कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता की गिरफ़्तारी पर, यूएन मानवाधिकार कार्यालय की चिन्ता
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने एक कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ की गिरफ़्तारी और भारत-प्रशासित कश्मीर में सशस्त्र गुटों द्वारा आम नागरिकों की हत्या किये जाने की घटनाओं पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है.
बताया गया है कि भारत प्रशासित कश्मीर में एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ को ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों की रोकथाम के लिये बनाए गए क़ानून (UAPA) के तहत गिरफ़्तार किया गया है.
पिछले एक सप्ताह से हिरासत में रखे गए ख़ुर्रम परवेज़ पर आतंकवाद-सम्बन्धी अपराधों के आरोप लगाए गए हैं.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय के प्रवक्ता रूपर्ट कोलविल ने बुधवार को जारी अपनी एक टिप्पणी में कहा कि इन आरोपों के तथ्यात्मक आधार के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है.
.@UNHumanRights on #Kashmir: We are deeply concerned at the arrest of Kashmiri human rights defender Khurram Parvez under Indian counter-terrorism legislation. We are unaware of the factual basis of the charges. He is known as a tireless advocate for families of the disappeared. pic.twitter.com/RrgGSRlVxn
UNGeneva
“उन्हें गुमशुदा लोगों के परिवारों के लिये एक अथक पैरोकार के रूप में जाना जाता है, और उन्हें मानवाधिकारों से जुड़े काम के सिलसिले में पहले भी निशाना बनाया गया था.”
यूएन एजेंसी के प्रवक्ता ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि वर्ष 2016 में, ख़ुर्रम परवेज़ को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद में हिस्सा लेने से रोके जाने के बाद, एक अन्य विवादास्पद क़ानून - Public Safety Act (PSA) के तहत ढाई महीनों के लिये हिरासत में रखा गया था.
“जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा उनकी हिरासत को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिये जाने के बाद ही उन्हें रिहा किया गया था.”
यूएन एजेंसी का कहना है कि UAPA क़ानून के तहत, प्रशासन को अस्पष्ट आधार पर व्यक्तियों व संगठनों को आतंकवादी के रूप में चिन्हित किये जाने का अधिकार दिया गया है.
एजेंसी के मुताबिक़ इससे लोगों को मुक़दमे से पहले लम्बे समय तक हिरासत में रखने और ज़मानत की प्रक्रिया को बेहद मुश्किल बनाने का रास्ता खुल जाता है.
अधिकारों पर असर
यूएन एजेंसी ने कहा कि इससे, उचित प्रक्रिया का पालन, मुक़दमे की निष्पक्ष कार्रवाई और दोष साबित होने से पहले किसी को निर्दोष माने जाने का अधिकार भी प्रभावित होता है.
रूपर्ट कोलविल ने कहा कि इस क़ानून का इस्तेमाल, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, जम्मू और कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में अन्य आलोचकों के कामकाज को दबाने के लिये किया जा रहा है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने स्थानीय प्रशासन से ख़ुर्रम परवेज़ की अभिव्यक्ति की आज़ादी और निजी स्वतंत्रता के अधिकार की पूर्ण रूप से रक्षा किये जाने और उन्हें रिहा करने के लिये ऐहतियाती क़दम उठाए जाने का आग्रह किया है.
यूएन एजेंसी ने UAPA क़ानून में संशोधन किये जाने की मांग दोहराते हुए, उसे अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों व मानकों के अनुरूप बनाए जाने का अनुरोध किया है.
रूपर्ट कोलविल ने स्थानीय प्रशासन से आग्रह किया है कि क़ानून में संशोधन होने तक, नागरिक समाज, मीडिया और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की अभिव्यक्ति की आज़ादी को, इस क़ानून के ज़रिये दबाने से परहेज़ किया जाना चाहिये.
आम नागरिकों की मौतों पर चिन्ता
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने इस वर्ष, भारत-प्रशासित कश्मीर में सशस्त्र गुटों द्वारा आम नागरिकों की हत्या के मामलों में वृद्धि पर चिन्ता जताई है. पीड़ितों में अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के सदस्य भी हैं.
यूएन एजेंसी ने कहा कि आतंकवाद-निरोधक अभियानों के दौरान भी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में आम लोग मारे गए हैं और कुछ मामलों में उनके शव गुपचुप ढंग से दफ़नाए गए हैं.
रूपर्ट कोलविल ने 15 नवम्बर को हुई एक ऐसी ही घटना का उल्लेख किया, जिसमें श्रीनगर के हैदरपुरा इलाक़े में कथित रूप से हुई गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई, जिनमें दो आम नागरिक थे.
यूएन एजेंसी ने कहा कि आम लोगों की हत्याओं के सभी मामलों की त्वरित, विस्तृत, पारदर्शी, स्वतंत्र और कारगर जाँच की जानी चाहिये. साथ ही परिवारों को अपने प्रियजनों की मौत का शोक मनाने व न्याय पाने का अवसर दिया जाना चाहिये.
रूपर्ट कोलविल ने कहा, “हम हिंसा की रोकथाम की आवश्यकता को समझते हैं, मगर, हमें जम्मू और कश्मीर में नागरिक समाज के लोगों पर व्यापक कार्रवाई के संकेतों पर चिन्ता है.”
उन्होंने कहा कि आतंकवाद-निरोधक उपायों का व्यापक इस्तेमाल किये जाने से, मानवाधिकार हनन के मामलों और असंतोष गहराने का जोखिम बढ़ने की आशंका बढ़ती है.
इस क्रम में, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने सुरक्षा बलों और हथियारबन्द गुटों से संयम बरतने की अपील की है.
यूएन एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि हाल के हफ़्तों में, जम्मू और कश्मीर में तनाव बढ़ने के परिणामस्वरूप, नागरिक आबादी के विरुद्ध और ज़्यादा हिंसा ना हो.