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अफ़ग़ानिस्तान के हेरात शहर में घरेलू विस्थापितों के लिये बनाए गए एक शिविर में तीन भाई-बहन.

इण्टरव्यू: अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय संकट ने छीना बच्चों का बचपन 

©UNICEF/Siegfried Modola
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात शहर में घरेलू विस्थापितों के लिये बनाए गए एक शिविर में तीन भाई-बहन.

इण्टरव्यू: अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय संकट ने छीना बच्चों का बचपन 

मानवीय सहायता

70 वर्षों से अधिक समय से, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी मौजूदगी बनाए रखी है, और अगस्त 2021 में देश की सत्ता पर तालेबान का वर्चस्व होने के बाद उपजे कठिन माहौल में भी, स्थानीय बच्चों की देखभाल सुनिश्चित करने के प्रयास जारी हैं. 

यूनीसेफ़ के अफ़ग़ानिस्तान कार्यालय में संचार, पैरोकारी व नागरिक सम्पर्क मामलों की प्रमुख सैमेन्था मोर्ट ने, यूएन न्यूज़ के साथ एक बातचीत में बताया कि उनके सभी कार्यालय खुले हैं और भण्डार भरे हुए हैं. 

देश में दो करोड़ 28 लाख लोगों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है, और उनके लिये पोषक आहार सुलभ नही है.  

अफ़ग़ानिस्तान की आबादी तीन करोड़ 80 लाख है, और लगभग एक करोड़ 40 लाख बच्चे खाद्य असुरक्षा का शिकार हैं.

यूएन अधिकारी सैमेन्था मोर्ट ने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान में इन दिनों कोई बचपन नहीं है. “यह सिर्फ़ और सिर्फ़ जीवित रहने और अगले दिन तक गुज़ारा करने की बात ही है.”

उन्होंने गम्भीर हालात को बयाँ करते हुए बताया कि बहुत से परिवारों में अभिभावक, दिन में तीन बार भोजन नहीं कर रहे हैं, आहार का आकार भी घट रहा है और लोगों को सुबह उठने पर पता नहीं होता कि दिन में भोजन कहाँ से प्राप्त होगा. 

“यह इस स्तर की खाद्य असुरक्षा है.”

अफ़ग़ानिस्तान सूखा पड़ने, ख़राब पैदावार होने और भोजन की क़ीमतें बढ़ने की चुनौती का सामना कर रहा है, और सर्दी के महीनों में, पहाड़ों से घिरे ग्रामीण इलाक़ों से सम्पर्क कट जाने की आशंका है.

अस्पतालों में हालात 

उन्होंने बताया कि 32 लाख बच्चे गम्भीर कुपोषण से पीड़ित हैं, और 11 लाख बच्चों पर अत्यधिक गम्भीर कुपोषण के कारण मौत का जोखिम मंडरा रहा है. 

यूनीसेफ़ की अधिकारी ने हाल ही में देश के पश्चिमी इलाक़ों में स्वास्थ्य केंद्रों का दौरा किया.

एक अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि गम्भीर कुपोषण के मामलों में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि एक अन्य अस्पताल ने 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की जानकारी साझा की.

यूनीसेफ़ अधिकारी ने आगाह किया कि इस वृद्धि के बावजूद, यह ध्यान रखना होगा कि अफ़ग़ानिस्तान में संकट 15 अगस्त को शुरू नहीं हुआ, और देश पिछले 40 वर्षों से किसी ना किसी रूप में असुरक्षा या हिंसक टकराव का अनुभव करता रहा है.

“मगर, सूखे...ख़राब पैदावार...बढ़ती खाद्य क़ीमतों, और चूँकि अनेक महिलाओं को 15 अगस्त से घर पर ही रहने के लिये कहा गया है, बड़ी संख्या में परिवारों ने अपनी आय का मुख़्य स्रोत खो दिया है.”

यूनीसेफ़ के अफ़ग़ानिस्तान कार्यालय में अधिकारी सैमेन्था मोर्ट, काबुल के एक अस्पताल में एक बच्चे व उसकी माँ से बात कर रही हैं.
© UNICEF/Omid Fazel
यूनीसेफ़ के अफ़ग़ानिस्तान कार्यालय में अधिकारी सैमेन्था मोर्ट, काबुल के एक अस्पताल में एक बच्चे व उसकी माँ से बात कर रही हैं.

परिवारों की व्यथा

यूएन अधिकारी ने बताया कि गम्भीर कुपोषण का शिकार एक बच्चे की माँ के साथ बातचीत के दौरान उन्हें पता चला कि कोशिशों के बावजूद भी वह स्तनपान नहीं करा पा रही हैं.

डॉक्टर ने जब महिला से पूछा कि क्या वो खाना खा रही हैं, तो उन्होंने कहा कि अधिकाँश दिन, वह बस चाय का एक गिलास पीती हैं और उसके साथ ब्रेड का एक टुकड़ा खाती हैं. 

“यह कोई हैरानी की बात नहीं कि वे स्तनपान नहीं करा पाएंगी, चूँकि वो स्वयं अल्पपोषित हैं. और, मुझे लगता है कि यही कहानी देश भर में है.”

उन्होंने सचेत किया कि गम्भीर कुपोषण के उपचार के अभाव में, जान का ख़तरा भी पैदा हो सकता है.

सूखे और ख़राब पैदावार के कारण, यूनीसेफ़ ने आशंका जताई है कि सर्दी का मौसम पूरा होने से पहले ही खाद्य भण्डार समाप्त हो जाएंगे. 

यूएन एजेंसी अपने पोषण परामर्शदाताओं की संख्या बढ़ा रही है, सचल स्वास्थ्य व पोषण टीमों को तैयार किया जा रहा है, ताकि दूरदराज़ के ग्रामीण इलाक़ों में, बच्चों तक पहुँचा जा सके. इनमें से अधिकाँश पेशेवर, युवा हैं, जिनमें कई शिक्षित महिलाएं भी हैं. 

यूनीसेफ़ अधिकारी ने क़रीब 30 वर्ष की उम्र की एक महिला डॉक्टर को याद किया, जोकि 20 कर्मचारियों वाले एक मेडिकल क्लीनिक का संचालन कर रही थीं. इनमें से 18 महिलाएं थीं.  

महिला डॉक्टर ने बताया कि तमाम चुनौतियों के बावजूद, अफ़ग़ानिस्तान में युवा, पेशेवर महिलाओं को काम करते हुए देखना, स्फूर्तिदायक है.

अनिश्चित भविष्य

सैमेन्था मोर्ट ने अपनी यात्राओं के दौरान, असुरक्षा की भावना को महसूस किया है. 

उन्होंने कहा कि लोगों में अनिश्चितता व्याप्त है, उन्हें नहीं पता कि सर्दी में क्या होगा या फिर तालेबान प्रशासन आगे क्या करने जा रहा है.

उन्हें नहीं पता है कि सहायता धनराशि के वादों को अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा पूरा किया जा सकेगा या नहीं, ताकि स्वास्थ्य और शिक्षा प्रणाली को उबारा जा सके.

यूनीसेफ़ अधिकारी के मुताबिक़, यह बेहद अहम है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय यह समझे कि अफ़ग़ानिस्तान एक मानवीय संकट के मुहाने पर है.

“अफ़ग़ानिस्तान में लोग मर रहे हैं, और उन्हें हमारे समर्थन की आवश्यकता है. मानवीय सहायता, मानव एकजुटता की अन्तिम अभिव्यक्ति है.”

संकट में स्वास्थ्य प्रणाली

सैमेन्था मोर्ट ने काबुल में स्थित बच्चों के इन्दिरा गाँधी अस्पताल के निदेशक से हुई बातचीत को याद करते हुए कहा कि कभी-कभी एक बिस्तर पर तीन बच्चों को रखा जाता है, चूँकि बड़ी संख्या में ज़िलों और क्षेत्रों में  स्थित स्वास्थ्य केंद्र अब संचालित नहीं किये जा रहे हैं.  

हेरात के एक सचल क्लीनिक में कुपोषण का शिकार एक बच्ची का इलाज किया जा रहा है.
© UNICEF
हेरात के एक सचल क्लीनिक में कुपोषण का शिकार एक बच्ची का इलाज किया जा रहा है.

इसके अतिरिक्त, ग्रामीण इलाक़ों में रह रहे लोगों को अपने बच्चों को राजधानी ले जाना पड़ता है. निर्धनता के कारण उनकी आवाजाही की क्षमता प्रभावित होती है, और अक्सर देरी के कारण उनके बच्चों की तबीयत बेहद ख़राब हो जाती है. 

“अक्सर, बहुत देर हो जाती है. अनेक की मौत हो जाती है, चूँकि परिवारों के पास उन्हें पहले ले जाने के लिये धन नहीं था. हम परिवारों को ज़्यादा और ज़्यादा हताश होते हुए देख रहे हैं.”

यूनीसेफ़ ने चिन्ता जताई कि लोग हताशा में बेहद कठिन और ऐसे निर्णय करने के लिये मजबूर हो रहे हैं, जैसाकि वे शायद पहले कभी नहीं करते.

उदाहरण के तौर पर, अपने बच्चों को स्कूल से बाहर निकालना या फिर जल्द शादी के लिये उन्हें बेच देना. कुछ मामलों में तो छह महीने की उम्र में बच्चियों को शादी के लिये बेचा गया है.

लड़कियों की शिक्षा

सैमेन्था मोर्ट ने बताया कि किशोर लड़कियाँ, फ़िलहाल स्कूल वापिस नहीं लौट पाई हैं. 

स्कूल जाने की उम्र की क़रीब 10 लाख लड़कियाँ घर पर बैठी हैं, और उनके शिक्षा के अधिकार को नकारा जा रहा है. 

“हम हर बच्चे को स्कूल में देखना चाहते हैं. अगर बच्चे, स्कूल में नहीं है, तो उनके सशस्त्र गुट द्वारा भर्ती कर लिये जाने, या जल्द शादी का शिकार होने या किसी अन्य रूप में शोषण होने की सम्भावना बढ़ जाती है.”

यूनीसेफ़ अधिकारी ने एक नए स्कूल में, एक कक्षा में जाकर उन लड़कियों से बातचीत की, जिन्हें कभी शिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी. 

जब उन्होंने पूछा कि क्या वे दुनिया को सन्देश देना चाहेंगे, तो एक सात साल की बच्ची ने अपना हाथ ऊपर किया और कहा, अगर दुनिया ने अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति बनाए रखी, तो यहाँ के बच्चे स्कूल जाना जारी रख पाएंगे.

“मैंने बस सोचा, ईश्वर तुम्हें प्यार करे. यह सब कुछ इतना स्वत: स्फूर्त था, बस मेरे देश में शान्ति बनाए रखें, ताकि मैं सीखना जारी रख सकूँ.”