी भाषा (Hate speech) को बेतहाशा बढ़ाने के साथ-साथ घृणा और डर को अनेक रूपों में हवा दी है.

यूएन न्यूज़ ने प्रोफ़ेसर ई टैण्डाई ऐश्यूम के साथ ख़ास बातचीत की और पूछा कि वो एक महामारी से उबरने की कोशिश कर रही दुनिया के दबावों, तनावों, और असहिष्णुता, नस्लवाद व नस्लीय भेदभाव पर इनके बढ़ते प्रभावों को किस तरह देखती है.

यूएन महासभा में पेश की गई उनकी ताज़ातरीन रिपोर्ट में, नस्लीय भेदभाव, ज़ेनोफ़ोबिया और सम्बन्धित असहिष्णुता का उन्मूलन करने में, ऐतिहासिक डरबन घोषणा-पत्र की महत्ता को रेखांकित किया गया है.

ई टैण्डाई ऐश्यूम, डरबन फ़्रेमवर्क को, मानवाधिकार सिद्धान्तों के लिये, एक असाधारण दस्तावेज़ के रूप में देखती हैं, क्योंकि सदस्य देशों द्वारा दक्षिण अफ़्रीका में अपनाए गए इस घोषणा-पत्र के 20 वर्ष बाद अब भी, प्राथमिकताएँ प्रासंगिक हैं.

नस्लवाद और कोविड-19

मिनियापॉलिस में उस दुकान के बाहर जियॉर्ड फ़्लॉयड को श्रृद्धांजलि अर्पित की गई है जिसके बाहर उनकी हत्या की गई थी.
Unsplash/Jéan Béller
मिनियापॉलिस में उस दुकान के बाहर जियॉर्ड फ़्लॉयड को श्रृद्धांजलि अर्पित की गई है जिसके बाहर उनकी हत्या की गई थी.

ई टैण्डाई ऐश्यूम, कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद 18 महीनों की अवधि पर नज़र डालते हुए, वर्ष 2020 के दौरान, दुनिया भर में नस्लीय न्याय की मांग के लिये उठी आवाज़ों को रेखांकित करती हैं. ये आवाज़ें अमेरिका के मिनियापॉलिस में पुलिस के हाथों जियॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या के बाद उठी थीं. ई टैण्डाई ऐश्यूम उन अभियानों को व्यवस्थागत नस्लवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में, एक अति महत्वपूर्ण लम्हा मानती है.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने वर्ष 2020 की गर्मियों में हुए उन व्यापक प्रदर्शनों को, उम्मीदों से भरा एक दौर क़रार दिया और कहा कि नस्लीय न्याय की यह पुकार, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में, दुनिया भर में मौजूद शिकायतों में से कुछ को, गम्भीरता से लेने के लिये, राजनैतिक इच्छाशक्ति और गति उत्पन्न कर सकती है.

टैण्डाई ऐश्यूम ने हालाँकि एकजुटता वाले इन जन प्रदर्शनों के बावजूद, नस्लवाद और ज़नोफ़ोबिया के व्यवस्थागत रूपों के लगातार जारी रहने पर चिन्ता भी व्यक्त की है. उन्होंने बताया कि दुनिया भर के देशों में, महामारी के दौरान विषमता, ऐसे नस्लीय, जातीय और राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों और समूहों के सामने दरपेश चुनौतियों के रूप में सामने आई है जो हाशिये पर रहते हैं, और जिन्हें हमारे दौर के इस सबसे विकट वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान भी, स्वास्थ्य देखभाल की समान पहुँच उपलब्ध नहीं है.

उनका कहना है कि राष्ट्रों के स्तर पर, वैक्सीन उपलब्धता तक पहुँच की जिस स्थिति को “वैक्सीन रंगभेद” बयान किया गया है, वो इस नज़रिये से भिन्न है कि आप ‘वैश्वक उत्तर’ में रहते हैं या ‘वैश्विक दक्षिण’ में.

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि नस्लीय नफ़रत से मुक्त एक भविष्य की उम्मीद के संकेत नज़र तो आते हैं, मगर उन्होंने साथ ही ये भी स्वीकार किया कि आज के समय में, नस्लवाद की स्थिति में एक गहरी जटिलता मौजूद है.

वैश्विक सम्वाद

उनके सन्देश का आशय समझने में एक चुनौती - हर देश में अलग-अलग तरीक़े से, नस्लवाद की भिन्न अभिव्यक्तियों या नस्लवाद के भिन्न तरीक़ों का सामना करने की है.

म्याँमार के उत्तरी प्रान्त राख़ीन में हिंसा से बचने के लिये, बांग्लादेश की तरफ़ जाते हुए रोहिंज्या शरणार्थी.
WFP/Saikat Mojumder
म्याँमार के उत्तरी प्रान्त राख़ीन में हिंसा से बचने के लिये, बांग्लादेश की तरफ़ जाते हुए रोहिंज्या शरणार्थी.

मसलन, अमेरिका में नस्लवाद को जिस तरीक़े से चिन्हित या परिभाषित किया जाता है वो सिंगापुर, ब्रिटेन या मोरक्को या फिर किसी अन्य स्थान की परिस्थितियों से बिल्कुल भिन्न हो सकता है. ऐसा कहनs का मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि कोई भेदभाव या असहिष्णुता ही नहीं है, बल्कि नस्लवाद जिस तरीक़े से काम करता है या मौजूद रहता है, वो अलग-अलग स्थानों पर बिल्कुल भिन्न है.

टैण्डाई ऐश्यूम ने यूएन न्यूज़ को बताया कि हाल की घटनाओं ने सम्बन्धित मुद्दों पर, अन्तरराष्ट्रीय सम्वाद को एकीकृत किया है.

उन्होंने भेदभाव के कारण होने वाले दूरगामी नुक़सानों पर ज़ोर देते हुए बताया कि कोई भी इनसान, नस्लवाद, ज़ेनोफ़ोबिया और इसी तरह के ढाँचों से अछूता नहीं है.

अदृश्य मार्ग

टैण्डाई ऐश्यूम की यात्रा, ज़ाम्बिया के एक छोटे से क़स्बे में जन्म लेने और विश्व विद्यालय में क़ानून का प्राध्यापन करने व नस्लीय समानता की पैरोकारी करने तक, कोई सोचा-समझा रास्ता नहीं रहा है.

उनका कहना है, “मैंने अपने जीवन का ज़्यादातर समय यह सोचने में गुज़ारा कि मैं एक डॉक्टर बनूंगी या इंजीनियर, या फिर इसी तरह का कोई पेशा. मैं हमेशा से ही इनसानों में रुचि लेती रही हूँ और इस दुनिया को एक ऐसा स्थान बनाने में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है जो हर किसी के लिये आनन्ददायक हो.”

टैण्डाई ऐश्यूम कहती हैं, “मेरा ख़याल है कि मैं कॉलेज में थी, दरअसल अमेरिका में, जब मैंने क़ानून और विकास नीति पर एक सत्र में पढ़ाई की तब, वास्तव में मेरे अन्दर ये गहन रुचि उत्पन्न हुई कि क़ानून को सामाजिक परिवर्तन के एक लिये एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.”

नस्लवाद और उभरती टैक्नॉलॉजी

कोरोनावायरस स्वास्थ्य महामारी ने चूँकि करोड़ों लोगों को घरों पर रहने व ऑनलाइन संसाधनों का व्यापक प्रयोग करने के लिये विवश किया है तो, टैण्डाई ऐश्यूम ने उभरती टैक्नॉलॉजी और नस्लीय भेदभाव के बीच सम्बन्धों का अध्ययन भी किया है.

नस्लवाद, ज़ेनोफ़हिया और सम्बन्धित असहिष्णुता के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर टेण्डाई ऐश्यूम, न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में (21 फ़रवरी 2018)
UN Photo/Manuel Elias
नस्लवाद, ज़ेनोफ़हिया और सम्बन्धित असहिष्णुता के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर टेण्डाई ऐश्यूम, न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में (21 फ़रवरी 2018)

उनका कहना है कि समाज विज्ञानी तो उभरती टैक्नॉलॉजी के नस्लीय भेदभाव और ज़ेनोफ़ोबिया सम्बन्धी प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं मगर इसके इर्द-गिर्द मानवाधिकार पहलू, इस रफ़्तार के साथ गति क़ायम नहीं रख सका है.

टैण्डाई ऐश्यूम के अध्ययन का एक पहलू – चेहरे की शिनाख़्त करने वाली टैक्नॉलॉजी और इनसानों की शारीरिक विशेषताओं में भिन्नता व अन्य इनसानों के साथ उनकी तुलना करने की क्षमता वाले उपकरणों पर भी है.

युवजन की शक्ति

टैण्डाई ऐश्यूम से जब ये पूछा गया कि असहिष्णुता और ऑनलाइन मंचों पर नफ़रत भरी भाषा के इस विषैले वातारण में, युवा लोगों के लिये उनकी क्या सलाह है, तो उनका कहना था कि युवजन अपने ख़ुद के भविष्य को एक आकार देने में बहुत सक्षम हैं.

उनका कहना है कि जब भी क्रान्तिकारी परिवर्तन होते हैं तो उनका नेतृत्व हमेशा ही युवजन करते हैं क्योंकि वो मौजूदा स्थित में बहुत कम रुचि लेते हैं. इसलिये मैं जब भी ये सोचती हूँ कि बदलाव कहाँ से शुरू होगा तो, मेरा यही मानना है कि बदलाव, युवाओं की तरफ़ से ही आएगा.