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भारत: विवादास्पद कृषि क़ानून वापिस लिये जाने का स्वागत

भारत के विवादास्पद कृषि क़ानूनों के विरुद्ध, अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में प्रदर्शन करते हुए एक महिला (फ़ाइल फ़ोटो)
Unsplash/Gayatri Malhotra
भारत के विवादास्पद कृषि क़ानूनों के विरुद्ध, अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में प्रदर्शन करते हुए एक महिला (फ़ाइल फ़ोटो)

भारत: विवादास्पद कृषि क़ानून वापिस लिये जाने का स्वागत

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, भारत सरकार द्वारा तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों को वापिस लेने के फ़ैसले का स्वागत किया है. ध्यान रहे कि इन क़ानूनों के कारण, लगभग एक वर्ष पहले राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे, जिनके दौरान लगभग 600 लोगों की मौत भी हुई.

खाद्य अधिकार के लिये संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर माइकल फ़ाख़री ने शुक्रवार को एक वक्तव्य में भारत सरकार से, हताहत लोगों के लिये जवाबदेही निर्धारित किये जाने का आग्रह भी किया.

उन्होंने दलील देते हुए कहा, “इस दुखद अध्याय का पन्ना पलटने के लिये, अधिकारियों की ये ज़िम्मेदारी है कि वो प्रदर्शनों के दौरान हताहत हुए लोगों के मामलों में, ज़िम्मेदार तत्वों की जवाबदेही निर्धारित किये जाने की पुकारों को सुनें, और इस तरह की घटनाएँ फिर से नहीं होने देने के लिए क़दम उठाने की गारण्टी दें.”

विवादास्पद क़ानून

भारत में ये तीन कृषि क़ानून 2020 के आरम्भ में, बाज़ार का विनियमीकरण करने के लक्ष्य से पारित किये गए थे, जब कोविड-19 महामारी भी चरम पर थी.

इन क़ानूनों की व्यापक पैमाने पर यह कहते हुए आलोचना हुई थी कि इन्हें प्रभावित समुदायों के साथ समुचित और उपयुक्त परामर्श किये बिना ही, संसद में जल्दबाज़ी में पारित कराया गया था.

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भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने, 19 नवम्बर को औचक घोषणा में कहा था कि इन क़ानूनों को, संसद के आगामी सत्र में, वापिस लेने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ माइकल फ़ाख़री ने कहा, “इन क़ानूनों के ज़रिये, भारत की पूरी खाद्य प्रणाली की स्थिरता ही दाँव पर लग गई थी.”

“हम आशा करते हैं कि भारत में कृषि क्षेत्र में सुधार या बदलाव करने के लिये, भविष्य में उठाए जाने वाले क़दम, देश के मानवाधिकार संकल्पों से सूचित होंगे, और ऐसे क़दम किसानों, समुदायों और श्रम संगठनों के साथ सार्थक विचार-विमर्श करने के बाद उठाए जाएंगे.”

विशेष रैपोर्टेयर माइकल फ़ाख़री और कुछ अन्य विशेषज्ञों ने, भारत के इन कृषि क़ानूनों का, खाद्य अधिकार पर सम्भावित प्रभाव और प्रदर्शनों के दौरान लागू की गई सख़्त पाबन्दियों के बारे में, भारत सरकार के साथ बातचीत की है. 

माइकल फ़ाख़री ने क़ानून बनाने की लम्बी प्रक्रिया को स्वीकार किया, मगर साथ ही ये भी कहा कि उसके बाद जो कुछ हुआ, उसमें लाखों-करोड़ों लोगों द्वारा महसूस किये गए गहरे असन्तोष का संकेत मिलता है. 

उनकी नज़र में, इस स्थिति से ये भी झलकता है कि लोगों को नीतिगत बदलाव में अपनी भूमिका निभाने के लिये, सक्रिय बनाने और शान्तिपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिये सशक्त बनाने में, अभिव्यक्ति की आज़ादी, एक मूल्यवान औज़ार व साधन है.

सुझाव

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने, भविष्य के लिये, सार्वजनिक निर्णय-प्रक्रिया के लिये सबक़ सीखे जाने का सुझाव भी पेश किया है.

उन्होंने कहा, “हमें ऐसे सवालों पर पुनर्विचार और ग़ौर करना होगा कि सार्थक सार्वजनिक परामर्श और राय हासिल करने में क्या-क्या शामिल हो, और ये भी कि एक ज़्यादा भागीदारी वाला रास्ता, लोक स्वीकार्य निर्णय लेने में, किस तरह मदद कर सकता है.”

उन्होंने कहा कि सरकार को यह भी विचार करना चाहिये कि देश में कृषि सुधार, किस तरह से लागू किये जा सकते हैं ताकि वो देश के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की पूर्ति भी करें.

मानवाधिकार विशेषज्ञ माइकल फ़ाख़री ने अपनी निष्कर्ष टिप्पणी में, भारत के उच्चतम न्यायालय की, 2021 के आरम्भ में सामने आई, महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित किया जिसमें सरकार को, किसानों की शिकायतें और समस्याएँ जानने व समझने के लिये, और ज़्यादा समय दिये जाने का आदेश दिया था. 

माइकल फ़ाख़री की इस पुकार को कुछ अन्य मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भी समर्थन दिया है, जिनमें शामिल हैं – मत व अभिव्यक्ति के अधिकार पर विशेष रैपोर्टेयर इरीन ख़ान, मानवाधिकारों व पर्यावरण पर विशेष रैपोर्टेयर डेविड बॉयड, और अत्यन्त गम्भीर निर्धनता व मानवाधिकारों पर विशेष रैपोट्रेयर ओलिवीयर डी श्कटर.

संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रियाओं का हिस्सा होते हैं. वो स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं, और संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते, ना ही उनके काम के लिये उन्हें, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ किसी सरकार और संगठन से भी स्वतंत्र होते हैं और अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.