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मिट्टी का खारापन, खाद्य सुरक्षा के लिये जोखिम - FAO

तंज़ानिया में मृदा क्षरण से निपटने के लिये पेड़ लगाये जा रहे हैं.
CIAT/Georgina Smith
तंज़ानिया में मृदा क्षरण से निपटने के लिये पेड़ लगाये जा रहे हैं.

मिट्टी का खारापन, खाद्य सुरक्षा के लिये जोखिम - FAO

एसडीजी

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने कहा है कि जल की अपर्याप्त आपूर्ति और ख़राब गुणवत्ता वाली जल निकासी प्रणालियों समेत, अनुपयुक्त जल प्रबन्धन के कारण, मिट्टी का खारापन बढ रहा है. संगठन ने इसे एक ऐसी समस्या बताया है जिससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये संकट बढ़ रहा है. 

मृदा (soil) या मिट्टी के खारेपन से तात्पर्य मिट्टी में नमक का अत्यधिक स्तर होना है, जिससे पौधों और वनस्पति का विकास प्रभावित होता है, साथ ही, यह जीवन के लिये ज़हरीला भी हो सकता है.

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ऐसा स्वाभाविक वजहों से हो सकता है, जैसेकि मरुस्थलों में जल की कमी और गहन वाष्पीकरण के कारण, या फिर मानवीय गतिविधियाँ भी मिट्टी में खारेपन की वजह बन सकती हैं.

‘विश्व मृदा दिवस’ (World Soil Day) हर वर्ष 5 दिसम्बर को मनाया जाता है, जिसके ज़रिये स्वस्थ मिट्टी की अहमियत को रेखांकित करने के साथ-साथ, मृदा संसाधनों के टिकाऊ इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाता है. 

यूएन एजेंसी के महानिदेशक क्यू डोंग्यू ने शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा, “मिट्टी, कृषि की नींव है और दुनिया भर में किसान, हमारे भोजन के 95 फ़ीसदी हिस्से के उत्पादन के लिये मिट्टी पर निर्भर हैं.”

“इसके बावजूद, हमारी मृदाओं के लिये जोखिम पैदा हो गया है.”

यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि कृषि के टिकाऊ तौर-तरीक़ों के अभाव, प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन और बढ़ती विश्व आबादी के कारण, मृदा पर दबाव बढ़ रहा है, और दुनिया भर में चिन्ताजनक दर पर मृदा क्षरण हो रहा है. 

एक अनुमान के अनुसार, 83 करोड़ हैक्टेयर से अधिक मृदा, पहले से ही खारेपन से प्रभावित है, जोकि विश्व में भूमि की कुल सतह का 9 फ़ीसदी, या मोटे तौर पर, भारत के आकार का चार गुना है.

खारेपन से प्रभावित मिट्टी, सभी महाद्वीपों और हर प्रकार की जलवायु परिस्थितियों में पाई जाती है. 

सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में मध्य एशिया, मध्य पूर्व, दक्षिण अमेरिका, उत्तर अफ़्रीका और प्रशान्त क्षेत्र हैं. 

बेहतर तौर-तरीक़ों पर बल

मृदा संसाधनों के बेहतर प्रबन्धन के लिये, यूएन एजेंसी, देशों को ज़रूरी समर्थन मुहैया करा रही है.

उदाहरणस्वरूप, उज़बेकिस्तान में, यूएन एजेंसी की वैश्विक मृदा साझीदारी (Global Soil Partnership) के तहत, वैज्ञानिकों के साथ मिलकर जलवायु-स्मार्ट मृदा प्रबन्धन तरीक़े विकसित किये जा रहे हैं. 

इससे, मिट्टी के खारेपन से प्रभावित इलाकों में फ़सलों को फिर से फलने-फूलने में मदद मिल सकती है.

इसके अलावा, यूएन एजेंसी ने भरोसेमन्द डेटा की उपलब्धता पर भी बल दिया है. अनेक देश इस विषय में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. 

एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 142 देशों में से 55 प्रतिशत के पास, मृदा विश्लेषण के लिये पर्याप्त क्षमता का अभाव है. 

इनमें से अधिकतर देश अफ़्रीका और एशिया में स्थित हैं.

यूएन एजेंसी के मुताबिक़, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये, स्वस्थ मृदा की अहम भूमिका पर, नवम्बर में कॉप26 जलवायु सम्मेलन के दौरान भी चर्चा हुई.  

एजेंसी ने देशों से आग्रह किया है कि टिकाऊ मृदा प्रबन्धन के लिये मज़बूत संकल्प लेते हुए, मिट्टी से जुड़ी जानकारी व क्षमताओं को जल्द से जल्द बेहतर बनाया जाना होगा.