महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा - कोरोनावायरस संकट के दौरान बढ़ी चुनौतियाँ
संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारियों ने ‘महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का उन्मूलन करने के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस’ के सिलसिले में आयोजित एक वर्चुअल कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए, लिंग-आधारित हिंसा को एक वैश्विक संकट क़रार दिया है. हर वर्ष 25 नवम्बर को मनाए जाने वाले इस दिवस से ठीक पहले जारी एक रिपोर्ट दर्शाती है कि कोविड-19 के दौरान घरों व सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा पर असर हुआ है.
महिला सशक्तिकरण के लिये प्रयासरत यूएन संस्था (UN Women) की कार्यकारी निदेशक सीमा बाहऊस ने क्षोभ जताया कि तमाम पड़ोसी इलाक़ों में, ऐसी महिलाएँ व लड़कियाँ रहती हैं जिन्हें ख़तरे में जीवन गुज़ारना पड़ रहा है.
“दुनिया भर में, हिंसक संघर्ष, जलवायु-सम्बन्धी प्राकृतिक आपदाएँ, खाद्य असुरक्षा और मानवाधिकार उल्लंघन, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को और ज़्यादा गम्भीर बना रहे हैं.”
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UN_Women
यूएन संस्था के अनुसार, 70 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने, संकट भरे हालात की पृष्ठभूमि में लिंग-आधारित हिंसा का अनुभव किया है. धनी व निर्धन, दोनों देशों में लैंगिक पूर्वाग्रहों के कारण महिलाओं व लड़कियों के प्रति हिंसक घटनाओं को बढ़ावा मिलता है.
यूएन वीमैन की शीर्ष अधिकारी ने बताया कि इस प्रकार की हिंसा की जानकारी, अक्सर सामने नहीं आ पाती है.
ऐसी आवाज़ें कथित कलंक, शर्म, या अपराधकर्ताओं के डर के नाम पर या एक ऐसी न्याय प्रणाली के भय से दबा दी जाती है, जो महिलाओं के लिये मददगार नहीं है.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 के कारण एक और महामारी की परछाई उभरी है, जिससे अदृश्य हिंसा को बढ़ावा मिलता है.
कोरोनावायरस संकट के दौरान, विश्व के अनेक हिस्सों में हैल्पलाइन पर, महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.
मगर, यूएन अधिकारी ने कहा कि उम्मीद बरक़रार है और हालात में बेहतरी के लिये नए अवसर उभर रहे हैं.
उन्होंने महिलाओं व लड़कियों के लिये 40 अरब डॉलर के उस संकल्प का ज़िक्र किया, जिसके तहत ‘पीढ़ीगत समानता फ़ोरम’ (Generation Equality Forum) ने लिंग आधारित हिंसा पर एक कार्रवाई गठबन्धन पेश किया है.
इसके ज़रिये सामूहिक कार्रवाई को स्फूर्ति प्रदान किये जाने के साथ-साथ, निवेश बढ़ाते हुए ठोस नतीजे सुनिश्चित किये जाएंगे.
बदलाव है सम्भव
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपने सम्बोधन में कहा कि ऐसा नहीं है कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम नहीं की जा सकती है.
“सही नीतियों व कार्यक्रमों से नतीजे प्राप्त होते हैं.” इनमें वे दीर्घकालीन रणनीतियाँ भी हैं, जो हिंसा के बुनियादी कारणों से निपटती हैं, और महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करती हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने यह मॉडल, ‘स्पॉटलाइट पहल’ के तहत, योरोपीय संघ के साथ साझेदारी में स्थापित किया है.
साझीदार देशों में पिछले वर्ष अपराधकर्ताओं के अभियोजन में 22 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, 84 क़ानूनों व नीतियों को स्वीकृति देने के साथ-साथ, उन्हें मज़बूत बनाया गया.
इसके अलावा, साढ़े छह लाख से अधिक महिलाएँ व लड़कियाँ, लिंग-आधारित हिंसा के मामलों में सहायता के लिये स्थापित सेवाओं तक पहुँच पाईं.
महासचिव ने कहा, “बदलाव सम्भव है, और यह समय हमारे प्रयासों को दोगुना करने का है, ताकि हम एक साथ मिलकर, वर्ष 2030 तक महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का उन्मूलन कर सकें.”
यूएन महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने कहा कि लिंग-आधारित हिंसा के मामलों में, कोई सामाजिक या आर्थिक सीमा नहीं है, और सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाएँ इससे प्रभावित हैं.
उन्होंने कहा कि विकासशील व विकसित, दोनों देशों में इस मुद्दे से निपटे जाने की आवश्यकता है.
हिंसक घटनाएँ
नवीनतम वैश्विक अनुमानों के अनुसार, 15 या उससे अधिक उम्र की हर तीन में से एक महिला को, अपने अन्तरंग साथी या ग़ैर-यौन सम्बन्ध साथी, या फिर दोनों से अपने जीवनकाल में, कम से कम एक बार, शारीरिक और/या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा है.
बताया गया है कि पिछले एक दशक में मोटे तौर पर इन आँकड़ों में कोई बदलाव नहीं आया है, और ये कोविड-19 के असर को परिलक्षित नहीं करते हैं.
मगर, महामारी के फैलने के बाद से जो आँकड़े उभर रहे हैं, वो दर्शाते हैं कि महिलाओं व लड़कियों के ख़िलाफ़ सभी प्रकार की हिंसा के मामलों में तेज़ी आई है.
दुनिया, ऐसे मामलों के इतनी तेज़ गति से बढ़ने का मुक़ाबला करने के लिये तैयार नहीं थी.
नई रिपोर्ट
यूएन वीमैन की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि महामारी के दौरान महिलाओं में सुरक्षा के भाव का क्षरण हुआ है, और उनके मानसिक व भावनात्मक कल्याण पर असर पड़ा है.
13 देशों में कराए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट दर्शाती है कि लगभग हर दो में से एक महिला या उनकी किसी जानकार को, महामार के दौरान हिंसा के किसी रूप का अनुभव करना पड़ा है.
हर चार में से एक महिला, घर पर पहले से कम सुरक्षित महसूस कर रही है. इसकी वजह, शारीरिक दुर्व्यवहार (21 फ़ीसदी), अन्य पारिवारिक सदस्यों द्वारा परेशान किया जाना (21 फ़ीसदी) या घर में अन्य महिलाओं को पीड़ा का अनुभव (19 प्रतिशत) करते हुए देखना बताई गई है.
घर के बाहर भी हिंसा का शिकार होने का डर बढ़ा है, और 40 प्रतिशत महिलाओं को सड़क पर रात में, अकेले बाहर जाते समय कम सुरक्षित महसूस होता है.